"एक झाड़ू, एक सपना और मोदी से मिलने की उम्मीद" – 72 साल के रामचंद्र की 11 साल लंबी सेवा यात्रा

    72 वर्षीय रामचंद्र स्वामी जिन्हें लोग कभी मोदी भक्त, कोई झाड़ू वाले बाबा तो कोई सफाई का सिपाही कह कर बुलाता है. उन्हें किसी पहचान की जरूरत नहीं है. केवल उनके दिल में एक ही ख्वाहिश है, वो है पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. एक बार पीएम मोदी से मिलने के लिए उन्होंने साफ सफाई का संकल्प लिया है. उनका कहना है कि मैंने झाड़ू उठाकर संकल्प लिया कि जब तक मोदी जी से नहीं मिलूंगा, सेवा का ये सफर रुकेगा नहीं.”

    "एक झाड़ू, एक सपना और मोदी से मिलने की उम्मीद" – 72 साल के रामचंद्र की 11 साल लंबी सेवा यात्रा
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    Haryana: चरखी दादरी (हरियाणा) के छोटे से गांव कारी मोद से निकले 72 वर्षीय रामचंद्र स्वामी आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. कोई उन्हें “मोदी भक्त” कहता है, कोई “झाड़ू वाले बाबा” और कोई “सफाई के सिपाही”. लेकिन उनके दिल में एक ही ख्वाहिश है—प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलना.

    ड्राइवर से बने 'स्वच्छता दूत'

    कभी ट्रक चलाकर परिवार पालने वाले रामचंद्र जी का गुजरात से अक्सर आना-जाना होता था. वहीं उन्होंने देखा कि नरेंद्र मोदी किस तरह स्वच्छता को मिशन बना रहे हैं. उसी वक्त उनके मन में प्रधानमंत्री के लिए आस्था जागी, और फिर साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने और खुद झाड़ू उठाई, तो रामचंद्र ने भी ट्रक ड्राइवरी छोड़ झाड़ू थाम ली. “मैंने झाड़ू उठाकर संकल्प लिया कि जब तक मोदी जी से नहीं मिलूंगा, सेवा का ये सफर रुकेगा नहीं.”

    दो बार पैदल दिल्ली, मगर मुलाकात नहीं हो पाई

    रामचंद्र अब तक दो बार दिल्ली की पैदल यात्रा कर चुके हैं. सिर्फ इस उम्मीद में कि शायद मोदी जी मिल जाएं. लेकिन आज तक उनकी ये ख्वाहिश अधूरी है. फिर भी वे रुके नहीं हैं. रामचंद्र कहते हैं कि “मैं मोदी जी को भगवान कृष्ण मानता हूं और खुद को उनका गरीब सुदामा... बस एक कप चाय की इच्छा है, और कुछ नहीं.”

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    हरियाणा, राजस्थान, गुजरात में कर चुके हैं सफाई

    पिछले 11 सालों में रामचंद्र कई शहरों के बाजारों, चौकों, मंदिरों, पार्कों और सार्वजनिक जगहों पर झाड़ू लगाकर स्वच्छ भारत मिशन को ज़मीन पर जिया है. वो अकेले जाते हैं, अपने खर्चे से कार चलाते हैं, जिसमें हमेशा झाड़ू और बैनर रखे होते हैं. जिस पर लिखा है “1972 का अनपढ़ ड्राइवर, मोदी से मिलने की तमन्ना.”

    चाय के सिवा कुछ नहीं लेते

    रामचंद्र ने न किसी संस्था से मदद ली, न किसी से पैसा मांगा. वो जहां भी जाते हैं, चाय के अलावा कुछ नहीं लेते. उन्होंने बाकायदा शपथपत्र दे रखा है कि उनकी मृत्यु पर परिवार को कोई मुआवजा न दिया जाए. “मैं जो कर रहा हूं, वो सेवा है, सौदा नहीं.”

    मोदी से मिली उम्मीद की एक नई किरण

    हाल ही में जब प्रधानमंत्री मोदी ने कैथल में 14 साल से नंगे पांव चलने वाले रामपाल से मुलाकात की और उन्हें जूते पहनाए, तो रामचंद्र की आंखों में फिर एक चमक लौट आई. उन्हें लगा कि उनका भी नंबर कभी आ सकता है.