Buddha Purnima 2025: जब भी वैशाख की पूर्णिमा आती है, इतिहास खुद को एक बार फिर दोहराता है. आज का दिन सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि आत्मबोध, त्याग और अंतर्मन की यात्रा का प्रतीक है. 12 मई, सोमवार को मनाई जा रही बुद्ध पूर्णिमा, उस दिन की याद दिलाती है जब एक राजकुमार ने महलों का त्याग कर संन्यास की राह पकड़ी और अंततः 'बुद्ध' बनकर दुनिया को शांति और अहिंसा का संदेश दिया.
क्यों खास है यह दिन?
बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही तीन ऐतिहासिक घटनाएं घटित हुईं — गौतम बुद्ध का जन्म, ज्ञान की प्राप्ति, और महापरिनिर्वाण. यही वजह है कि यह दिन त्रिविध स्मरण का पर्व माना जाता है. बोधगया, जहां उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई, आज दुनिया भर के बौद्ध अनुयायियों का तीर्थ है.
कैसे मनाते हैं बुद्ध पूर्णिमा?
बुद्ध पूर्णिमा के दिन खीर का भोग लगाना एक पुरानी परंपरा है, जो उस क्षण की याद दिलाती है जब तपस्या के बाद बुद्ध ने पहली बार खीर ग्रहण कर व्रत तोड़ा था. इस दिन पीपल के पेड़, जिसे 'बोधि वृक्ष' भी कहते हैं, की पूजा की जाती है. घरों में भगवान बुद्ध की प्रतिमा के समक्ष दीपक जलाकर ध्यान, प्रार्थना और उपदेश सुनने का आयोजन किया जाता है.
तिथि और समय
उदिया तिथि के अनुसार, पर्व आज ही मनाया जा रहा है.
विशेष धार्मिक कार्य
इस शुभ दिन पर जल से भरे कलश, छाता, जूते, सत्तू और पंखा दान करने की परंपरा है. यह दान केवल परंपरा नहीं, बल्कि समाज के जरूरतमंदों के प्रति करुणा का प्रतीक है — वही करुणा, जिसे भगवान बुद्ध ने जीवन भर अपनाया.
सिर्फ भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में मनाया जाता है यह पर्व
नेपाल, थाईलैंड, श्रीलंका और म्यांमार जैसे देशों में भी बुद्ध पूर्णिमा बड़े श्रद्धा भाव से मनाई जाती है. बौद्ध विहारों में दिनभर ध्यान, पूजा और संगोष्ठियों का आयोजन होता है, जहां लोग शांति का मार्ग चुनने का संकल्प लेते हैं.
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