नई दिल्ली: भारत के पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश को लेकर चीन ने एक बार फिर से अपना विवादास्पद रुख दोहराया है. इस बार उसने अरुणाचल की 27 जगहों के नाम बदलकर उन्हें चीनी पहचान देने की कोशिश की है. इसमें 15 पर्वत चोटियां, 5 कस्बे, 4 पहाड़ी दर्रे, 2 नदियां और एक झील शामिल है. यह सूची चीनी सरकार से जुड़े समाचार पोर्टल 'ग्लोबल टाइम्स' पर प्रकाशित की गई है.
चीन की यह रणनीति नई नहीं है. पिछले आठ वर्षों में चीन ने अरुणाचल प्रदेश की 90 से अधिक भौगोलिक इकाइयों के नाम बदल डाले हैं. बीजिंग का यह दावा कि अरुणाचल उसका हिस्सा है, केवल राजनीतिक दांवपेच नहीं बल्कि एक सुनियोजित प्रोपेगैंडा रणनीति है, जिसका उद्देश्य वैश्विक मंच पर भ्रम फैलाना और क्षेत्रीय प्रभाव स्थापित करना है.
भारत की कड़ी प्रतिक्रिया
भारत सरकार ने चीन की इस हरकत को सिरे से खारिज करते हुए स्पष्ट कहा कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न हिस्सा था, है और रहेगा. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, "चीन की यह कोशिश मूर्खतापूर्ण है. नाम बदलने से ज़मीनी हकीकत नहीं बदल जाती. इस प्रकार की रचनात्मक कवायद से चीन को कोई राजनयिक या क्षेत्रीय लाभ नहीं मिलेगा."
चीन का पुराना राग
चीन अरुणाचल प्रदेश को 'दक्षिणी तिब्बत' कहता है और दावा करता है कि यह क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से उसके अधीन था. हालांकि, उसके दावे ऐतिहासिक साक्ष्यों पर आधारित नहीं हैं. 2015 में चाइनीज एकेडमी ऑफ सोशल साइंसेज के एक रिसर्चर ने ग्लोबल टाइम्स में लिखा था कि चीन की सरकारों ने पुराने समय में इन इलाकों के नाम तय किए थे और अब उन्हें बहाल कर रही है.
दरअसल, चीन की यह रणनीति केवल इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करने की नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक बड़े भौगोलिक और सामरिक हित छिपे हुए हैं.
वैश्विक मान्यता का सच
किसी क्षेत्र के नाम में बदलाव को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता तभी मिलती है जब संबंधित देश संयुक्त राष्ट्र के ग्लोबल जियोग्राफिक इंफॉर्मेशन मैनेजमेंट विभाग को औपचारिक प्रस्ताव देता है. फिर विशेषज्ञों की एक टीम स्थानीय स्थिति का जायजा लेकर तथ्यों की पुष्टि करती है. चीन ने इस प्रक्रिया को नजरअंदाज करते हुए एकतरफा रूप से नाम बदलने की घोषणा की है, जो अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नहीं है.
पहले भी बदल चुका है नाम
2023: भारत द्वारा G20 सम्मेलन के एक कार्यक्रम का आयोजन अरुणाचल में किए जाने के बाद चीन ने जवाबी कार्रवाई के रूप में कुछ नाम बदलने की घोषणा की थी.
2017: जब तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा अरुणाचल प्रदेश के दौरे पर आए थे, तब चीन ने छह स्थानों के नाम बदले थे.
2021 और 2023: दो वर्षों के बीच चीन ने क्रमश: 15 और 11 स्थानों के नाम बदले थे.
2024: इस वर्ष की शुरुआत में ही 20 स्थानों के नामों की सूची जारी की गई थी.
क्यों अहम है अरुणाचल?
अरुणाचल प्रदेश न केवल भारत के पूर्वोत्तर का सबसे बड़ा राज्य है बल्कि यह सामरिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है. इसकी सीमाएं तिब्बत (चीन), भूटान और म्यांमार से लगती हैं. यह क्षेत्र भारतीय सेना के लिए रणनीतिक दृष्टि से सुरक्षा कवच का काम करता है.
विशेष रूप से तवांग जिला चीन की निगाहों में है. यह क्षेत्र भूटान और तिब्बत की सीमाओं के निकट स्थित है और ऐतिहासिक रूप से भी महत्वपूर्ण रहा है. तवांग मठ बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत पवित्र स्थल है, और चीन तिब्बती बौद्धों पर नियंत्रण के उद्देश्य से इस क्षेत्र पर दावा करता रहा है.
भारत की बढ़ती अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता
चीन की ये गतिविधियाँ अक्सर तब सामने आती हैं जब भारत किसी बड़े अंतरराष्ट्रीय आयोजन की मेजबानी करता है या जब उसकी वैश्विक प्रतिष्ठा में इज़ाफा होता है. ऐसे में यह समझना मुश्किल नहीं कि बीजिंग का नाम बदलने का अभियान एक कूटनीतिक रणनीति के तहत भारत की छवि को कमज़ोर करने का प्रयास है.
ये भी पढ़ें- 'मैं नहीं चाहता एपल के प्रोडक्ट वहां बने, भारत अपना ख्याल रख लेगा', टिम कुक से बोले डोनाल्ड ट्रंप