अलीगढ़: उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ ज़िले में हुई एक घटना ने एक बार फिर से समाज में फैले डर, हिंसा और कानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. मीट कारोबारी अकील, कदीम और अरबाज़ के साथ जो हुआ, वो सिर्फ एक हमला नहीं था, बल्कि ये उस सोच का नतीजा था, जो संदेह के नाम पर इंसान की जान तक लेने से नहीं हिचकती.
रोज का काम था, लेकिन उस दिन मौत थी
24 मई की सुबह, अकील, उनके भाई कदीम, चचेरे भाई अरबाज़ और ड्राइवर मुन्ना खान रोज की तरह अलीगढ़ के अल-अम्मार फ्रोजन फूड मीट फैक्ट्री से मीट लेकर लौट रहे थे. ये उनका रोज़मर्रा का काम है. लेकिन इस बार रास्ते में सब कुछ बदल गया.
हरदुआगंज इलाके में बाइक सवार चार लोगों ने उनकी गाड़ी को रोका, पूछताछ शुरू की और जब उन्हें बताया गया कि गाड़ी में मीट है, साथ में रसीद भी दिखाई, तो उन्होंने आरोप लगा दिया कि यह गोमांस है. रसीद फाड़ दी गई. गालियों और धमकियों के साथ पीटना शुरू कर दिया गया. जल्द ही और लोग इकट्ठा हो गए और भीड़ ने इन्हें बेरहमी से पीटा.
पुलिस आई, लेकिन बस गुजर गई
घटना के दौरान पीड़ितों ने बताया कि एक पुलिस की गाड़ी वहां से गुज़री, उन्होंने मदद की गुहार भी लगाई, लेकिन पुलिसकर्मी बिना कुछ कहे चले गए.
कदीम कहते हैं, "हम चिल्ला रहे थे, पुलिसवालों से मदद मांग रहे थे. लेकिन उन्होंने एक नज़र डाली और निकल गए. उस वक़्त लगा कि शायद हम आज जिंदा नहीं बचेंगे."
फोरेंसिक रिपोर्ट ने किया खुलासा:
पुलिस ने घटना के बाद उल्टे पीड़ितों के खिलाफ ही गोवध निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर लिया. लेकिन 27 मई को आई फोरेंसिक रिपोर्ट में साफ हुआ कि मांस भैंस का था, गाय का नहीं. यानी जिस बुनियाद पर हिंसा हुई, वो पूरी तरह से झूठी थी.
2 लाख मांगे, मोबाइल और पैसे छीन लिए
पीड़ितों का दावा है कि हमला सिर्फ हिंसा नहीं था, बल्कि जबरन वसूली और लूट की मंशा भी थी.
अकील बताते हैं, "हमसे दो लाख रुपए की मांग की गई. जब हमने मना किया तो मोबाइल और जेब में रखे पैसे भी छीन लिए गए."
ड्राइवर बोले: अब गाड़ी नहीं चलाऊंगा
ड्राइवर मुन्ना खान का भरोसा इस घटना के बाद बुरी तरह टूट चुका है. "मैंने कहा कि मैं सिर्फ ड्राइवर हूं, मांस से मेरा कोई लेना-देना नहीं है. फिर भी मारा गया. अब कभी गाड़ी नहीं चलाऊंगा. मजदूरी करके घर चलाऊंगा."
दुकानों पर ताले, कारोबार में डर
कदीम कहते हैं कि अतरौली के मीट कारोबारियों में भय का माहौल है. "हमारी दुकानों से सभी धर्मों के लोग मीट खरीदते हैं. लेकिन अब बेचने से डर लगता है. खाने से धर्म भ्रष्ट नहीं होता, लेकिन बेचने से बना दिया जाता है."
कानून है, व्यवस्था नहीं है
सरकार की ओर से बूचड़खानों के लिए सख्त नियम लागू किए गए हैं, जिससे अब कारोबारियों को फैक्ट्रियों से मीट लाना पड़ता है.
कदीम सवाल उठाते हैं, "जब सरकार कहती है कि फैक्ट्री से मीट लाओ, तो क्या सुरक्षा देना सरकार की जिम्मेदारी नहीं है?"
पहले से निशाने पर थे
अरबाज़ बताते हैं कि ये हमला अचानक नहीं हुआ. उन्होंने कहा, "पंद्रह दिन पहले भी इन लोगों ने हमें रोका था. उस दिन पुलिस आ गई थी और कागज़ देखने के बाद हमें छोड़ दिया था. तभी से ये लोग हमें ट्रैक कर रहे थे. इस बार हमला करने का इंतज़ार कर रहे थे."
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