भारत के इस पहाड़ पर दब गया था 5 किलो प्लूटोनियम वाला परमाणु डिवाइस, जानें नंदा पर्वत की पूरी कहानी

    उत्तराखंड की सबसे प्रतिष्ठित और रहस्यमयी चोटी नंदा देवी एक बार फिर सुर्खियों में है. कारण? राज्य सरकार इसे दोबारा पर्वतारोहण के लिए खोलने की तैयारी कर रही है.

    A 5 kg nuclear bomb is buried on this mountain in India
    प्रतिकात्मक तस्वीर/ ANI

    देहरादून: उत्तराखंड की सबसे प्रतिष्ठित और रहस्यमयी चोटी नंदा देवी एक बार फिर सुर्खियों में है. कारण? राज्य सरकार इसे दोबारा पर्वतारोहण के लिए खोलने की तैयारी कर रही है. जहां एक ओर यह कदम साहसिक पर्यटन को बढ़ावा देने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है, वहीं दूसरी ओर 1965 के परमाणु मिशन का अदृश्य डर भी फिर से चर्चा में आ गया है.

    नंदा देवी: एक पवित्रता, एक पर्व, एक पहेली

    नंदा देवी केवल एक पर्वत चोटी नहीं है, यह उत्तराखंड की सांस्कृतिक चेतना और धार्मिक श्रद्धा का केंद्र भी है. हर 12 साल में आयोजित होने वाली नंदा राज जात यात्रा में हजारों श्रद्धालु देवी को मायके से ससुराल तक ‘विदा’ करने निकलते हैं – एक परंपरा जो सदियों से जीवित है.

    इसके साथ ही, नंदा देवी पर्वत साहसिक पर्वतारोहियों के लिए भी हमेशा से आकर्षण का केंद्र रहा है. 1982 में जब इसे पर्यावरणीय चिंताओं के चलते बंद किया गया, तो कई रोमांचप्रेमियों के लिए यह एक अधूरी यात्रा बन गई थी.

    अब रोमांच के लिए दोबारा खुलेगा दरवाज़ा

    राज्य सरकार और भारतीय पर्वतारोहण फाउंडेशन (IMF) ने हाल ही में एक बैठक की, जिसमें नंदा देवी को अनुभवी पर्वतारोहियों के लिए फिर से खोलने का प्रस्ताव पेश किया गया. पर्यटन सचिव धीरज सिंह गर्ब्याल की अध्यक्षता में हुई बैठक में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि उत्तराखंड को "एडवेंचर टूरिज्म हब" के रूप में स्थापित किया जाए.

    क्या नंदा देवी अब भी रेडियोएक्टिव है?

    यहीं से कहानी में आता है वह अध्याय, जो नंदा देवी को आम पर्वतों से अलग करता है — 1965 का परमाणु मिशन. उस वर्ष, जब शीत युद्ध अपने चरम पर था, अमेरिका की CIA और भारत की इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) ने मिलकर चीन की गतिविधियों पर निगरानी रखने के लिए नंदा देवी की चोटी पर परमाणु डिवाइस स्थापित करने का फैसला किया. यह डिवाइस एक मिनी-परमाणु जनरेटर था जिसमें 5 किलोग्राम प्लूटोनियम-238 था — अत्यधिक रेडियोधर्मी तत्व.

    लेकिन ऑपरेशन के दौरान अचानक मौसम बिगड़ा, और डिवाइस को वहीं छोड़ना पड़ा. जब अगली बार टीम लौटी, तो परमाणु डिवाइस गायब था. अनुमान लगाया गया कि वह हिमस्खलन या ग्लेशियर के भीतर दब गया. अब तक वह डिवाइस कभी नहीं मिला.

    खतरे की आशंका या भ्रम?

    विज्ञान और सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि अगर वह डिवाइस अब भी ग्लेशियर में मौजूद है और धीरे-धीरे रिस रहा है, तो यह स्थानीय पर्यावरण और नदी तंत्र के लिए गंभीर खतरा बन सकता है.

    पर्वतारोही तरुण महारा जैसे विशेषज्ञों का कहना है कि चोटी को फिर से खोलने से पहले सख्त वैज्ञानिक मूल्यांकन और रेडिएशन जांच जरूरी है. उनका मानना है कि “एक रोमांच के चक्कर में हम भविष्य की पीढ़ियों के लिए जोखिम न खड़ा करें.”

    सरकार का रुख: पर्यटन और सुरक्षा में संतुलन

    सरकार इस प्रयास को केवल पर्यटन का मामला नहीं मान रही है, बल्कि यह एक संवेदनशील सुरक्षा और पर्यावरणीय फैसला भी है. अधिकारियों ने कहा है कि किसी भी कदम से पहले पूरी जांच, सर्वे और सुरक्षा मूल्यांकन किया जाएगा.

    पर्यटन विभाग का दावा है कि इस परियोजना से न केवल विदेशी पर्वतारोहियों को आकर्षित किया जा सकेगा, बल्कि स्थानीय युवाओं के लिए रोज़गार और प्रशिक्षण के नए अवसर भी पैदा होंगे.

    ये भी पढ़ें- गाजा में फिर बड़ा हमला करेगा इजरायल, शरणार्थी शिविर दीर अल-बला को खाली करने का निर्देश, मचेगी तबाही!