191 साल पहले 36 बिहारी मजदूर बनकर गए और बसा दिया पूरा देश, जानें मॉरीशस की पूरी कहानी

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने दो दिवसीय आधिकारिक दौरे पर मॉरीशस पहुंचे हैं. इस यात्रा के दौरान वे मॉरीशस के 57वें राष्ट्रीय दिवस समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शामिल होंगे. इस अवसर पर पारंपरिक 'गीत गवई' गायन हुआ, जो भारतीय मूल के मॉरीशस वासियों की गहरी जड़ों को दर्शाता है.

    191 years ago 36 Biharis went as laborers and settled the whole country know the whole story of Mauritius
    प्रतीकात्मक तस्वीर/Photo- FreePik

    नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने दो दिवसीय आधिकारिक दौरे पर मॉरीशस पहुंचे हैं. इस यात्रा के दौरान वे मॉरीशस के 57वें राष्ट्रीय दिवस समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शामिल होंगे. इस अवसर पर पारंपरिक 'गीत गवई' गायन हुआ, जो भारतीय मूल के मॉरीशस वासियों की गहरी जड़ों को दर्शाता है. यह संयोग मात्र नहीं बल्कि 191 वर्षों पुरानी एक ऐतिहासिक कड़ी की याद दिलाता है, जब भारत से गिरमिटिया मजदूरों का पहला जत्था मॉरीशस पहुंचा था.

    हिंद महासागर में भारतवंशियों का बसेरा

    मॉरीशस, हिंद महासागर में स्थित एक खूबसूरत द्वीप राष्ट्र है, जिसकी कुल आबादी 12 लाख से अधिक है. यहां 70% लोग भारतीय मूल के हैं, जिनमें से 52% हिंदू, 30.7% ईसाई, 16.1% मुस्लिम और 2.9% चीनी समुदाय से हैं. मॉरीशस की संस्कृति और भाषा में भारतीयता की झलक साफ देखी जा सकती है. भोजपुरी भाषा और हिंदू परंपराएं यहां के दैनिक जीवन का हिस्सा हैं. मॉरीशस के पहले प्रधानमंत्री, सर शिवसागर रामगुलाम, बिहार के भोजपुर जिले के वंशज थे.

    1834: जब भारत से मजदूरों को लाया गया

    18वीं सदी में भारत में अकाल और भुखमरी के कारण लाखों लोगों की मौत हो गई थी. ब्रिटिश शासन ने इस परिस्थिति का लाभ उठाते हुए 'गिरमिटिया प्रथा' चलाई, जिसके तहत भारतीय मजदूरों को कर्ज के बदले मॉरीशस और अन्य ब्रिटिश उपनिवेशों में भेजा गया. ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें बेहतर रोजगार और जीवन की गारंटी का लालच दिया, लेकिन हकीकत कुछ और थी.

    10 सितंबर 1834 को कोलकाता से 36 मजदूरों का पहला जत्था एटलस नामक जहाज से रवाना हुआ और 2 नवंबर 1834 को मॉरीशस पहुंचा. ये सभी मजदूर बिहार से थे और मॉरीशस में गन्ने के खेतों में काम करने के लिए लाए गए थे. धीरे-धीरे यह सिलसिला बढ़ता गया और 1834 से 1910 के बीच करीब 4.5 लाख भारतीय मॉरीशस पहुंचे.

    अप्रवासी घाट: गिरमिटिया मजदूरों की यादगार

    जहां पहले भारतीय मजदूर मॉरीशस में उतरे थे, उसे आज 'अप्रवासी घाट' के नाम से जाना जाता है. यह स्थल मॉरीशस में भारतीय समुदाय के संघर्ष और योगदान का प्रतीक है. हर साल 2 नवंबर को 'अप्रवासी दिवस' के रूप में मनाया जाता है.

    गिरमिटिया मजदूरों का संघर्ष

    ब्रिटिश शासन के तहत मजदूरों को 5 साल बाद भारत लौटने की अनुमति दी गई थी, लेकिन उन्हें वापस लौटने से रोका गया. 1860 में इस शर्त को ही समाप्त कर दिया गया और मजदूरों को अमानवीय स्थितियों में रखा गया. धीरे-धीरे भारत से आने वाले मजदूर यहीं बसते गए, और उनकी अगली पीढ़ियों ने मॉरीशस को ही अपना घर बना लिया. 1931 तक, मॉरीशस की 68% आबादी भारतीय मूल की थी.

    मॉरीशस के राष्ट्रपिता: शिवसागर रामगुलाम

    भारत से आए गिरमिटिया मजदूरों में रामगुलाम परिवार भी शामिल था. मोहित रामगुलाम 1896 में बिहार से मॉरीशस आए. उनके पुत्र, शिवसागर रामगुलाम, इंग्लैंड में पढ़ाई करने के बाद मॉरीशस लौटे और स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया. 1968 में मॉरीशस आजाद हुआ और शिवसागर इसके पहले प्रधानमंत्री बने. उन्होंने देश में सामाजिक सुधार और मुफ्त शिक्षा जैसी योजनाएं लागू कीं.

    भारत-मॉरीशस के संबंध

    व्यापारिक संबंध: 2005 में भारत और मॉरीशस के बीच व्यापार 1792 करोड़ रुपये था, जो 2023-24 में बढ़कर 7403 करोड़ रुपये हो गया. मॉरीशस भारत में निवेश का एक महत्वपूर्ण स्रोत भी है.

    अंतरराष्ट्रीय समर्थन: भारत ने चागोस द्वीप विवाद में मॉरीशस का समर्थन किया, जबकि मॉरीशस ने संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन किया.

    सामरिक सहयोग: हिंद महासागर में चीन की बढ़ती गतिविधियों पर नजर रखने के लिए भारत ने मॉरीशस के अगालेगा द्वीप पर एक सैन्य बेस स्थापित किया है.

    सुरक्षा और खुफिया साझेदारी: मॉरीशस ने भारत के गुरुग्राम स्थित इन्फॉर्मेशन फ्यूजन सेंटर (IFC) में भागीदारी की है, जो समुद्री निगरानी में मदद करता है.

    OCI कार्ड: भारतवंशी मॉरीशस नागरिकों को ओवरसीज सिटीजनशिप ऑफ इंडिया (OCI) के तहत भारत में रहने और काम करने की विशेष सुविधा प्राप्त है.

    प्रधानमंत्री मोदी का दौरे का महत्व

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह दौरा न केवल ऐतिहासिक संबंधों को और मजबूत करेगा, बल्कि दोनों देशों के आर्थिक और सामरिक सहयोग को नई ऊंचाइयों तक ले जाने में मदद करेगा. उन्होंने मॉरीशस को नया संसद भवन बनाने में सहयोग देने की घोषणा की है, जिसे उन्होंने 'लोकतंत्र की जननी' भारत की ओर से एक उपहार बताया.

    भारत और मॉरीशस की साझेदारी केवल समुद्री सीमाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह साझा इतिहास, संस्कृति और मूल्यों पर आधारित है. पीएम मोदी की यह यात्रा इन संबंधों को और प्रगाढ़ करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगी.

    ये भी पढे़ें- ट्राय लैंग्वेज विवाद पर मद्रास हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, तमिलनाडु में सरकारी नौकरी के लिए तमिल जरूरी