Pakistan: अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत और पाकिस्तान के दृष्टिकोणों के बीच गहराता फासला एक बार फिर सामने आया, जब पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ज़रदारी अमेरिका यात्रा पर भारत की काट के रूप में पहुंचे. दरअसल, भारत की ओर से वरिष्ठ सांसद और पूर्व राजनयिक शशि थरूर के नेतृत्व में एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल अमेरिका गया है, जो ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर दुनिया को भारत का पक्ष स्पष्ट रूप से समझा रहा है. इसी का मुकाबला करने के लिए पाकिस्तान ने बिलावल भुट्टो की अगुवाई में एक प्रतिनिधिमंडल भेजा, लेकिन यह ‘डिप्लोमेसी की जंग’ में पहली ही बाउंस पर चूक गया.
तुलना में भारी पड़ा अनुभव और कूटनीति
शशि थरूर, जो संयुक्त राष्ट्र में भारत का चेहरा रह चुके हैं, आज भी वैश्विक मंचों पर अपने तथ्यों, भाषा और तर्कों से प्रभावित करते हैं. उन्होंने अमेरिका में भारत की सैन्य कार्रवाई, आतंकवाद के खिलाफ नीति और कश्मीर में स्थायित्व पर मजबूती से बात रखी. दूसरी ओर, बिलावल भुट्टो सिर्फ भारत-विरोधी बयानबाज़ी और पुराने आरोपों को दोहराते नज़र आए. उन्होंने जब संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान भारतीय मुस्लिमों को लेकर सवाल उठाया, तो स्थिति और भी असहज हो गई.
कर्नल सोफिया कुरैशी का नाम आते ही बिलावल का चेहरा उतर गया
बिलावल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह कहने की कोशिश की कि भारत सरकार, खासकर पहलगाम आतंकी हमले के बाद, मुसलमानों को निशाना बना रही है. मगर यह दलील उसी वक्त ढह गई जब एक विदेशी पत्रकार ने ऑपरेशन सिंदूर की ब्रीफिंग का ज़िक्र किया. इस ब्रीफिंग को भारतीय सेना की मुस्लिम महिला अधिकारी कर्नल सोफिया कुरैशी, विंग कमांडर व्योमिका सिंह, और विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने संयुक्त रूप से संबोधित किया था. इस तथ्य ने बिलावल की बातों को झूठा साबित कर दिया. जवाब सुनकर वह सिर्फ सिर हिलाकर रह गए.
कूटनीति की क्लास में बिलावल ‘फेल’, थरूर रहे ‘टॉपर’
जहां थरूर ने भारत की विविधता, धर्मनिरपेक्षता और सैन्य नीतियों को अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समक्ष मजबूती से रखा, वहीं बिलावल सिर्फ भारत को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश करते रहे. उनका अंदाज़ आक्रामक था, लेकिन तथ्यों से कमजोर. थरूर ने आतंकवाद को वैश्विक और क्षेत्रीय अस्थिरता का मुख्य कारण बताया और भारत की सैन्य प्रतिक्रिया को न्यायोचित ठहराया. जबकि बिलावल की बातों में न तो नयापन था, न ही वैचारिक स्पष्टता.
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