तिब्बत में चीन का एक और एयरबेस एक्टिव, इन लड़ाकू विमानों को किया तैनात, भारत को इससे कितना खतरा?

    चीन ने भारत की उत्तरी सीमाओं से लगे तिब्बत के संवेदनशील इलाके में अपने नागरी गुंसा एयरबेस को सैन्य रूप से पूरी तरह सक्रिय कर दिया है.

    Another Chinese airbase active in Tibet
    प्रतीकात्मक तस्वीर/Photo- FreePik

    बीजिंग: चीन ने भारत की उत्तरी सीमाओं से लगे तिब्बत के संवेदनशील इलाके में अपने नागरी गुंसा एयरबेस को सैन्य रूप से पूरी तरह सक्रिय कर दिया है. हाल में सामने आई सैटेलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि इस एयरबेस पर पहली बार लड़ाकू विमानों के साथ Y-20 भारी ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट को भी तैनात किया गया है. इस कदम को बीजिंग द्वारा भारत के खिलाफ अपनी सामरिक तैयारी को और मजबूत करने की दिशा में एक निर्णायक कदम माना जा रहा है.

    सैटेलाइट तस्वीरों से हुआ खुलासा

    ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस विश्लेषक @detresfa_ द्वारा साझा की गई हाई-रिज़ॉल्यूशन सैटेलाइट तस्वीरों में यह स्पष्ट देखा गया कि नगारी गुंसा हवाई अड्डे पर एक नया सैन्य एप्रन बनाया गया है, जहां चार J-11 लड़ाकू विमान और एक Y-20 सैन्य ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट खड़े हैं.

    J-11 लड़ाकू विमान की तैनाती यह दर्शाती है कि यह बेस अब केवल नागरिक उड़ानों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसकी भूमिका अब क्षेत्रीय सैन्य अभियानों और सीमा पर निगरानी मिशनों में भी है.

    Y-20: चीन का सामरिक 'हवाई ट्रक'

    Y-20, जिसे "कुनपेंग" भी कहा जाता है, चीन का सबसे बड़ा ट्रांसपोर्ट विमान है और यह 66 टन तक का पेलोड ले जाने में सक्षम है. इसकी रेंज 4,500 किलोमीटर है, यानी यह तिब्बत से भारत के किसी भी भाग तक तेजी से सैनिकों और साजो-सामान की डिलीवरी कर सकता है.

    विशेषज्ञ मानते हैं कि Y-20 की तैनाती चीन के एयर-मोबिलिटी (हवाई गतिशीलता) नेटवर्क को लद्दाख जैसे दुर्गम क्षेत्रों में भी ऑपरेशनल बना देती है, जिससे आपातकालीन हालात में तेजी से सैन्य जवाबी कार्रवाई संभव होती है.

    भारत के लिए रणनीतिक चेतावनी

    नगारी गुंसा एयरबेस की स्थिति भारत के उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और लद्दाख की सीमा से बेहद नजदीक है. 2020 के गलवान घाटी टकराव और डेमचोक सेक्टर में हुए तनाव को ध्यान में रखते हुए यह एयरबेस भविष्य में हवाई निगरानी और त्वरित सैन्य हस्तक्षेप का मुख्य केंद्र बन सकता है.

    एयरबेस से J-11 जैसे लड़ाकू विमानों की तैनाती यह सुनिश्चित करती है कि चीन क्षेत्रीय हवाई नियंत्रण हासिल करने की क्षमता विकसित कर रहा है. J-11 की 3,530 किलोमीटर की रेंज उसे भारत के भीतर गहराई तक कार्रवाई करने की संभावनाएं देती है.

    सैन्य बुनियादी ढांचा भी बन रहा मज़बूत

    चीन ने तिब्बत के एयरबेसों पर बुलेटप्रूफ हैंगर, सैनिकों के आवास, और अतिरिक्त रनवे जैसी सुविधाएं विकसित की हैं. यह प्रक्रिया पिछले कुछ वर्षों से चल रही है, लेकिन अब इसका परिणाम स्पष्ट रूप से जमीन पर दिख रहा है.

    विशेषज्ञों के अनुसार, यह "पीसटाइम प्रिपरेशन" चीन की दीर्घकालिक सैन्य रणनीति का हिस्सा है, जहां वह सीमावर्ती इलाकों में जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर पहले से तैयार कर रहा है, जिससे किसी भी आकस्मिक टकराव की स्थिति में तुरंत प्रतिक्रिया दी जा सके.

    भारत की रणनीतिक प्रतिक्रिया की जरूरत

    भारत ने पहले ही LAC (Line of Actual Control) पर अपनी स्थिति मजबूत की है. अरुणाचल प्रदेश, लद्दाख और उत्तराखंड में बुनियादी ढांचे के विकास को प्राथमिकता दी जा रही है. लेकिन अब जब चीन ने एक और एयरबेस को पूर्ण रूप से सैन्य संचालन के लिए एक्टिव कर दिया है, तो भारत को भी निम्नलिखित कदम तेज़ी से उठाने की आवश्यकता है:

    • हवाई निगरानी की ताकत में इज़ाफ़ा
    • उत्तर-पश्चिमी कमान में रैपिड रेस्पॉन्स यूनिट्स की तैनाती
    • वायुसेना के एडवांस्ड एयरबेस की संख्या और गहराई बढ़ाना
    • अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के जरिए चीन की सैन्य गतिविधियों पर दबाव बनाना

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