नई दिल्ली : लोकसभा चुनाव 2024 के पांच चरणों के मतदान के बाद कयास और चुनावी भविष्वाणियों का दौर शुरू हो गया. चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने एक चैनल से बात करते हुए इस बार भी पीएम मोदी की सरकार बनाने की बात कही है. हालांकि उन्होंने BJP के 400 पार सीटों के दावे को खारिज किया और यह भी कहा है कि प्रधानमंत्री की इमेज में डेंट लगा है, लेकिन विपक्ष इसे अपने पक्ष में नहीं भुना पाया है. वहीं जाने-माने चुनावी विश्लेषक और राजनीतिक, सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने उनके तर्क से असहमित जताई है.
गौरतलब है इसके बाद भी प्रशांत किशोर ने एक यूट्वूब चैनल को भी दिए इंटरव्यू में अपनी इस बात को दोहराया है.
स्वराज इंडिया पार्टी के अध्यक्ष और राजनीतिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने एक न्यूज वेबसाइट के पत्रकार से बात करते हुए भाजपा और एनडीए के 272 के जादुई आंकड़े से नीचे जाने की बात दोहराई है और अपने तर्क पेश किए.
योगेंद्र यादव ने कहा, "मैं अपने 35 साल के अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि बीजेपी की 272 सीट कतई नहीं आ रही है. एनडीए की 272 सीट आएंगी उसके बारे में भी संशय है. मुझे लगता है एनडीए भी 272 के नीचे खिसक सकता है. बीजेपी को मुझे कम से कम 50 सीट का नुकसान दिखाई दे रहा है और एनडीए को कम से कम 65-70 सीट का नुकसान."
गौरतलब है कि लोकसभा की कुल 543 सीटों पर 7 चरणों में चुनाव हो रहा है और 272 सीट बहुमत का आंकड़ा है. जो पार्टी या गठबंधन इस आंकड़े को पा लेगा, उसकी सरकार बन जाएगी. अभी तक 5 चरणों का मतदान हो चुका है.
पत्रकार के इस सवाल पर कि चुनावी रणनीतिकार और जनसुराज पार्टी के अध्यक्ष प्रशांत किशोर कह रहे हैं कि राम मंदिर की कोई लहर नहीं है, नरेंद्र मोदी अब उतने लोकप्रिय नहीं है, इसके बावजूद वह कह रहे हैं कि 300 के पार बीजेपी और एनडीए की सीटें आना कोई बड़ी बात नहीं होगी. उन्हें इसमें कोई मुश्किल नजर नहीं आ रही है.
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योगेंद्र यादव ने इसलिए कहा कि प्रशांत किशोर का तर्क क्यों सही नहीं
चुनावी विश्लेषक योगेंद्र यादव ने उनकी इस बात पर कहा, "मैंने भी सुना, सारी बात तो नहीं सुन पाया. प्रशांत किशोर की मैं इज्जत करता हूं. उन्होंने गंभीरता से राजनीतिक विश्लेषण किया है. उनकी और मेरी राजनीति अलग हो सकती है, लेकिन राजनीति अलग है तो इसका मतलब बिल्कुल नहीं कि किसी को खारिज कर दिया जाए. आमतौर पर मैंने देखा है कि प्रशांत किशोर भी अपनी राजनीतिक तवज्जों को अलग रखकर मूल्यांकन करने की कोशिश करते हैं. मैंने यह भी देखा कि उन्होंने कहा कि मोदी जी की छवि में डेंट लगा है. वो कह रहे हैं राम मंदिर मुद्दा नहीं है. वो कह रहे हैं कि बीजेपी को लेकर एक तरह की एंटी इनकंबेंसी है, लेकिन ये मानने के बाद उनका यह कहना की बीजेपी की 303 (2019 में) से सीट बढ़ेंगी. ये बात तर्क संगत नहीं लगती. लेकिन प्रशांत इसके पीछे तर्क भी देते हैं जिसे हमें समझना चाहिए."
बता दें कि प्रशांत किशोर ने देश के बड़े राष्ट्रीय चैनल के साथ इंटरव्यू में ये बात कही है, जिसका योगेंद्र ने एक न्यूज बेवसाइट की पत्रकार के सवालों के जवाब में ये बात कही है.
योगेंद्र यादव ने कहा, "वह (प्रशांत किशोर) कहते हैं ये सब होते हुए बीजेपी को घाटा होगा, लेकिन वह इसकी भरपाई पूर्व और दक्षिण के राज्यों में अपने फायदे से इसकी भरपाई कर लेगी. मोटे तौर पर उनका तर्क है कि बीजेपी की थोड़ी अनपॉपुलर हुई है, लेकिन पिछली बार वोटों का मार्जिन इतना ज्यादा था कि बीजेपी को बहुत हल्का सा नुकसान हिंदी पट्टी में होगा और उसकी भरपाई पूर्व और दक्षिण के राज्य में कर लेगी. उनकी इस बात को मैं समझ रहा हूं कि वे ऐसा क्यों कह रहे हैं."
उन्होंंने कहा, "लेकिन मुझे उनका यह तर्क सही नहीं लगता. जब मैं इसका मूल्यांकन करता हूं तो जो मेरी सूचना, समझ और आकलन है वो इससे बिल्कुल अलग है. लेकिन अच्छी बात ये है कि न उनकी जेब में एग्जिट पोल है और न मेरी जेब में. इसलिए उन्होंने जिस तरह से अपने कारणों का खुलासा किया, मैं भी अपने कारणों का खुलासा करता हूं. शायद वो हर राज्य का ब्रेकअप (आंकड़े) न दे पाएं हों. मैं हर राज्य का ब्रेकअप देने को तैयार हूं."
यादव ने कहा, "शुरुआत हम प्रशांत किशोर जी और बाकी लोगों की बात से करते हैं कि बीजेपी को कुछ राज्यों में फायदा होगा, जिससे भरपाई हो जाएगी. कुछ राज्यों में फायदे की बात सही है."
उन्होंने पश्चिम बंगाल को लेकर कहा, "अभी तक जो सूचना है, ग्राउंड रिपोर्ट्स हैं और जितनी सूचनाएं मैं जुटा पाया हूं उसके मुताबिक बंगाल में ममता बनर्जी के अकेले चुनाव लड़ने के बावजूद बीजेपी पछली बार (2019) की 18 सीटों में कुछ जोड़ नहीं पा रही है. और अगर वहां के राजनैतिक विश्लेषकों से पूछें तो वो कहते हैं कि बीजेपी 10-12 सीट से ऊपर इस बार नहीं जाने वाली है. लेकिन चूंकि इसकी कोई पुख्ता सूचना नहीं है तो मैं यही मान सकता हूं कि बीजेपी की 2-3 सीट ही कम हो सकती हैं. और अगर इसे ज्यादा कंजरवेटिव बनाना हो तो यह माना ज सकता है न नफा, न नुकसान. इससे ज्यादा अभी बंगाल के बारे में सोचने की जरूरत नहीं है. कांग्रेस बहुत ज्यादा जगह टीएमसी को डैमेज नहीं कर पा रही है, एक-दो जगह को छोड़कर. बंगाल में सीधा मुकाबला टीएमसी-बीजेपी के बीच है. टीएमसी की कुछ जीती सीटों पर खतरा है, तो कुछ भाजपा की जीती सीटों पर भी खतरा है, लिहाजा मुकाबला मैं ड्रॉ मानता हूं. ज्यादा से ज्यादा मैं बीजेपी को वहां कंजरवेटिव होकर 3 सीट का नुकसान मानता हूं."
योगेंद्र ने कहा, "अब पूर्व के एक राज्य उड़ीसा की बात करें तो अब तक कि खबर के हिसाब से बीजेपी वहां बेहतर कर रही है. यह उन चंद राज्यों में से एक हैं जहां बीजेपी आंकड़ों में इजाफा करेगी. वहां बीजेपी को 2019 में 8 सीटें मिली थीं. उसे 4 और सीट तक का फायदा हो सकता है. वजह है कि बीजेपी ने वहां मुद्दा बनाया है कि बीजू जनता दल (बीजेडी) की लीडरशिप नवीन पटनायक धीरे-धीरे अपने विश्वासपात्र वी.के. पांडियन को दे रहे हैं, वह तमिल है. जिनके बाहरी होने का मुद्दा बन रहा है. राज्य का नेतृत्व बाहरी को सौंपा जा रहा है और बीजेपी इसे जमकर भुना रही है."
फाइनली योगेंद्र यादव बंगाल और ओडिशा को मिलाकर केवल एक सीट का फायदा बीजेपी को देते हैं, क्योंकि वह बंगाल में बीजेपी को हुए 3 सीट के नुकसान से इसे घटा देते हैं.
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चुनावी विश्लेषक यादव ने कहा- जितना फायदा पा रही BJP, उतना गंवा भी रही
चुनावी विश्लेषक योगेंद्र यादव ने इसके बाद दक्षिण के राज्यों पर बात करते हुए कहा, "तेलंगाना जहां बीजेपी को पिछली बार 4 सीट आई थी. इस बार सूचना ये है कि बीआरएस (भारत राष्ट्र समिति) लगभग चुनाव से बाहर है, उसके पास एक या दो सीट जैसे- मेढक की सीट पर गुंजाइश है. राज्य में चुनाव कांग्रेस बनाम बीजेपी हो गया है. इस सीधे चुनाव में बीजेपी ने वहां खुलकर कम्युनल कार्ड खेला है तो वहां मैं मानकर चल सकता हूं कि बीजेपी 2 सीट का फायदा ले सकती है. इस दो सीटे के फायदे के साथ बीजेपी को बंगाल, उड़ीसा मिलाकर कुल 3 सीट का फायदा हुआ."
"अब आते हैं आंध्र प्रदेश में, वहां भी बीजेपी को फायदा होने की खबर है, क्योंकि टीडीपी (तेलगू देशम पार्टी) ने वहां अच्छा प्रदर्शन किया है. वहां बीजेपी का अपना वोट प्रतिशत 1 फीसदी भी नहीं रहा है, लेकिन क्योंकि बीजेपी-टीडीपी और जनसेना का गठबंधन है. अंदाजा है कि इस गठबंधन को कोई 25 में से 15 सीट आ जाएंगी, जिसमें से 2 या 3 सीट सीधे बीजेपी को भी आ जाएंगी. यहां बीजेपी को 3 और सीट दिया जा सकता है. बाकी एनडीए गठबंधन को 12 सीट और जोड़ दीजिए."
बाकी साउथ के राज्यों की बात करते हुए योगेंद्र यादव ने कहा, "पुड्डुचेरी की सीट पर बीजेपी की आने की संभावना है, लेकिन तमिलनाडु में बीजेपी कोई सीट पाएगी, इसकी संभावना बहुत कम है. फिर भी तमिलनाडु में 1 सीट मान लीजिए. केरल में त्रिशूर और तिरुवनंतपुरम में से कोई भी सीट मिलती नहीं दिख रही है फिर भी 1 सीट यहां भी मान लेते हैं. हालांकि यहां उसके शून्य होने की संभावना ज्यादा है. तमिलनाडु में बीजेपी की सहयोगी पीएमके को 2 सीट दे दीजिए. एआईएडीएमके 3-4 सीट लाएगी, जो कि बीजेपी के साथ नहीं है. बाकी डीएमके-कांग्रेस को कम से कम 30 सीटें आएंगी."
कर्नाटक की बात करते हुए यादव ने कहा, "इडीना (Eedina) का सर्वे जो कि वहां चुनाव से पहले किया गया था, जिसने बताया था कि कांग्रेस 2 फीसदी वोट से आगे चल रही है, लिहाजा इस बार संसदीय चुनाव में राज्य में बीजेपी को पहले की तरह फायदा नहीं होने वाला जो कि उसे मिला करता था. सिद्धारमैया सरकार की गारंटीज वहां काम कर रही हैं. अभी वहां मौजूदा बीजेपी को सहयोगी के साथ 26 सीट हासिल हैं, जिसमें नुकसान हो रहा है. उसे 14 से ज्यादा सीट नहीं मिलने वाली किसी भी कीमत पर, यानि 12 सीट का नुकसान तो है ही."
उन्होंने आखिर में भाजपा की सरकार बनने के सवाल पर कहा, "सरकार बनेगी या नहीं यह कहना मुश्किल है, लेकिन इस चुनाव में बीजेपी को बहुत बड़ा झटका लगेगा. मोदी के व्यक्तिगत दावों और उनकी छवि को बड़ा झटका लगेगा और सरकार बनती भी है तो वह लोकप्रिय जनादेश का दावा नहीं कर पाएगी, इतना जरूर कहा जा सकता है."
प्रशांत किशोर ने कहा- टर्नआउट कम होने और नतीजों के बीच सीधा संबंध नहीं
वहीं इस बार वोट प्रतिशत के घटे आंकड़ों को लेकर प्रशांत किशोर ने पटना में एक यूट्यूब की पत्रकार से बात करते हुए कहा, "अगर चुनाव आयोग के फाइनल डेटा को देखें तो बहुत बड़ी गिरावट नहीं है. वहीं वोटिंग प्रतिशत और नतीजों के बीच कोई सीधा संबंध भी नहीं है. यानि कि ऐसा कोई सबूत मौजूद नहीं है कि टर्नआउट कम होने से सरकार को फायदा होगा या नुकसान."
"जमीन पर मोदी के खिलाफ गुस्सा नहीं, लेकिन निराशा है पर विपक्षी पार्टियां उस हालत में नहीं है कि इसे भुना लें. चुनाव में फंडामेंटल तौर से दो चीजें होती हैं या तो लोगों में सरकार के खिलाफ गुस्सा हो, तो उसके खिलाफ वोट पड़ता है, या लोग किसी विपक्ष के नेता को चुनना चाहते हों. लेकिन ऐसा भी नजर नहीं आता कि लोग राहुल को प्रधानमंत्री बनाने के लिए बहुत उत्साहित हों. ये दो फंडामेंटल बातें है, जब तक इन बातों में बदलाव नहीं होगा, तब तक कोई अमूल-चूल या बड़ा परिवर्तन नहीं होने वाला है."
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