ख्वाजा आसिफ के बयान से पाकिस्तान से बवाल! शिमला समझौते को लेकर कही थी ये बात

    Asif Khwaja Remarks on Kashmir Deal: भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते कूटनीतिक तनाव के बीच शिमला समझौते को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा हो गई थी. पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने इस ऐतिहासिक समझौते को "मृत दस्तावेज" बताते हुए उसकी प्रासंगिकता पर सवाल उठाए, लेकिन अब पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने साफ किया है कि इस समझौते को रद्द करने का कोई औपचारिक निर्णय नहीं लिया गया है.

    Asif Khwaja Remarks on Kashmir Deal pakistan damage controlling now
    Image Source: ANI

    Asif Khwaja Remarks on Kashmir Deal: भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते कूटनीतिक तनाव के बीच शिमला समझौते को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा हो गई थी. पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने इस ऐतिहासिक समझौते को "मृत दस्तावेज" बताते हुए उसकी प्रासंगिकता पर सवाल उठाए, लेकिन अब पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने साफ किया है कि इस समझौते को रद्द करने का कोई औपचारिक निर्णय नहीं लिया गया है.

     'शिमला समझौता अब अप्रासंगिक'

    5 जून को समा टीवी को दिए इंटरव्यू में पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने दावा किया कि 1972 का शिमला समझौता अब अप्रासंगिक हो चुका है. उन्होंने कहा, भारत और पाकिस्तान फिर से 1948 जैसी स्थिति में पहुंच गए हैं. LOC अब सिर्फ युद्धविराम रेखा है, शिमला समझौता अब कोई मतलब नहीं रखता. इस बयान ने राजनीतिक गलियारों और मीडिया में हलचल मचा दी, क्योंकि यह एक ऐसे दस्तावेज पर सवाल था जो भारत-पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय वार्ताओं की नींव रहा है.

    ‘कोई समझौता खत्म नहीं किया गया’

    हालांकि एक दिन बाद, पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा कि किसी भी द्विपक्षीय समझौते को समाप्त करने का फैसला नहीं लिया गया है, और यह बयान केवल आंतरिक चर्चाओं का हिस्सा हो सकता है. एक वरिष्ठ अधिकारी ने पाकिस्तानी अखबार एक्सप्रेस ट्रिब्यून को बताया "अभी तक पाकिस्तान ने भारत के साथ किसी भी समझौते को रद्द करने की औपचारिक प्रक्रिया शुरू नहीं की है. शिमला समझौता और अन्य द्विपक्षीय समझौते अभी भी लागू हैं."

    क्या है शिमला समझौता और क्यों है यह महत्वपूर्ण?

    शिमला समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 के युद्ध के बाद 1972 में हुआ था, जब भारतीय सेना ने पाकिस्तान के 90,000 सैनिकों को युद्धबंदी बना लिया था. इस समझौते पर भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने हस्ताक्षर किए थे.

    इस समझौते की मुख्य शर्तें थीं

    सभी विवाद द्विपक्षीय बातचीत के जरिए सुलझाए जाएंगे. किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को स्वीकार नहीं किया जाएगा. नियंत्रण रेखा (LOC) को आपसी सहमति से तय किया गया था. यह समझौता दशकों से भारत-पाकिस्तान के कूटनीतिक रिश्तों की बुनियाद रहा है.