शेख हसीना के घर को म्यूजियम बनाएगी बांग्लादेश सरकार, यहां पिछले साल हुई थी तोड़फोड़ और लूटमार

    बांग्लादेश की राजनीति में एक नया अध्याय जुड़ने जा रहा है. एक ऐसा फैसला, जो इतिहास को फिर से परिभाषित करने की कोशिश है या फिर अतीत से जुड़े प्रतीकों को नए संदर्भों में गढ़ने की रणनीति यह समय ही तय करेगा.

    Bangladesh government will convert Sheikh Hasina house into a museum
    Image Source: Social Media

    ढाका: बांग्लादेश की राजनीति में एक नया अध्याय जुड़ने जा रहा है. एक ऐसा फैसला, जो इतिहास को फिर से परिभाषित करने की कोशिश है या फिर अतीत से जुड़े प्रतीकों को नए संदर्भों में गढ़ने की रणनीति यह समय ही तय करेगा. बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के 15 वर्षों तक आधिकारिक आवास रहे 'गणभवन' को एक स्मारक संग्रहालय में तब्दील करने का निर्णय लिया है.

    इस संग्रहालय को ‘जुलाई क्रांति स्मारक संग्रहालय’ के नाम से जाना जाएगा और इसे एक ऐसे स्थल के रूप में देखा जा रहा है जो एक उथल-पुथल वाले राजनीतिक दौर का गवाह बना, जब देश छात्र आंदोलनों, जनाक्रोश और सत्ता परिवर्तन के बीच डगमगा रहा था.

    गणभवन: सत्ता, प्रतीक और संघर्ष की जगह

    ढाका के शेर-ए-बांग्ला नगर में स्थित गणभवन, बांग्लादेश की राजनीति में लंबे समय तक सत्ता का प्रतीक रहा है. यह वही स्थान है जहाँ शेख हसीना 2010 से लेकर 2024 तक देश की प्रधानमंत्री के रूप में रहीं. इस घर की एक ऐतिहासिक विरासत भी है, इसे उनके पिता और बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान ने पुनर्निर्मित करवाया था.

    इससे पहले इस स्थान को 'एस्टेट राजबाड़ी' के नाम से जाना जाता था. बाद में यह देश के प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास के रूप में प्रयोग होने लगा और कई राजनीतिक निर्णयों का केंद्र बना.

    जब सत्ता बिखर गई और भीड़ घर पर टूट पड़ी

    5 अगस्त 2024 को, जब शेख हसीना ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दिया और देश छोड़ दिया, उसके कुछ ही घंटों बाद ढाका के इस घर पर एक उग्र भीड़ ने हमला कर दिया. यह भीड़ उस छात्र आंदोलन का हिस्सा थी जो हसीना सरकार की नीतियों, विशेष रूप से सरकारी नौकरियों में 30% कोटा प्रणाली के खिलाफ सड़कों पर उतरा था.

    इस हिंसक घटना में न केवल संपत्ति को नुकसान पहुंचा, बल्कि निजी वस्तुएं भी लूट ली गईं. रिपोर्ट्स के मुताबिक:

    • साड़ियाँ, महिलाओं के कपड़े, घड़ियाँ, लग्ज़री हैंडबैग, सोफे, सजावटी सामान, यहां तक कि मछलियाँ और टीवी तक लूट लिए गए.
    • सोशल मीडिया पर लूटपाट की तस्वीरें और वीडियो वायरल हो गए.
    • बाद में प्रशासन ने यह दावा किया कि लूटी गई वस्तुओं में से अधिकांश वापस कर दी गई हैं.

    इस घटना ने बांग्लादेश के इतिहास में एक गहरी खरोंच छोड़ी और देश को यह सोचने पर मजबूर किया कि सत्ता, प्रतीक और जनता के बीच का रिश्ता कितना जटिल हो सकता है.

    अंतरिम सरकार का ऐलान: बनेगा क्रांति संग्रहालय

    मोहम्मद यूनुस की अध्यक्षता वाली अंतरिम सरकार ने घोषणा की है कि गणभवन को अब एक म्यूज़ियम के रूप में तब्दील किया जाएगा, जिसे ‘जुलाई क्रांति स्मारक संग्रहालय’ कहा जाएगा. यह संग्रहालय उन प्रदर्शनकारियों की याद में भी होगा, जो 2024 के विरोध प्रदर्शनों के दौरान मारे गए थे.

    बांग्लादेश के संस्कृति मंत्रालय ने इस म्यूजियम के संचालन और देखरेख के लिए 200 पदों के सृजन का प्रस्ताव भी तैयार किया है. सरकार इसे "शेख हसीना के कुशासन की ऐतिहासिक समीक्षा" और "जनांदोलनों के बलिदान की याद" के तौर पर प्रचारित कर रही है.

    शेख मुजीब पर हमले: नई विचारधारा की शुरुआत?

    पिछले एक साल में बांग्लादेश में केवल शेख हसीना ही नहीं, बल्कि उनके पिता शेख मुजीबुर्रहमान की विरासत पर भी हमले तेज हुए हैं:

    • कई स्थानों पर शेख मुजीब की मूर्तियाँ तोड़ी गईं.
    • सार्वजनिक भवनों और सड़कों से उनके नाम की नेमप्लेट हटाई गईं.
    • स्कूल की पाठ्यपुस्तकों से उनके बारे में लिखे अध्यायों को संशोधित किया गया.
    • बांग्लादेशी मुद्रा से उनकी तस्वीर को हटाने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई.
    • यहां तक कि आज़ादी दिवस और संस्थापक दिवस से जुड़ी सरकारी छुट्टियाँ भी रद्द कर दी गईं.

    यह सब एक संकेत है सत्ता बदलने के बाद इतिहास और प्रतीकों की पुनर्रचना कैसे की जाती है, और जनमानस को नई वैचारिक धारा की ओर कैसे मोड़ा जाता है.

    हसीना भारत में निर्वासन, बांग्लादेश में बेचैनी

    5 अगस्त 2024 को इस्तीफे के बाद से शेख हसीना भारत में रह रही हैं. उनका देश छोड़ना ऐसे समय हुआ जब छात्रों और आम नागरिकों ने उनके खिलाफ तीव्र आंदोलन शुरू कर दिया था.

    इसका मुख्य कारण था बांग्लादेश हाईकोर्ट द्वारा लागू किया गया 30% कोटा सिस्टम, जो स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिवारों को सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता देता था.

    • इस निर्णय के खिलाफ सबसे पहले विश्वविद्यालयों में छात्रों ने विरोध किया.
    • सरकार ने इस आरक्षण को रद्द कर दिया, लेकिन तब तक प्रदर्शन राजनीतिक रंग ले चुका था.
    • छात्रों ने शेख हसीना के इस्तीफे की मांग शुरू कर दी.
    • देशभर में सरकार विरोधी लहर फैल गई, और अंततः हसीना को सत्ता छोड़नी पड़ी.

    गणभवन को म्यूजियम में बदलने की पहल एक महत्वपूर्ण प्रतीक है, यह दर्शाता है कि कैसे सत्ता परिवर्तन के बाद पूर्व नेताओं की विरासतों की पुनर्खोज होती है.

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