राजधानी में पॉल्यूशन का क्या है कारण? CAG रिपोर्ट में खुलासा, वाहनों को ठहराया जा रहा जिम्मेदार

दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण हर साल बढ़ता जा रहा है, और अब इसकी असल वजह सामने आई है. सीएजी (कंप्ट्रोलर और ऑडिटर जनरल) की रिपोर्ट में बताया गया है कि दिल्ली में प्रदूषण जांच के नाम पर सिर्फ दिखावा हो रहा था. प्रदूषण जांच केंद्र (PCC) मनमानी तरीके से पॉल्यूशन सर्टिफिकेट (PUCC) जारी कर रहे थे, जिससे इनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं.

राजधानी में पॉल्यूशन का क्या है कारण? CAG रिपोर्ट में खुलासा, वाहनों को ठहराया जा रहा जिम्मेदार
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दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण हर साल बढ़ता जा रहा है, और अब इसकी असल वजह सामने आई है. सीएजी (कंप्ट्रोलर और ऑडिटर जनरल) की रिपोर्ट में बताया गया है कि दिल्ली में प्रदूषण जांच के नाम पर सिर्फ दिखावा हो रहा था. प्रदूषण जांच केंद्र (PCC) मनमानी तरीके से पॉल्यूशन सर्टिफिकेट (PUCC) जारी कर रहे थे, जिससे इनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं.

उत्सर्जन आंकड़े डाटाबेस में नहीं दर्ज किए जा रहे थे

सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद, दिल्ली में उत्सर्जन डेटा और वाहनों के राष्ट्रीय डेटाबेस (VAHAN) के बीच कोई लिंक नहीं था. इसका मतलब यह हुआ कि प्रदूषण जांच केंद्रों (PCCs) को वाहन के उत्सर्जन मानक को मैन्युअली चुनने की अनुमति मिल गई, जिससे हेराफेरी की संभावना बढ़ गई.

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पंजीकरण और प्रदूषण जांच में भारी अंतर

दिल्ली में पंजीकृत वाहनों की संख्या और प्रदूषण जांच (PUC) के आंकड़ों के बीच बड़ा अंतर पाया गया. इसका मतलब है कि वाहन मालिक अपनी गाड़ियों की प्रदूषण जांच नियमित रूप से नहीं करवा रहे थे.

परीक्षण उपकरणों की जांच की कोई व्यवस्था नहीं

परिवहन विभाग (DoT) ने प्रदूषण जांच केंद्रों में प्रयोग किए जा रहे उपकरणों की जांच करने या उनकी दक्षता सुनिश्चित करने के लिए कोई व्यवस्था नहीं बनाई. इसके कारण कई केंद्र बिना सही उपकरणों के भी प्रदूषण प्रमाणपत्र जारी कर रहे थे.

रिमोट सेंसिंग तकनीक का न होना

सीएजी ने यह भी बताया कि सुप्रीम कोर्ट के बार-बार आदेश देने के बावजूद, रिमोट सेंसिंग तकनीक का उपयोग अब तक नहीं किया गया. इस तकनीक की मदद से वाहन के उत्सर्जन को बिना उसे रोके ही जांचा जा सकता है.

वाहन फिटनेस परीक्षण में भी खामियां

दिल्ली में वाहनों की फिटनेस जांच भी सवालों के घेरे में है. 2018-19 से 2020-21 के बीच, झुलझुली के स्वचालित परीक्षण केंद्र का कम ही इस्तेमाल हुआ, जबकि बुराड़ी में अधिकतर जांचें हुईं, जहां केवल दृश्य निरीक्षण से वाहन पास कर दिए गए. झुलझुली में कई वाहनों को बिना उत्सर्जन जांच के ही पास कर दिया गया.

वाहन मालिकों को याद दिलाने की कोई व्यवस्था नहीं

सीएजी की रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि 2014-15 से 2018-19 के बीच 20% से 64% वाहन मालिकों ने अपने फिटनेस प्रमाणपत्रों का नवीनीकरण नहीं करवाया, लेकिन DoT ने इन्हें याद दिलाने के लिए कोई प्रणाली नहीं बनाई.

पुराने वाहनों के उत्सर्जन पर नियंत्रण नहीं

सीएजी ने बताया कि पुराने डीजल वाहनों के उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए CPCB ने डीजल पार्टिकुलेट फिल्टर (DPF) लगाने का निर्देश दिया था, लेकिन DoT ने इसे लागू करने के लिए नियमों में संशोधन का अनुरोध किया, जो अब तक लंबित है.

पुराने वाहनों का पंजीकरण जारी, जब्त करने की कार्रवाई धीमी

सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के प्रतिबंध के बावजूद पुराने वाहनों का पंजीकरण जारी रहा. 2018-21 के बीच केवल 6.27% पुराने वाहनों को ही डीरजिस्टर किया गया. दिल्ली में 41 लाख से अधिक पुराने वाहन हैं, लेकिन केवल 357 वाहनों को जब्त किया गया.

एनसीआर से आने वाले वाहनों की निगरानी कमजोर

दिल्ली में प्रवेश करने वाले वाहनों की उत्सर्जन जांच भी कमजोर थी. कुल 128 एंट्री पॉइंट्स में से केवल 7 पर ही जांच की गई, और प्रवर्तन शाखा में 1,134 कर्मियों की आवश्यकता थी, लेकिन केवल 292 कर्मचारी तैनात थे.

सरकार को सख्त कदम उठाने की जरूरत

सीएजी की रिपोर्ट में यह सिफारिश की गई है कि सरकार को प्रदूषण जांच की विश्वसनीयता बढ़ाने, स्वचालित परीक्षणों को बढ़ावा देने, पुराने वाहनों पर नियंत्रण करने और प्रवर्तन एजेंसियों की क्षमता को मजबूत करने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए.