बलूचिस्तान अब पाकिस्तान के हाथ से निकल चुका है. वहां अब विद्रोह नहीं, सीधा युद्ध छिड़ा है — ऐसा युद्ध जो अब छिपकर नहीं, खुले मैदान में लड़ा जा रहा है. 37 जिलों वाला ये प्रांत अब किसी एक इलाके की शिकायत नहीं है, अब ये पाकिस्तान के खिलाफ खड़ा एक संगठित मोर्चा है. बलूच विद्रोही अब सिर्फ हमला नहीं करते, अब वो ज़मीन पर कब्जा लेते हैं, नाकेबंदी करते हैं, और हर बार पाकिस्तान को उसके ही नक्शे पर खरोंच देते हैं.
इस साल के शुरू होते ही बलूच लिबरेशन आर्मी ने ‘ऑपरेशन बाम’ नाम से एक बड़ा अभियान शुरू किया. इसका मतलब है Coordinated Guerrilla Attacks — यानी ऐसे हमले जो अचानक हों, लेकिन हर जगह एक ही समय पर हों, और जिनका असर सिर्फ बंदूकों तक सीमित न रहे, बल्कि सत्ता की रीढ़ तक पहुंचे. और गुरुवार को यही हुआ. एक ही घंटे के भीतर आठ अलग-अलग जिलों में आठ सुनियोजित हमले हुए.
आधे घंटे से ज्यादा समय तक गोलियां बरसीं
खारन जिले के लत्ताद में फ्रंटियर कोर की चौकी पर हमला कर उसे तबाह कर दिया गया. दश्त में सरकारी सचिवालय की बस पर हमला हुआ. केच जिले के टम्प इलाक़े में मीराबाद, बलिचा और ज़मरान बाज़ार जैसे हिस्सों को घेरकर पाकिस्तानी सरकार की नाकाबंदी की गई, जिससे न केवल सुरक्षा पर सवाल खड़े हुए बल्कि आर्थिक धमनियों पर भी चोट पहुंची. डोलेजी के झाओ में पाक सेना के कैंप पर आधे घंटे से ज्यादा समय तक गोलियां बरसीं. क्वेटा के किरानी रोड पर हज़ारा टाउन के पास चौकी पर हथियारबंद लड़ाकों ने हमला किया. टम्प के गोमाज़ी इलाके में भी एक सुरक्षा चौकी को टारगेट किया गया. खारन के सोपाक क्रॉस पर की गई नाकाबंदी इतनी लंबी चली कि पाकिस्तान की सप्लाई लाइनें थम गईं. और दलबंदिन में गैस से लदे ट्रकों को बम से उड़ा दिया गया.
ये घटनाएं अचानक नहीं हुईं, ये किसी गुप्त संगठन की फुसफुसाहट नहीं थीं. ये साफ-साफ एलान था कि बलूचिस्तान अब कंट्रोल में नहीं है. और ये कोई एक दिन की बात नहीं. बलूच लिबरेशन आर्मी ने जनवरी से जून 2025 के बीच 284 हमले किए हैं. इनमें 9 हाई-प्रोफाइल ऑपरेशन थे, 3 फिदायीन हमले और 121 IED ब्लास्ट. अगर BLA के दावों पर भरोसा करें, तो इन हमलों में पाकिस्तान के 668 सैनिक मारे जा चुके हैं. यानी हर तीसरे दिन करीब तीन सैनिक — और वो भी अपने ही देश में, अपनी ही चौकी पर.
लेकिन बात सिर्फ हमलों की नहीं है. बात अब कब्जे की है. विद्रोहियों ने सिर्फ गोलियां नहीं चलाईं, उन्होंने ज़मीन भी छीनी है. बलूच लिबरेशन आर्मी का दावा है कि उन्होंने बलूचिस्तान में 45 अहम स्थानों पर नियंत्रण स्थापित कर लिया है. इनमें कालट जिले का मंगोचर शहर भी शामिल है, जो रणनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील माना जाता है. यह कब्जा सिर्फ एक प्रतीक नहीं है, यह पाकिस्तान की प्रशासनिक पकड़ की खुली हार है.
सड़कों पर घंटों की नाकेबंदी
इस पूरे संघर्ष का सबसे बड़ा शिकार CPEC बना है — चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा. ये वही प्रोजेक्ट है जो चीन के लिए सपना था और पाकिस्तान के लिए गर्व. लेकिन अब यही गलियारा, बारूदी सुरंग बन चुका है. पाइपलाइनों को उड़ा दिया गया है, सड़कों पर घंटों की नाकेबंदी है, और वहां काम कर रहे इंजीनियर अब खुद को सुरक्षित नहीं मानते. जो गलियारा पाकिस्तान को समृद्धि की ओर ले जाने वाला था, वो अब जलती हुई ज़ंजीर बन चुका है.
सवाल सिर्फ पाकिस्तान की सुरक्षा का नहीं है, सवाल उसकी सत्ता की वैधता का है. बलूचिस्तान की सड़कों पर अब सिर्फ बारूद नहीं बिछा है, वहां एक सवाल गूंज रहा है — क्या पाकिस्तान अब भी एकजुट देश है, या उसका सबसे बड़ा प्रांत अब उसके हाथ से फिसल चुका है? और ये सवाल सिर्फ बलूच नहीं पूछ रहे, अब खुद पाकिस्तान के भीतर से आवाज़ें उठ रही हैं.
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