ब्रह्मोस, अग्नि और आकाश से भी खतरनाक है ये मिसाइल, अमेरिका-रूस-चीन क्लब में शामिल हुआ भारत

    भारत अब सिर्फ जवाब देने वाला देश नहीं रहा, वो अब उस मुकाम पर पहुंच गया है जहां अगला कदम तय करने की ताक़त उसके हाथ में है.

    Brahmos Agni Akash India joins America Russia-China club
    प्रतीकात्मक तस्वीर | Photo: Freepik

    भारत अब सिर्फ जवाब देने वाला देश नहीं रहा, वो अब उस मुकाम पर पहुंच गया है जहां अगला कदम तय करने की ताक़त उसके हाथ में है. पहलगाम में हुए आतंकी हमले और फिर ऑपरेशन सिंदूर के जरिए पाकिस्तान को मिली सीधी चेतावनी के बाद अब भारत ने एक और बड़ी छलांग लगाई है. इस बार निशाने पर सिर्फ दुश्मन के लॉन्च पैड नहीं, बल्कि उसकी सोच और रणनीति है.

    DRDO ने एक बेहद खुफिया प्रोजेक्ट – ‘प्रोजेक्ट विष्णु’ – के तहत एक ऐसी हाइपरसोनिक मिसाइल टेस्ट की है, जो भारत की अब तक की सारी मिसाइलों से कहीं ज़्यादा तेज़, ताक़तवर और चौंकाने वाली है. नाम है ET-LDHCM – एक्सटेंडेड ट्रेजेक्टरी लॉन्ग ड्यूरेशन हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल. ये नाम जितना टेक्निकल है, इसकी मार उतनी ही घातक.

    क्या है ET-LDHCM, और ये क्यों खास है?

    सीधी बात करें तो यह मिसाइल दुश्मन के लिए एक ‘अल्टीमेट चैलेंज’ है. इसकी स्पीड लगभग 11,000 किलोमीटर प्रति घंटे तक जा सकती है, यानी 8 मैक की रफ्तार. तुलना के लिए समझिए कि ब्रह्मोस या अग्नि जैसी मिसाइलें भी इसके मुकाबले स्लो लगती हैं.

    इसके पीछे जो टेक्नोलॉजी है, वह किसी फिल्मी कल्पना जैसी लग सकती है, लेकिन यह अब हकीकत है – Scramjet इंजन. यह इंजन बाहर की हवा से ऑक्सीजन खींच लेता है और उसी से ईंधन जलाता है. पुराने रॉकेट्स में ऑक्सीजन साथ ले जानी पड़ती थी, जिससे वजन बढ़ता था और गति सीमित रहती थी. लेकिन Scramjet इसे पूरी तरह बदल देता है.

    इतना गर्म, फिर भी कूल

    DRDO ने नवंबर 2024 में इस स्क्रैमजेट इंजन का लंबा टेस्ट किया था – पूरे 1,000 सेकंड तक. इस दौरान इंजन ने 2,000 डिग्री सेल्सियस तक की गर्मी सह ली. आमतौर पर ऐसी गर्मी किसी भी मैकेनिकल सिस्टम को पिघला दे, लेकिन यह इंजन टिक गया. इसका मतलब साफ है – ये मिसाइल जब उड़ती है, तो हवा और तापमान इसकी रफ्तार रोक नहीं सकते.

    ज़मीन से, समंदर से या आसमान से… जहां से चाहो, दागो

    एक और बड़ा गेमचेंजर यह है कि इस मिसाइल को कहीं से भी लॉन्च किया जा सकता है – जमीन से, जहाज से या फिर फाइटर प्लेन से. यानी चाहे बात नौसेना की हो, वायुसेना की या थलसेना की – तीनों को यह मिसाइल सपोर्ट करती है.

    इसका मतलब यह है कि भारत अब मल्टी-डोमेन वॉरफेयर में भी पहले से ज़्यादा ताक़तवर हो गया है. इससे 2,000 किलो तक का कोई भी हथियार ले जाया जा सकता है – चाहे वो पारंपरिक बम हो या परमाणु हथियार.

    दुश्मन को न दिखे, न समझ आए

    यह मिसाइल इतनी कम ऊंचाई पर उड़ती है कि दुश्मन के रडार इसे पकड़ नहीं पाते. मतलब ये कि जब तक किसी को पता चले, तब तक सब खत्म हो चुका होता है. यह चुपचाप उड़ती है, निशाने पर टूटती है और अपना काम कर के गायब हो जाती है.

    तो फिर प्रोजेक्ट विष्णु है क्या?

    DRDO की यह प्रोजेक्ट विष्णु एक हाई-क्लास सीक्रेट प्रोग्राम है, जिसमें हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी को नए स्तर पर ले जाया जा रहा है. इसकी सारी जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है, लेकिन यह तय है कि इसमें सिर्फ मिसाइल नहीं, बल्कि भारत की भविष्य की स्ट्रैटजिक सोच भी शामिल है.

    यही कारण है कि इस प्रोजेक्ट की टेस्टिंग और विकास पर भारत सरकार ने कोई बड़ा तमाशा नहीं किया, पर जिसने देखा, वो समझ गया कि भारत अब सिर्फ जवाब नहीं देता, वो वक्त से पहले चाल चलना जानता है

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