भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच, चीन और तुर्की ने पाकिस्तान का खुलकर समर्थन किया, जो न केवल रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था, बल्कि इसने सूचना युद्ध के क्षेत्र में भी दोनों देशों की भूमिका को उजागर किया. इन दोनों देशों ने पाकिस्तान के पक्ष में अपनी पूरी ताकत झोंकते हुए, केवल सैन्य सहायता नहीं, बल्कि सूचना युद्ध में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. इसके परिणामस्वरूप, पाकिस्तान के दुष्प्रचार को वैश्विक स्तर पर फैलाने और उसे समर्थन देने में मदद मिली.
चीन और तुर्की का समर्थन कैसे सामने आया?
चीन और तुर्की दोनों के सरकारी मीडिया आउटलेट्स, जैसे कि चीन का ग्लोबल टाइम्स और शिन्हुआ न्यूज़ एजेंसी, और तुर्की का TRT वर्ल्ड, पाकिस्तानी सेना के पक्ष में सक्रिय रूप से काम कर रहे थे. ये मीडिया प्लेटफॉर्म्स न केवल पाकिस्तान के झूठे दावों को बढ़ावा दे रहे थे, बल्कि पाकिस्तान के संघर्ष को वैश्विक स्तर पर एक अलग रूप में पेश कर रहे थे. जबकि चीन के मीडिया संस्थान पहले से ही बीजिंग के राजनीतिक नियंत्रण में थे, तुर्की के TRT वर्ल्ड ने इस मामले में रेसेप तैयप एर्दोगन के साम्राज्यवादी दृष्टिकोण को समर्थन दिया.
विशेषज्ञों का मानना है कि बिना किसी प्रमाण के पाकिस्तानी सेना के दावों को अपनी प्रतिष्ठा की कीमत पर स्वीकार करना, दोनों देशों के मीडिया के लिए एक अत्यंत विवादास्पद कदम था. इन मीडिया संस्थानों ने पाकिस्तान के झूठे दावों को फैलाने में मदद की, जिससे न केवल पाकिस्तान को प्रचार का फायदा हुआ, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान भी आकर्षित हुआ.
सूचना युद्ध: एक नया युग
आजकल हम सूचना युद्ध के युग में जी रहे हैं, जहां युद्ध केवल रणभूमि तक सीमित नहीं रहता. डिजिटल स्क्रीन पर भी युद्ध लड़ा जा रहा है, जहां हर एक समाचार, वीडियो और तस्वीर की अहम भूमिका होती है. युद्ध केवल सैनिकों के मनोबल को प्रभावित नहीं करता, बल्कि सूचना के माध्यम से पूरे समाज के मानसिक दृष्टिकोण को भी प्रभावित कर सकता है. जब एक देश युद्ध के मैदान में हार रहा होता है, तो उसे धोखे, फर्जी तस्वीरों और वीडियो के जरिए सकारात्मक धारणा उत्पन्न करने का मौका मिलता है. यही कारण है कि चीन और तुर्की ने बिना हथियारों के पाकिस्तान की सहायता की और सूचना युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
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