दिल्ली में 10 साल के बच्चे ने सात घंटे खेला फ्री फायर गेम, चार घंटे देखा यूट्यूब, फिर लगा ली फांसी

    राजधानी दिल्ली के नांगलोई इलाके में 10 वर्षीय बच्चे की संदिग्ध आत्महत्या ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं.

    10 year old child committed suicide by hanging himself in Delhi
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    नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली के नांगलोई इलाके में 10 वर्षीय बच्चे की संदिग्ध आत्महत्या ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. बच्चा एक सरकारी एमसीडी स्कूल में पढ़ता था और अंबिका विहार कॉलोनी में अपने माता-पिता के साथ रहता था. माता-पिता दोनों नौकरी करते हैं, ऐसे में बच्चे को अकेले घर पर समय बिताना पड़ता था.

    पुलिस जांच में सामने आया कि बच्चे ने घटना के दिन करीब 11 घंटे मोबाइल फोन पर बिताए जिसमें सात घंटे लगातार ‘फ्री फायर’ जैसे एक्शन गेम खेला और करीब चार घंटे यूट्यूब पर वीडियो देखे. भारी बारिश के चलते स्कूल उस दिन बंद था और माता-पिता काम पर गए थे. जब शाम को वे घर लौटे, तो बेटे का शव लोहे की पाइप से लटकता मिला.

    हालांकि बच्चे के शरीर पर किसी तरह की चोट के निशान नहीं थे, जिससे आत्महत्या की बात को बल मिल रहा है, लेकिन पिता का दावा है कि यह आत्महत्या नहीं, बल्कि हत्या है. उनका तर्क है कि फंदा जिस ऊंचाई पर था (करीब 10 फीट), वहां बच्चा खुद से नहीं पहुंच सकता था. इस दावे ने मामले को और जटिल बना दिया है.

    अब पुलिस इस पूरे प्रकरण की तफ्तीश कर रही है:

    • क्या ये आत्महत्या है या हत्या का रूप देकर मामला छिपाया जा रहा है?
    • क्या मोबाइल गेम में हार या स्कूल का कोई दबाव इस कदम की वजह बना?
    • क्या अकेलेपन और डिजिटल कंटेंट का बेतरतीब इस्तेमाल मानसिक तनाव की वजह बना?

    इंदौर: 13 साल के छात्र ने पैसे हारने के बाद की खुदकुशी

    इसी दिन मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में भी एक दर्दनाक हादसा हुआ. 7वीं कक्षा में पढ़ने वाला 13 वर्षीय छात्र अंकलन जैन ने फांसी लगाकर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली. जांच में सामने आया कि वह ‘फ्री फायर’ गेम का आदी था और उसने इस गेम के लिए अपनी मां के डेबिट कार्ड से 2800 रुपये खर्च कर दिए थे.

    अंकलन के पास सिम कार्ड नहीं था, लेकिन उसका मोबाइल वाई-फाई से जुड़ा था. उसने अपनी गेमिंग आईडी से मां के डेबिट कार्ड को लिंक कर लिया था. जब उसने पैसे गंवा दिए और यह बात मां को बताई, तो उसे डर था कि घरवाले नाराज होंगे. इसी डर, शर्म और मानसिक तनाव में आकर उसने फांसी लगा ली.

    बच्चे की मौत के बाद अस्पताल ले जाया गया, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया. परिजनों ने साहस दिखाते हुए बेटे के नेत्रदान का फैसला लिया.

    टेक्नोलॉजी बनती जा रही है मासूमों की दुश्मन?

    दोनों मामलों में एक समान पैटर्न देखने को मिला है बच्चे डिजिटल कंटेंट और गेम्स में पूरी तरह उलझे हुए थे, उन्हें अभिभावकों से उचित निगरानी या भावनात्मक मार्गदर्शन नहीं मिला, और तनाव के समय वे खुद को अकेला महसूस कर बैठे. फ्री फायर जैसे एक्शन-थीम गेम्स बच्चों में आक्रामकता, प्रतिस्पर्धा और जीतने की बेताबी बढ़ाते हैं, जो छोटी उम्र में मानसिक दबाव की बड़ी वजह बन सकता है.

    इसके अलावा, यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म्स पर बच्चों को उम्र-उपयुक्त कंटेंट का न मिल पाना और घंटों तक स्क्रीन पर रहने की आदत भी उनकी भावनात्मक सेहत को कमजोर कर रही है.

    विशेषज्ञ क्या कहते हैं?

    मनोचिकित्सकों के अनुसार, छोटे बच्चों की मानसिक परिपक्वता इतनी नहीं होती कि वे हार, आलोचना या आर्थिक नुकसान जैसी चीजों को संभाल सकें. मोबाइल पर घंटों बिताना न सिर्फ उनके मानसिक संतुलन को बिगाड़ता है, बल्कि सामाजिक अलगाव, नींद की कमी, और डिप्रेशन जैसी समस्याएं भी जन्म लेती हैं.

    ज़रूरत क्या है?

    • डिजिटल डिटॉक्स: बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम का सख्त निर्धारण जरूरी है.
    • पैरेंटल गाइडेंस: गेम्स और इंटरनेट यूज़ की निगरानी करें. बच्चों से संवाद बढ़ाएं.
    • स्कूल काउंसलिंग: हर स्कूल में मेंटल हेल्थ काउंसलर की नियुक्ति हो.
    • सरकारी नियंत्रण: गेमिंग ऐप्स पर उम्र के अनुसार कंट्रोल और ट्रांजेक्शन लिमिट हो.

    संवेदनशील मीडिया कवरेज: आत्महत्या जैसे मामलों की रिपोर्टिंग जिम्मेदारी से हो ताकि किसी और मासूम को ऐसा कदम उठाने की प्रेरणा न मिले.

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