बिहार में दलित वोट को एकजुट करने के लिए BJP का बड़ा प्लान, मुंह ताकते रह जाएंगे तेजस्वी-राहुल

    BJP In Bihar: बिहार की चुनावी सियासत एक बार फिर गर्म है. मैदान वही है, खिलाड़ी भी पुराने हैं, लेकिन इस बार चुनावी शतरंज पर दलित वोट बैंक को केंद्र में रखकर दोनों बड़े गठबंधनों ने अपनी-अपनी चालें चलनी शुरू कर दी हैं.

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    BJP In Bihar: बिहार की चुनावी सियासत एक बार फिर गर्म है. मैदान वही है, खिलाड़ी भी पुराने हैं, लेकिन इस बार चुनावी शतरंज पर दलित वोट बैंक को केंद्र में रखकर दोनों बड़े गठबंधनों ने अपनी-अपनी चालें चलनी शुरू कर दी हैं. भाजपा नेतृत्व वाला एनडीए जहां योजनाओं और सामाजिक समरसता के जरिए दलितों का भरोसा जीतने की कोशिश कर रहा है, वहीं महागठबंधन (राजद-कांग्रेस-वामदल) जातिगत जनगणना और सामाजिक न्याय के एजेंडे को आगे बढ़ाकर दलितों को अपनी तरफ खींचना चाहता है.

    भाजपा ने इस बार दलित समुदाय के बीच गहरी पैठ बनाने के लिए ‘दलित बस्ती संपर्क अभियान’ की शुरुआत की है. इसके तहत पार्टी के नेता और कार्यकर्ता दलित बस्तियों में जाकर न केवल योजनाओं का प्रचार कर रहे हैं, बल्कि पढ़े-लिखे दलित युवाओं और बुद्धिजीवियों के बीच यह विमर्श खड़ा कर रहे हैं कि नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार की सरकारों ने उनके लिए ठोस काम किया है.

    भाजपा का ‘दलित बस्ती संपर्क अभियान’ 

    यह प्रयास केवल संवाद तक सीमित नहीं है. सामाजिक एकीकरण को दर्शाने के लिए भोजन, बैठकों और भागीदारी वाले कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं, जिसमें आरएसएस से जुड़े संगठन भी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं.

    केंद्र और राज्य की योजनाएं बनीं दलितों से जुड़ाव का माध्यम

    एनडीए का तर्क है कि पीएम आवास योजना, जनधन योजना, पीएम विश्वकर्मा योजना जैसे कई कार्यक्रमों ने दलित परिवारों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाया है. भाजपा इन योजनाओं से लाभान्वित हुए लोगों को मंच पर बुलाकर यह संदेश देना चाहती है कि दलितों का विकास अब केवल भाषण नहीं, धरातल पर उतर चुका है. भाजपा नेता डॉ. संजय निर्मल के मुताबिक, "मोदी सरकार से पहले दलित समुदाय राजनीतिक नारों का शिकार था, लेकिन बीते एक दशक में उनके जीवन स्तर में असल बदलाव आया है."

    महागठबंधन की काट में भाजपा का नया समाजिक समीकरण

    भाजपा की यह रणनीति महागठबंधन के जातिगत जनगणना और आरक्षण आधारित विमर्श की सीधी काट है. कांग्रेस, राजद और वामदल दलितों के बीच लंबे समय से सामाजिक न्याय के एजेंडे पर काम कर रहे हैं. लेकिन भाजपा अब यह विमर्श बदलने की कोशिश कर रही है कि दलितों को सिर्फ आरक्षण नहीं, अवसर, सम्मान और स्थायित्व भी चाहिए.

    पासवान और मांझी फैक्टर

    बिहार की दलित राजनीति में पासवान समुदाय सबसे प्रभावशाली मानी जाती है, जिसकी संख्या दलित आबादी में 30.9% के आसपास है. चिराग पासवान, जो अपने पिता रामविलास पासवान की विरासत को संभाल रहे हैं, भाजपा के साथ मिलकर इस समुदाय के बीच मजबूत पकड़ बनाए हुए हैं. दूसरी ओर, जीतन राम मांझी महादलितों में खासा असर रखते हैं, जिससे एनडीए को जातीय संतुलन साधने में मदद मिल रही है.

    दलित समाज का सम्मान ही हमारी सबसे बड़ी विजय

    भाजपा दावा कर रही है कि उसने सिर्फ योजनाएं नहीं, बल्कि दलित समाज को सामाजिक मंचों पर बराबरी का दर्जा देने का प्रयास किया है. पार्टी नेतृत्व यह भी दोहराता है कि पीएम मोदी ने बाबासाहेब अंबेडकर के विचारों को केवल स्मारकों तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उन्हें नीतियों और शासन व्यवस्था का हिस्सा बनाया.

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