Indian Black Money: नई दिल्ली से उठी एक बार फिर वह बहस, जो हर चुनाव में मुद्दा बनती है लेकिन अक्सर ठंडी पड़ जाती है, भारत का काला धन और विदेशी खातों में जमा संपत्ति. संसद के मॉनसून सत्र के दौरान राज्यसभा में समाजवादी पार्टी के सांसद जावेद अली खान ने सरकार से पूछ लिया कि क्या यह सच है कि 2024 में स्विस बैंकों में जमा भारतीय धन तीन गुना से भी ज्यादा बढ़कर करीब 3.5 बिलियन स्विस फ्रैंक यानी लगभग ₹37,600 करोड़ तक पहुंच गया है. यह आंकड़ा 2021 के बाद का सबसे ऊंचा स्तर बताया जा रहा है.
सांसद के सवाल में सिर्फ स्विस बैंकों की संपत्ति का जिक्र नहीं था, बल्कि उन्होंने यह भी जानना चाहा कि 2022 से लेकर 2025 तक किन-किन देशों से और कितनी मात्रा में काला धन भारत वापस लाया गया है. सरकार की ओर से वित्त राज्य मंत्री ने इन सवालों का लिखित उत्तर दिया. जवाब में उन्होंने माना कि स्विस नेशनल बैंक के आंकड़ों में भारतीयों की जमा राशि में बढ़ोतरी जरूर दिखाई दे रही है, लेकिन उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि इन आंकड़ों का सीधा संबंध न तो काले धन से है और न ही इन्हें भारतीयों की स्विस संपत्ति का असली प्रतिबिंब माना जाना चाहिए.
सरकार ने क्या बताया?
सरकार ने बताया कि स्विस नेशनल बैंक के सालाना आंकड़ों में सिर्फ ग्राहकों की जमा राशि नहीं, बल्कि विदेशी शाखाओं में मौजूद रकम, अन्य देनदारियां और बैंकिंग क्षेत्र के विभिन्न प्रकार के ट्रांजैक्शन शामिल होते हैं. यही वजह है कि स्विट्जरलैंड की ओर से भी बार-बार यह चेतावनी दी गई है कि इन आंकड़ों को काले धन के पैमाने के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए.
स्विट्जरलैंड ने 2018 से भारत को ऑटोमैटिक एक्सचेंज ऑफ इंफॉर्मेशन (AEOI) फ्रेमवर्क के तहत हर साल वित्तीय जानकारी उपलब्ध करानी शुरू कर दी है. भारत को पहली बार सितंबर 2019 में विदेशी खातों से संबंधित जानकारी मिली थी, और अब यह एक नियमित प्रक्रिया बन चुकी है. सिर्फ स्विट्जरलैंड ही नहीं, भारत अब 100 से अधिक विदेशी कर क्षेत्रों से नागरिकों की विदेशी संपत्ति और आय का विवरण भी हासिल करता है.
आयकर कानूनों के तहत कड़ी कार्रवाई
सरकार ने अपने जवाब में यह भी बताया कि जब भी विदेशी संपत्ति या आय से जुड़ा टैक्स चोरी का कोई मामला सामने आता है, तो आयकर कानूनों के तहत कड़ी कार्रवाई की जाती है. इसमें छापेमारी, पूछताछ, सर्वेक्षण, कर निर्धारण और आवश्यक होने पर अभियोजन तक शामिल है. 1 जुलाई 2015 को जब काला धन (अघोषित विदेशी आय और संपत्ति) तथा कर अधिरोपण अधिनियम (BMA) लागू हुआ, तब सरकार ने एक बार के तीन महीने के अनुपालन कार्यक्रम के तहत विदेशी संपत्ति को उजागर करने की स्कीम शुरू की थी. इस दौरान कुल 684 खुलासे हुए और लगभग ₹4164 करोड़ की अघोषित संपत्ति सामने आई, जिनमें से ₹2476 करोड़ टैक्स और पेनल्टी के रूप में वसूले गए.
₹35,105 करोड़ की कर मांग सामने आई
सरकार के अनुसार, 31 मार्च 2025 तक इस कानून के तहत 1021 असेसमेंट पूरे किए जा चुके हैं और 163 अभियोजन शिकायतें दर्ज की गई हैं। कुल मिलाकर करीब ₹35,105 करोड़ की कर मांग सामने आई है. हालांकि, जब तक यह रकम अदालतों के अंतिम निर्णय से प्रमाणित नहीं होती, तब तक इसे वसूली नहीं माना जा सकता. अब तक की पुष्टि की गई वसूली महज ₹338 करोड़ की हुई है.
यानी विदेशी खातों में काले धन की जांच और वसूली की प्रक्रिया चल तो रही है, लेकिन इसके परिणाम अपेक्षाकृत सीमित हैं. स्विस खातों में जमा बढ़ती रकम और भारतीयों की वैश्विक संपत्ति के आंकड़े जहां आम लोगों के बीच चिंता का विषय बने हुए हैं, वहीं सरकार का रुख यह बताने की कोशिश कर रहा है कि कालेधन पर नियंत्रण की प्रक्रिया सिर्फ दिखावटी नहीं, बल्कि कानूनी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संरचित है. फिर भी सवाल तो यही है, क्या इतनी धीमी वसूली से देश की उम्मीदें पूरी हो पाएंगी?
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