इस्लामाबाद: हिमालय की बर्फ अब वैसी नहीं रहेगी जैसी सदियों से रही है. एक ताज़ा वैज्ञानिक रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि अगर ग्लोबल वॉर्मिंग यूं ही बढ़ती रही, तो इस सदी के अंत तक हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र की लगभग 75% ग्लेशियर बर्फ गायब हो सकती है. यह केवल एक पर्यावरणीय चेतावनी नहीं है, बल्कि दक्षिण एशिया की जल सुरक्षा, खाद्य आपूर्ति और कूटनीतिक स्थिरता पर सीधा प्रभाव डालने वाला संकट है.
हिमालय से लेकर हिंद महासागर तक संकट
हिंदू कुश हिमालयी क्षेत्र न केवल भारत, बल्कि पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, चीन, अफगानिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों की प्रमुख नदियों का स्रोत है. यहां से निकलने वाली नदियों — जैसे सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र — पर करीब 2 अरब लोग प्रत्यक्ष रूप से निर्भर हैं. रिपोर्ट बताती है कि यदि वैश्विक तापमान औद्योगिक युग से 2°C ज्यादा हो जाता है, तो जल स्रोतों की यह रीढ़ टूटने लगेगी.
पाकिस्तान के लिए दोहरी चुनौती
हाल ही में भारत द्वारा सिंधु जल समझौते को आंशिक रूप से स्थगित करने के फैसले के बाद पाकिस्तान पहले ही पानी की राजनीति को लेकर तनाव में था. अब ग्लेशियर संकट ने इस चुनौती को और गंभीर बना दिया है.
पाकिस्तान की सिंचाई व्यवस्था का 80% से अधिक हिस्सा सिंधु नदी पर निर्भर है, जो हिमालयी ग्लेशियरों से ही जीवन पाती है. ऐसे में बर्फ का तेज़ी से पिघलना और नदियों के प्रवाह में अस्थिरता पाकिस्तान की खेती, पीने के पानी और ऊर्जा उत्पादन के लिए खतरनाक संकेत है.
एशिया से अमेरिका तक ग्लेशियरों पर मंडराता संकट
यह संकट केवल हिमालय तक सीमित नहीं है. रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर वैश्विक तापमान 2°C तक बढ़ता है तो:
UN सम्मेलन में हुआ बड़ा खुलासा
यह अध्ययन ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में आयोजित पहले अंतरराष्ट्रीय ग्लेशियर सम्मेलन में पेश किया गया, जहां 50 से अधिक देशों के प्रतिनिधियों ने इस संकट पर चर्चा की.
एशियन डेवलपमेंट बैंक के उपाध्यक्ष यिंगमिंग यांग ने कहा, "पिघलते ग्लेशियर एशिया के 2 अरब लोगों की आजीविका को सीधे तौर पर खतरे में डाल रहे हैं. अगर हम कार्बन उत्सर्जन में कटौती नहीं करते, तो पानी का संकट केवल और गहरा होगा."
क्या कहता है अध्ययन?
क्या बचाव का कोई रास्ता है?
हां. वैज्ञानिकों के अनुसार, अगर दुनिया पेरिस जलवायु समझौते के लक्ष्य — 1.5°C तापमान वृद्धि की सीमा — को हासिल कर लेती है, तो:
लेकिन इसके लिए तत्काल और ठोस जलवायु नीति, नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है.
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