नई दिल्ली: 30 जुलाई 2025 को एक विमान जितना बड़ा एस्टेरॉयड ‘2025 OL1’ धरती के पास से गुजरेगा. NASA ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा है कि यह अंतरिक्ष पिंड धरती से करीब 12.9 लाख किलोमीटर की दूरी से गुजरेगा, जो कि चांद की दूरी से लगभग तीन गुना अधिक है. यानी, इंसानी नजरिए से यह एक सुरक्षित दूरी मानी जा रही है.
इस एस्टेरॉयड की गति लगभग 27,204 किलोमीटर प्रति घंटा है और इसका आकार करीब 110 फीट है, जो एक छोटे यात्री विमान जितना है. NASA ने इसे ट्रैक करते हुए 'पोटेंशियली हैज़र्डस ऑब्जेक्ट' की कैटेगरी में जरूर रखा है, लेकिन साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि इससे कोई तत्काल खतरा नहीं है.
कितना नजदीक होगा इसका फासला?
‘2025 OL1’ धरती से 1.29 मिलियन किलोमीटर दूर से निकलेगा. हालांकि यह दूरी अंतरिक्ष विज्ञान के मानकों के अनुसार “करीब” मानी जाती है, लेकिन वास्तव में यह पूरी तरह से सुरक्षित है. तुलना करें तो चंद्रमा धरती से महज 3.84 लाख किलोमीटर की दूरी पर है.
NASA का नियम है कि अगर कोई एस्टेरॉयड 7.4 मिलियन किलोमीटर के दायरे में आता है और उसका आकार 85 मीटर (लगभग 280 फीट) या उससे बड़ा है, तभी उसे 'संभावित रूप से खतरनाक' माना जाता है. ‘2025 OL1’ आकार के लिहाज से इस श्रेणी के करीब जरूर है, लेकिन दूरी के चलते यह खतरे की रेखा से बाहर है.
एस्टेरॉयड से डर क्यों?
इतिहास गवाह है कि एस्टेरॉयड से टकराव कितना खतरनाक हो सकता है. 1908 में तुंगुस्का, साइबेरिया में गिरे एक एस्टेरॉयड ने करीब 2000 वर्ग किलोमीटर जंगल को तबाह कर दिया था. इसलिए जब भी कोई बड़ा एस्टेरॉयड धरती के पास आता है, दुनिया भर की अंतरिक्ष एजेंसियां अलर्ट हो जाती हैं.
NASA और ISRO जैसी संस्थाएं लगातार Near-Earth Objects (NEOs) पर निगरानी रखती हैं ताकि किसी संभावित टक्कर की पहले से पहचान की जा सके और आवश्यक कदम उठाए जा सकें.
ISRO की भी सतर्क निगाह
भारत की अंतरिक्ष एजेंसी ISRO भी अब इन खतरों को लेकर गंभीर है. एजेंसी के प्रमुख एस. सोमनाथ ने हाल ही में कहा कि भारत को भविष्य की किसी भी अंतरिक्ष आपदा के लिए तैयार रहना होगा. ISRO खासकर Apophis जैसे विशाल एस्टेरॉयड्स पर नजर रख रहा है, जो 2029 में बेहद करीब से धरती के पास से गुजरेगा.
ISRO अब NASA, ESA (यूरोप), और JAXA (जापान) जैसी वैश्विक एजेंसियों के साथ मिलकर एस्टेरॉयड डिटेक्शन और डिफ्लेक्शन तकनीक पर भी काम कर रहा है.
वैज्ञानिकों के लिए एक सुनहरा मौका
‘2025 OL1’ भले ही खतरा न हो, लेकिन यह खगोलीय घटना वैज्ञानिकों के लिए अमूल्य अवसर है. ऐसे नजदीकी फ्लाईबाय वैज्ञानिकों को एस्टेरॉयड की संरचना, गति और गुरुत्वाकर्षण पर इसके प्रभाव को समझने में मदद करते हैं.
NASA इस दौरान स्पेस टेलीस्कोप, ग्राउंड ऑब्ज़र्वेटरी और AI-आधारित ट्रैकिंग सिस्टम्स के ज़रिए डेटा इकट्ठा करेगा. इसी तरह की टेक्नोलॉजी की मदद से DART मिशन को भी सफल बनाया गया था, जिसमें जानबूझकर एक स्पेसक्राफ्ट को एस्टेरॉयड से टकराकर उसकी दिशा बदली गई थी.
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