नई दिल्ली: भारत 24 के 'Vibrant Bharat Global Summit 2025' कार्यक्रम में शुक्रवार को कई दिगग्ज पहुंचे. इस खास कार्यक्रम में खास मेहमान केन्द्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी जुड़े और महाकुंभ से लेकर भारत में पर्यटन के भविष्य पर चर्चा की.
सवाल- इस बार कहा जा रहा है कि जो महाकुंभ है जो प्रयागराज में हुआ और वो सेंटीमेंट है वाइब है जो अक्सर कहा जाता था कि शायद 50 साल से ऊपर के लोग महाकुंभ जाया करते थे लेकिन इस बार तो 13, 14, 18 साल के बच्चे, युवा पीढ़ी वहां पर पहुंची है, तो हम समझना चाहेंगे कि ब्रांड इंडिया इस महाकुंभ के बाद कहां पहुंचा है?
गजेंद्र सिंह शेखावत का जवाब- आपने चर्चा की शुरुआत में कहा कि नासिक कुंभ की तैयारियां शुरू हो गई हैं, यह बिल्कुल सही है. जब मैं कल यहां आया, उससे एक दिन पहले यानी परसों, हम मध्य प्रदेश सरकार के साथ उज्जैन में बैठक कर रहे थे, जहां नासिक के आगामी कुंभ की तैयारियों की समीक्षा की जा रही थी. प्रयागराज महाकुंभ में अपेक्षा से दोगुनी भीड़ पहुंची, इसलिए यह तय है कि नासिक कुंभ में भी भारी संख्या में लोग आएंगे. इसीलिए, उज्जैन के जिला कलेक्टर, एसपी, कमिश्नर, डिविजनल कमिश्नर, पुलिस कमिश्नर और अन्य अधिकारियों को प्रयागराज भेजा गया ताकि वे वहां की व्यवस्थाओं को प्रत्यक्ष रूप से देख और समझ सकें.
अब बात करते हैं कुंभ के व्यापक प्रभाव की. 2013 के कुंभ के समय डिजिटल और सोशल मीडिया का उतना गहरा प्रभाव नहीं था, लेकिन आज यह समाज का अभिन्न हिस्सा बन चुका है. इसके अलावा, पिछले 10 वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 'इंडिया फैक्टर' हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए गर्व का विषय बना है.
एक और महत्वपूर्ण बात 'फियर ऑफ मिसिंग आउट' (FOMO) का प्रभाव भी इस बार देखने को मिला. जब लोगों को यह अहसास हुआ कि यह आयोजन 144 वर्षों बाद हो रहा है और अगली कई पीढ़ियां इससे वंचित रह सकती हैं, तो वे किसी भी हालत में इसका हिस्सा बनना चाहते थे. इसीलिए, 67 करोड़ लोग 45 दिनों के इस महासंगम में शामिल हुए.
कल भी ऐसा लग रहा था कि लोग कुंभ को समाप्त नहीं करना चाहते. लाखों की संख्या में लोग अभी भी वहां मौजूद थे. तकनीकी रूप से देखें तो महाकुंभ का समापन हो चुका है, लेकिन यह भारत की संस्कृति और परंपरा से अनवरत रूप से जुड़ा हुआ है.
जो लोग महाकुंभ को केवल बाहरी रूप से देखते हैं, उनके लिए 67 करोड़ की संख्या बहुत महत्वपूर्ण होगी. जो इसके प्रबंधन पर ध्यान देते हैं, उनके लिए यह सराहनीय है कि इतनी विशाल भीड़ के बावजूद स्वच्छता का बेहतरीन प्रबंधन किया गया. मैंने स्वयं लोगों को प्रेरित किया कि वे कुंभ में जाते समय अपने साथ कागज का थैला लेकर जाएं. विदेशी यात्रियों से भी कहा कि यदि वे तीन घंटे में आधा किलो कचरा इकट्ठा कर लें, तो मैं उनके टिकट प्रायोजित करूंगा.
67 करोड़ लोगों की उपस्थिति के बावजूद, सोशल मीडिया के इस दौर में यदि किसी को कोई असुविधा हुई होती, तो वह तुरंत वायरल हो जाती. कुछ लोग जानबूझकर नकारात्मकता फैलाने के लिए तैयार बैठे थे, लेकिन वे इसमें असफल रहे. कुंभ ऐसा आयोजन है, जो हर किसी को उसके दृष्टिकोण के अनुसार दिखता है—जो सकारात्मकता देखना चाहता है, उसे दिव्यता दिखती है, और जो नकारात्मकता खोजना चाहता है, वह उसी को देखता है.
कहीं-कहीं राजनीति और व्यक्तिगत एजेंडे के कारण नकारात्मकता फैलाने की कोशिश की गई होगी, लेकिन कुंभ का वास्तविक स्वरूप दिव्यता, समर्पण और भव्यता का प्रतीक बना रहेगा.
व्यवस्थाओं को लेकर कहीं से भी कोई नकारात्मक टिप्पणी देखने को नहीं मिली, लेकिन यह कुंभ का केवल बाहरी पक्ष है. मेरा मानना है कि कुंभ आदि अनादि काल से भारत को एकता के सूत्र में पिरोने का कार्य करता आया है. आज, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में हम "एक भारत, श्रेष्ठ भारत" की संकल्पना के साथ आगे बढ़ रहे हैं, जब हम अपनी विरासत पर गर्व करते हुए भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का लक्ष्य लेकर 2047 तक 140 करोड़ भारतीयों की सामूहिक शक्ति से जुटे हैं, तब यह कुंभ हमारी एकता और सामूहिक शक्ति को नई ऊर्जा प्रदान करता है.
कुंभ को केवल संख्याओं तक सीमित नहीं किया जा सकता. कुछ लोगों के लिए कुंभ का आकर्षण वहां माला बेचने वाली बहन मोनालिसा हो सकती हैं, किसी के लिए आईआईटी बाबा, किसी के लिए नागा साधुओं का स्नान, तो किसी के लिए पानी की गुणवत्ता पर चर्चा. लेकिन कुंभ केवल इन पहलुओं तक सीमित नहीं है. कुंभ भारत की आत्मा से जुड़ा हुआ है—यह भारत को भारत बनाता है, इसे एकता के सूत्र में पिरोता है.
हमारा देश विविधताओं से भरा हुआ है, लेकिन इन विविधताओं को एकजुट करने वाले कुछ प्रमुख तत्वों में से एक कुंभ भी है. यह कोई आज की बात नहीं है, बल्कि 2000-3000 साल पहले भी जब भारत अलग-अलग साम्राज्यों में विभाजित था, तब भी कुंभ इस भूमि को "एक भारत" बनाने का कार्य करता था. इसलिए, मैं मानता हूं कि यह कुंभ का समापन नहीं, बल्कि नए भारत के दृष्टिकोण से एक नए कुंभ की शुरुआत है.
सवाल- जब हम टेंपल टूरिज्म (मंदिर पर्यटन) की बात करते हैं, तो यह केवल पर्यटन तक सीमित नहीं रहता, बल्कि संस्कृति से भी गहराई से जुड़ा होता है. आज विभिन्न प्रकार के पर्यटन लोकप्रिय हो रहे हैं, और जब हम भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने की दिशा में बढ़ रहे हैं, तो हमारी अर्थव्यवस्था को 10 ट्रिलियन डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य भी है. यूपी सरकार ने कहा है कि कुंभ का योगदान उसकी अर्थव्यवस्था में 1% होगा, लेकिन वास्तव में, क्या यह पूरे देश की जीडीपी में 1% योगदान देगा?
गजेंद्र सिंह शेखावत का जवाब- अगर कुंभ की कुल आर्थिक गतिविधि को देखें, तो यह लगभग 3 लाख करोड़ रुपये से भी अधिक होगी. उत्तर प्रदेश के लिए यह निश्चित रूप से एक बड़ा बोनस है, लेकिन व्यापक स्तर पर यह पूरे भारत की अर्थव्यवस्था के लिए एक बहुत बड़ा आर्थिक उत्प्रेरक (economic driver) बनेगा.
जहां तक पर्यटन की बात है, भारत को 2070 तक तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य है, लेकिन मुझे लगता है कि हमें इतना लंबा इंतजार नहीं करना पड़ेगा—यह 2027 तक ही संभव हो सकता है.
आध्यात्मिक पर्यटन (स्पिरिचुअल टूरिज्म) में भी जबरदस्त वृद्धि हुई है. लोग न केवल आस्था के कारण, बल्कि भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को देखने और अनुभव करने के लिए भी मंदिरों की यात्रा कर रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में सरकार ने विभिन्न योजनाओं को धरातल पर उतारा है, जिससे पर्यटन और सांस्कृतिक उत्थान को नई दिशा मिली है.
पहले, देश के बहुसंख्यक समाज को केवल राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया जाता था—गरीबी हटाने के नारे तो दिए गए, लेकिन उन्हें बुनियादी सुविधाओं से बाहर नहीं निकाला गया. नरेंद्र मोदी सरकार की योजनाओं के कारण यह तबका अब न केवल गरीबी से बाहर निकला है, बल्कि 25 करोड़ से अधिक लोग सम्मानजनक रूप से मध्यम वर्ग का हिस्सा बन चुके हैं. सरकार की इन योजनाओं के चलते भारत आत्मनिर्भर बन रहा है और आगे बढ़ रहा है.
आज जब पहली बार उनकी जेब में डिस्पोजेबल इनकम आई, तो आकांक्षी वर्ग, जो पीढ़ियों से अपने सपनों को साकार करने की प्रतीक्षा कर रहा था, अब अपने माता-पिता को धार्मिक स्थलों की यात्रा कराने में सक्षम हो रहा है. वे अब कुंभ, राम मंदिर, काशी विश्वनाथ, महाकाल, जगन्नाथ धाम, केदारनाथ और चारधाम की यात्रा कर सकते हैं. यह सपना, जो सदियों से उनके मन में संजोया गया था, अब वास्तविकता में बदल रहा है. यही कारण है कि हमारे मंदिरों में बड़ी संख्या में श्रद्धालु उमड़ रहे हैं.
कोविड के बाद दुनिया का जीवन के प्रति दृष्टिकोण बदल गया है. लोगों को अब यह अहसास हो गया है कि जीवन क्षणभंगुर है और धन से अधिक मूल्यवान अनुभव और संबंध होते हैं. इस बदले हुए दृष्टिकोण ने पर्यटन को एक नई गति दी है, जिसे विश्व स्तर पर 'रिवेंज टूरिज्म' कहा जा रहा है. लोग, जो महामारी के दौरान घरों में सीमित थे, अब बड़ी संख्या में पर्यटक स्थलों की यात्रा कर रहे हैं. यही कारण है कि भारत का घरेलू पर्यटन इतनी तेज़ी से उभर रहा है.
कुछ लोगों ने गोवा के बारे में दुष्प्रचार फैलाने का प्रयास किया, लेकिन आंकड़ों की दृष्टि से देखा जाए तो भारत का पर्यटन, विशेष रूप से कोविड के बाद, सबसे तेज़ी से उभरने वाले क्षेत्रों में से एक है. वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो भारत पर्यटन क्षेत्र में सबसे बेहतर प्रदर्शन कर रहा है. पर्यटन का भारत की अर्थव्यवस्था में योगदान लगभग 6% है, लेकिन अगर धार्मिक पर्यटन को शामिल किया जाए, तो यह 10% तक पहुंच जाता है. कृषि के बाद, पर्यटन क्षेत्र सबसे अधिक रोजगार देने वाला क्षेत्र बन चुका है.
सवाल- हमें वो जमाना याद है कि जब हम नदी, पहाड़ों, पेड़ों की पूजा किया करते थे, अब हम टूरिजम के लिए पेड़ काट देते हैं, अब हम नदियों में से क्रिएटिविटी निकालते हैं हम बहुत ऐसी चीज कर रहे हैं जिसमें हम टूरिजम के नाम पर अफेक्ट कर रहे हैं, इसपर आप क्या कहेंगे?
शेखावत का जवाब- मोदी सरकार के नेतृत्व में भारत पर्यटन को बढ़ावा देने और इसे सतत एवं पर्यावरण-सम्मत बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है. 'मिशन लाइफ' और 'सस्टेनेबल टूरिज्म' की पहल के माध्यम से, पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना पर्यटन को विकसित करने के प्रयास किए जा रहे हैं. पर्यटन विकास के साथ-साथ हमारी सांस्कृतिक विरासत, प्राकृतिक संसाधन, वन्यजीव, समुद्री तट और आध्यात्मिक स्थल संरक्षित रहें, इस पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है.
भारत सरकार भाषाओं को भी संरक्षित करने के लिए प्रयासरत है. हाल ही में असमिया, बंगाली, पाली, प्राकृत और उड़िया को 'क्लासिकल लैंग्वेज' का दर्जा दिया गया है. प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि भाषा हमारी संस्कृति का वाहक है और इसे अगली पीढ़ी तक पहुंचाना आवश्यक है.
सवाल- भाषाओं के संरक्षण को लेकर क्योंकि यही भाषा है जो हमें हमारी संस्कृति से जोड़ के रखती है, संस्कृति मंत्रालय कल्चर मिनिस्ट्री भाषाओं को लेकर आगे कैसे बढ़ रही है?
शेखावत का जवाब- नई शिक्षा नीति में मातृभाषा में अध्ययन को प्रोत्साहित किया गया है ताकि भाषा और संस्कृति दोनों का संरक्षण हो सके. राजस्थानी भाषा को अनुसूचित भाषाओं में शामिल करने की मांग वर्षों से की जा रही है, और इस दिशा में निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं. हालांकि, भाषा के संरक्षण की ज़िम्मेदारी केवल सरकार की नहीं, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति की भी है. यदि हम अपनी मातृभाषा को अपने परिवारों और बच्चों के बीच जीवंत रखेंगे, तो ही यह आगे बढ़ेगी.
सवाल- क्यों आज भी हम श्री अन्न का जिक्र करते हैं और विदेशों में योगा भी हो रही है, विदेशों में श्री अन्न भी हो रहा है, जय श्री राम बोलते हैं, लेकिन अभी भी बर्गर और पास्ता ज्यादा फेमस है. भारत के किसी भी फूड से इसके लिए कोई तरीका है कि अपने आप को ग्लोबली ब्रांड बनाने के लिए कि बर्गर और पास्ता के ऊपर भारत का कोई एक खाना हो?
भारतीय खानपान की वैश्विक पहचान भी तेजी से बढ़ रही है. इंग्लैंड में 'चिकन टिक्का' को राष्ट्रीय व्यंजन का दर्जा प्राप्त है, और जर्मनी एवं फ्रांस जैसे देशों में सैकड़ों भारतीय रेस्टोरेंट खुल चुके हैं. भारत आने वाले समय में वैश्विक रसोईघर बनने की दिशा में अग्रसर है. दुनिया भर में भारतीय भोजन की मांग बढ़ रही है, और भारत अपने समृद्ध पाक कला के कारण अंतर्राष्ट्रीय खाद्य बाजार में एक प्रमुख स्थान हासिल करने वाला है.
आज की युवा पीढ़ी को आध्यात्मिकता से जोड़ना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है. धार्मिक स्थलों की यात्रा और मंदिरों में जाने से अधिक महत्वपूर्ण है कि हम अपने भीतर की शांति और मानसिक संतुलन को समझें. आध्यात्मिकता केवल आस्था से जुड़ी नहीं होती, बल्कि यह आत्म-जागृति और मानसिक शांति की ओर बढ़ने की प्रक्रिया है. भारत के समृद्ध आध्यात्मिक और योग परंपराओं को अपनाकर, युवा अपने तनाव को कम कर सकते हैं और एक संतुलित जीवन जी सकते हैं.
भारत की अर्थव्यवस्था, संस्कृति, भाषा, खानपान और आध्यात्मिकता को एक साथ सहेजते हुए, देश विश्व स्तर पर अपनी अलग पहचान बना रहा है. आने वाले वर्षों में, यह प्रवृत्ति और भी सशक्त होगी, और भारत पर्यटन, संस्कृति और आर्थिक क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व की ओर अग्रसर होगा.
आध्यात्मिक अनुभूतियों की प्राप्ति संभव है, लेकिन भारतीय दर्शन में हमारे ऋषियों ने इसके लिए एक विशिष्ट व्यवस्था खड़ी की है. यह विषय सामान्य व्यक्ति के लिए सहज रूप से समझने योग्य नहीं होता, इसलिए उसे इन विषयों से जोड़ने के लिए हमारे ऋषियों ने धर्म और आस्था के तंतुओं का उपयोग किया.
यदि हम प्रकृति के पंचमहाभूतों को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखें, तो उनकी उपस्थिति, सृष्टि की रचना में उनकी भूमिका और उनकी उपयोगिता को समझना आवश्यक हो जाता है. ईश्वर के संकल्प से सृष्टि की उत्पत्ति में इन पंचतत्त्वों का योगदान महत्वपूर्ण है. सामान्य व्यक्ति इसे गहराई से नहीं समझ सकता, लेकिन उसे इन पंचमहाभूतों और प्रकृति के संरक्षण से जोड़ने के लिए हमारे मनीषियों ने धर्म और आस्था के माध्यम से एक संरचना तैयार की.
हमारे ऋषियों ने यह कल्पना की कि जो कुछ भी देता है, वह देवता है. हमारे माता-पिता हमें जीवन देते हैं, इसलिए उन्हें देवता के रूप में पूजना चाहिए. मां अपने गर्भ में संतान को धारण कर जीवन देती है, इसलिए उसे सर्वोच्च स्थान प्राप्त है. पृथ्वी हमें जन्म से मृत्यु तक आश्रय देती है और अंततः हमें अपने भीतर समाहित कर लेती है, इसलिए उसे मां के रूप में पूजा जाता है. वृक्ष हमें फल, औषधि और प्राणवायु देते हैं, इसलिए उन्हें देवता माना गया. जल हमें जीवन प्रदान करता है, इसलिए नदियों को देवी के रूप में पूजा जाता है. गंगा, जो इस देश की 40% आबादी के जीवन का आधार है, उसे अत्यंत श्रद्धा के साथ देखा जाता है. पर्वत औषधियाँ प्रदान करते हैं, जल के स्रोत हैं, और अपने शिखर पर हिम धारण करते हैं, इसलिए उन्हें भी देवता माना गया. गाय हमें दूध देती है, इसलिए उसे देवी का दर्जा प्राप्त है.