नई दिल्ली : लोकसभा चुनाव 2024 के पहले चरण के बाद 26 अप्रैल को हुए दूसरे चरण के मतदान में भी वोटिंग प्रतिशत घटा है. पीएम मोदी की अपील, चुनाव आयोग के तमाम कोशिश के बावजूद ये गिरावट हुई है. चुनाव आयोग की तरफ से सुबह 9 बजे तक सामने आए आंकड़ों के मुताबिक दूसरे चरण में 65.4 फीसदी मतदान हुआ है. जो 2019 के मुकाबले 4.7 फीसदी लगभग 5 फीसदी कम है, यह पहले चरण की तरह 4% प्रतिशत होने की संभावना है. विशेषज्ञों ने इसे सत्ताधारी दल के खिलाफ और इंडिया गठबंधन (INDIA Alliance) के पक्ष में बताया खतरे की घंटी के तौर पर बताया है तो वहीं बीजेपी (BJP) का दावा है कि सरकार हमारी ही बनेगी. हमें मोदी सरकार के 10 साल के काम पर भरोसा है. वोट प्रतिशत की गिरावट पर आकलन सबके अपने-अपने हैं.
भारतीय चुनाव आयोग की तरफ से जारी आंकड़ों में वोट प्रतिशत सामने आया है. त्रिपुरा में सबसे ज्यादा 79.79 फीसदी वोटिंग हुई है, लेकिन पिछली बार की तुलना में वहां भी वोट प्रतिशत घटा है. उत्तर प्रदेश में सबसे कम 55.01 प्रतिशत वोटिंग हुई है.
दूसरे चरण में मतदान में गिरावट पर, राजनीतिक विश्लेषक, सामाजिक कार्यकर्ता और स्वराज इंडिया पार्टी के अध्यक्ष ने अपने एक्स हैंडल पर लिखा है, "दूसरे चरण में भी मतदान में गिरावट दर्ज की गई है, 2019 की तुलना में इन्ही सीटों पर लगभग 6% अंक (रात 11.30 बजे तक की जानकारी) की गिरावट है. पहले चरण की तरह कल तक (आज तक) इसमें लगभग 4% की गिरावट आ सकती है. यह एक नेशनल ट्रेंड होता नजर आ रहा है."
हालांकि योगेंद्र यादव ने आज सुबह अपनी इस एक दिन पहले की पोस्ट संशोधित डेटा पोस्ट किया है. उन्होंने लिखा है, "आज सुबह 9 बजे तक संशोधित आंकड़ा 65.4%. अभी भी 4.7% अंक की गिरावट है. पहले चरण की तरह ही यह लगभग 4% होनी चाहिए."
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'राजनीतिक विश्लेषक योगेंद्र यादव पर पड़ी गालियां, कही ये बात'
जाने-मानें राजनीतिक विश्लेषक योगेंद्र यादव ने यूपी के अपने दौरे से मिले आंकड़ों के आधार पर एक दिन पहले एक्स पर चुनावी विश्लेषण पेश किया है, जिसको लेकर उनकी काफी आलोचनाएं हुईं हैं और उनके खिलाफ अभद्र भाषा इस्तेमाल किया गया है.
उन्होंने अभद्र टिप्पणी पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए लिखा है, "उत्तर प्रदेश में तो भूचाल बाद में आएगा, मेरे इस ट्वीट से छोटा सा भूचाल ज़रूर आ गया है. कई दोस्तों को यक़ीन नहीं हो रहा. ज़ाहिर है, मैं राजनीतिक कार्यकर्ता हूं, इसलिए ऐसा शक होना स्वाभाविक है कि मैं अपने मूल्यांकन में अपनी आशा को जोड़ रहा हूं. आप ख़ुद इसे चेक क्यों नहीं कर लेते? उत्तर प्रदेश के किसी भी ग्रामीण इलाक़े में जाइए. अलग अलग जातियों के ऐसे 50 लोगों से बात कीजिए जिन्होंने पिछली बार बीजेपी को वोट दिया था, और 50 जिन्होंने सपा, कांग्रेस या बसपा को वोट दिया था. उनसे पूछिए कि वो इस बार किसे वोट देंगे? ईमानदारी से उसके परिणाम दर्ज कर यहां लिख दीजिए. तर्क-वितर्क या गाली ग़लौज़ से बेहतर नहीं होगा यह विकल्प?"
गौरतलब है कि उन्होंने एक दिन पहले लिखा था, "उत्तर प्रदेश में राजनैतिक भूचाल आ सकता है. मेरठ से बनारस तक 15 संसदीय क्षेत्रों में सैकड़ों ग्रामीण वोटर से बात कर यह साफ है कि सभी जगह, सभी जातियों में बीजेपी का वोट खिसक रहा है. 70 तो छोड़िए, मौजूदा सरकार के लिये 60 सीट बचाना भी नामुमकिन है, मुझे तो 50 भी नहीं दिख रहीं."
उन्होंने अपनी इस ग्राउण्ड रिपोर्ट के मुख्य बिंदु साझा किए हैं:
-मोदी के प्रति ग़ुस्सा नहीं, उदासीनता है. उन्हें राशन का श्रेय मिलता है लेकिन इस बार उनके नाम पर वोट नहीं पड़ेगा.
-मोदी की तुलना में योगी ज़्यादा लोकप्रिय हैं, उन्हें गुंडागर्दी ख़त्म करने का श्रेय मिलता है.
-बीजेपी के अधिकांश सांसदों और स्थानीय नेताओं के ख़िलाफ़ बहुत ग़ुस्सा है.
-वोटर के मन में महंगाई और बेरोज़गारी है. गांव में छुट्टे जानवर सबसे बड़ा मुद्दा हैं.
-बहुत वोटर परिवर्तन चाहते हैं चूंकि अगर तीसरी पंचवर्षीय में आ गए तब तो तानाशाही शुरू हो जाएगी.
-कुल मिलाकर बीजेपी के वोटर में एक चौथाई कहते हैं कि इस बार उसे वोट नहीं देंगे. सपा और कांग्रेस का वोट क़ायम है. बीएसपी में मामूली गिरावट है लेकिन वो बीजेपी को नहीं जा रहा.
-अगर 2019 में बीजेपी के वोट का 10वां हिस्सा भी खिसक कर सपा कांग्रेस को मिल गया तो उसे 20 सीट का नुक़सान हो सकता है. अगर इससे ज़्यादा टूट गया तो परिणाम पूरी तरह से उलट जाएगा.
चेतावनी: अभी सिर्फ़ 16 सीट में वोट पड़े हैं और स्थिति बदल सकती है, पर फ़िलहाल तो हर दिन स्थिति सत्ताधारी पार्टी के लिए विकट होती दिखाई दे रही है.
उन्होंने हालांकि अपने इस आकलन पर डिस्क्लेमर भी दिया है. उन्होंने लिखा है-
नोट: यह कोई एक्ज़िट पोल या जादुई सर्वे नहीं है. आप ख़ुद इसकी जांच कर सकते हैं. कहीं भी गांव-देहात में जाकर पूछिये कि पिछली बार किसे वोट दिया था और इस बार किसे देंगे.
BJP ने कहा- सबके अपने-अपने आकलन हैं, सरकार हमारी ही बनेगी
वहीं भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने भारत 24 से ऑफ रिकॉर्ड बात करते हुए कहा, "हमें पूरा विश्वास है कि हमारी सत्ता आ रही है, और दो चरणों में वोट प्रतिशत घटना आकलन का विषय है कि यह क्यों कम हुआ है. सब अपने-अपने हिसाब से आकलन कर रहे हैं. हमें अपनी सरकार के 10 साल के शासन पर भरोसा है, सरकार हमारी ही बनेगी."
BJP प्रवक्ता ने मौसम को वोट प्रतिशत घटने के लिए ठहराया जिम्मेदार
वहीं भाजपा के एक दूसरे राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. टॉम वाडक्कन ने भारत 24 से बात करते हुए कहा, "वोट प्रतिशत के आंकड़ों को राज्यवार देखना होगा. सभी राज्य के अपने अलग-अलग मुद्दे हैं और उसी हिसाब से वोटिंग हुई है. उन्होंने केरल का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां वोट प्रतिशत अच्छा है. काडर बेस्ड पार्टियों को नुकसान नहीं होता है. एक्स्ट्रा वोट तो हमारे लिए बोनस है. केरल में तो अब हम 4-5 सीट की उम्मीद कर रहे हैं. बाकी स्टेट में भी बोनस में वोट मिला है."
उन्होंने वोट प्रतिशत घटने के लिए मौसम को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा, "केरल में चुनाव के दिन तापमान 40 डिग्री सेल्सियस था. वहां 10 लोग हीटवेव के कारण मारे गए हैं. यह भी एक वजह है, जिसके कारण लोग सुबह और शाम को वोट देने खूब संख्या में निकले, लेकिन दोपहर में कम निकले."
यह पूछने पर कि इस महीने में मौसम तो हर बार ऐसा ही रहता है और लोगों ने पिछली बार बढ़-चढ़कर वोट दिया था. इस पर उनका कहना था, "नहीं, हीटवेव का मामला है. खासकर केरल जैसी जगहों पर जहां वोट देने के बाद घर पहुंचने पर लोगों की मौत हो गई. वहां येलो और ऑरेंज अलर्ट जारी था. बाकी हमारी काडर बेस्ड पार्टी है. मोदी का भी प्रभाव है इसलिए हमें भरोसा है कि वोट मिला है. उन्हें सीपी(एम) (कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ मार्क्सिस्ट) को भी काडर बेस्ड पार्टी बताते हुए कहा कि उसे भी वोट मिला है. काडर बेस्ड पार्टियों को नुकसान नहीं होता है."
योगेंद्र ने राज्यवार विश्लेषण में सभी राज्यो में बताया 10-12 सीटों का नुकसान
योगेंद्र यादव ने एक यूट्यूब चैनल से बात करते हुए राज्यवार विश्लेषण किया है. इस दौरान उन्होंने बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान समेत राज्यों के आंकड़ों का विश्लेषण किया.
उन्होंने कहा, "वोटों गिरावट सत्ताधारी दल के खिलाफ है. यूपी समेत पूरे देश से जो जानकारी आ रही है, उससे भाजपा को नुकसान होता नजर आ रा है. बिहार में जेडीयू को 16 सीटें देना बीजेपी के खिलाफ जाएगा क्योंकि वहां बीजेपी से ज्यादा जेडीयू को नुकसान होगा. इसी तरह महाराष्ट्र में भी सीएम एकनाथ शिंदे को दी गई सीटों पर नुकसान ज्यादा होगा. क्योंकि शिवसेना का मूल वोटर शिंदे गुट के साथ नहीं जा रहा है. प्रकाश अंबेडकर की वंचित अघाड़ी पार्टी (वीएपी) ने पिछली बार बड़ा उलटफेर किया था, लिहाजा उसका इंडिया गठबंधन के साथ आने से एनडीए को बड़ा नुकसान पहुंचाएगा."
योगेंद्र ने कहा, "इसी तरह राजस्थान में भारतीय आदिवासी पार्टी (बाप) के इंडिया गठबंधन के साथ आने से बीजेपी को नुकसान होना तय है. हां मध्य प्रदेश चूंकि बीजेपी का गढ़ है और पिछली बार वोटों के प्रतिशत का फासला यहां लगभग 24 फीसदी था, लिहाजा मध्य प्रदेश में बीजेपी को नुकसान होने की संभावना कम है. कर्नाटक में इस फेज में जेडीएस की गढ़ वाली सीटें ज्यादा हैं, इसिलए बीजेपी से गठबंधन होने पर नुकसान कम होगा पर कुछ सीटों पर नुकसान हो सकता है. अगले फेज में बड़ा नुकसान होगा, क्योंकि इस फेज में वोक्कालिग्गा समुदाय का दबदबा है जो कि कांग्रेस को वोट करता है. इस तरह अगर 10-12 सीटों का नुकसान सत्ताधारी पार्टी को हर जगह होता है तो वह 250 से भी नीचे आ जाएगी."
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कांग्रेस नेता और प्रवक्ता ने कहा- सत्ताधारी दल के खिलाफ लोगों में गुस्सा
भारत 24 से बात करते हुए कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा, "वोटों की गिरावट हमारे पक्ष में है. मौजूदा सरकार को बड़ा नुकसान होने जा रहा है."
हालांकि फोन नेटवर्क सही न होने से उनसे ठीक से बात नहीं हो पाई.
वहीं कांग्रेस नेता और प्रवक्ता उदित राज ने भारत 24 से बात करते हुए कहा, "लोग सत्ताधारी दल के झूठ से ऊब चुके हैं. लोग बेरोजगारी, महंगाई से तंग आ चुके हैं. प्रधानमंत्री के झूठ से लोग परेशान हो गए हैं, इसिलए इंडिया गठबंधन को वोट कर रहे हैं."
जब उनसे पूछा गया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि लोग मान बैठे हैं कि बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार आएगी ही इसलिए वोट देने का क्या फायदा, तो इस पर उनका कहना था, "ऐसा कुछ नहीं है."
'भाजपा के प्रति जोश नहीं, कांग्रेस अपने पक्ष में लहर पैदा करने में असमर्थ'
सीएसडीएस (The Centre for the Study of Developing Societies) के साथ काम कर चुके और अब अंबेडकर विश्वविद्यालय, दिल्ली में प्रोफसर अभय दुबे ने एक न्यूज वेबसाइट के लिए लिखे अपने कॉलम में जहां वोट प्रतिशत घटने को सत्ताधारी दल के प्रति वोटरों में जोश न होने और विपक्षी दल पर इसे अपने पक्ष में लहर न पैदा कर पाने की असमर्थता बताया है.
वह लिखते हैं कि पहले चरण में लगभग 7 फीसदी की गिरावट ने यह पुख्ता कर दिया है कि वोटरों में उत्साह घटा है.
वह लिखते हैं, "वोटरों में सत्ताधारी दल भाजपा के खिलाफ कोई नाराजगी जगजाहिर नहीं हुई है, लेकिन उसे चुनने के लिए किसी भी तरह का जोश दिखाई नहीं दे रहा है. विपक्षी दल भी सरकार के खिलाफ और अपने पक्ष में कोई लहर पैदा कर पाने में असमर्थ हैं. शेयर मार्केट में भले ही तिजोड़ियों का जोर है, पर राजनीति में मंदड़िये हावी दिख रहे हैं."
पहली बार वोट देने वालों में महज 38 फीसदी ने ही कराया है रजिस्ट्रेशन
वह सीवोटवर-एबवीपी के सर्वेक्षण के हवाले से कहते हैं जिसने 57 हजार लोगों बात की है और पूछा है कि आपकी बेरोजगारी, महंगाई, घटती आमदनी, भ्रष्टाचार वगैरह कौन दूर कर सकता है तो उनमें से 32 फीसदी ने भाजपा से उम्मीद जताई है, जबकि 18 फीसदी लोगों ने कांग्रेस से. लेकिन 46 फीसदी लोगों को किसी पर भरोसा नहीं है. 4 फीसदी लोगों ने 'पता नहीं' का जवाब दिया है. वह 'पता नहीं' का जवाब देने वालों को भी तीसरी श्रेणी में रखते हैं.
वह कहते हैं, "50 फीसदी लोगों को अपनी समस्याएं दूर करने को लेकर किसी से भी उम्मीद नहीं है. यह आंकड़ा बताता है कि 10 साल शासन कर सत्ताधारी दल ज्यादा से ज्यादा एक तिहाई लोगों का ही भरोसा जीत पाया है और पूरे एक दशक से विरोध की राजनीति करने वाले दल 5वें हिस्से से भी कम लोगों को उम्मीद बंधा पाए हैं."
वह कहते हैं, "पहली बार और दूसरी बार वोट डालने वालों में ज्यादा उत्साह होता है लेकिन केवल 38 फीसदी ही नये मतदाता अपना पंजीकरण कराए हैं. 18 साल पूरा कर चुके 62 फीसदी युवकों में ललक नहीं है. जाहिर है कि युवाओं को, राज्य और केंद्र में जिस तरह की सरकार चल रही है उससे कोई उम्मीद नजर नहीं आती."
पूछा- लोग अगर मौजूदा सरकार से संतुष्ट नहीं तो नाराज क्यों नहीं?
अभय दुबे कहते हैं, "चुनावशास्त्रियों की मानें तो 2019 में युवा खूब बढ़-चढ़कर वोट दिए थे, जिससे भाजपा को भारी बढ़त मिली थी. भाजपा इनमें बहुत सारी सीटों पर कम अंतर से जीती थी. केवल यूपी में ही ऐसी 18 सीटें थीं. इस बार का मतदान इन सीटों पर समीकरणों को उलट-पुलट सकता है. तो आखिर बात क्या है जो वोटरों में उत्साह नहीं जगा रही?"
वह सवाल उठाते हैं कि अगर इसे मान भी लिया जाए कि लोग सरकार से खुश नही तो आखिर नाराज क्यों नहीं है? आंकड़े बताते हैं कि कम ही सही, विपक्ष के मुकाबले सत्ताधारी पार्टी में लोगों का भरोसा ज्यादा है.
वह कहते हैं, "सीवोटर-एबीपी का सर्वे बताता है कि तीसरी बार सरकार चुनने की इच्छा, लोगों में तीन फीसदी कम हुई है यानि पिछली बार के मुकाबले 8 फीसदी से घटकर 5 फीसदी हो गई है. राजनीतिशास्त्रियों की मानें तो सत्ताधारी दल के लिए यह आरमदेह स्थिति नहीं है और न ही यह विपक्ष को किसी तरह आश्वस्त करती है."
दुबे कहते हैं कि भारत के चुनावी इतिहास की जानकारी रखने वालों ने याद दिलाया है कि पं. जवाहरलाल नेहरू को 1962 में लोगों ने तीसरी बार चुना था और 361 सीटें मिली थीं. वहीं तब की प्रमुख विपक्षी कम्युनिस्ट पार्टी को महज 29 सीट मिली थी. लेकिन वह कहते हैं अब चीजें बदल गई हैं, क्षेत्रीय पार्टियां उभर आई हैं, जिन्होंने राष्ट्रीय पार्टियों के प्रभाव सीमित कर दिया है, जबकि पहले ऐसा नहीं था.
वह कहते हैं, "वोटर्स में असंतोष है लेकिन सरकार के खिलाफ गुस्सा नहीं है. बेरोजगारी, महंगाई से लोगों में असंतोष तो पैदा हुआ है लेकिन यह तीखे राजनीतिक गुस्से में नहीं बदल पाया है."
पहले चरण में जो सीटें BJP-NDA के पास हैं उस पर कम मतदान हुआ है
गौरतलब है कि भारत 24 ने पहले चरण के वोटों की गिरावट की रिपोर्ट की है, जिसके मुताबिक लोकसभा चुनाव 2024 के पहले चरण में भी 2019 की तुलना में वोटो में 4.6 फीसदी की बड़ी गिरावट हुई है. 2019 में जहां इन सीटों पर मतदान 69.9 फीसदी हुआ था, तो वहीं 2024 में यह 65.3 प्रतिशत ही रहा है. यानि 4.6 फीसदी की गिरावट. लगभग 76 लाख वोटरों ने वोट नहीं डाला है. 102 सीटों पर हुए मतदान में NDA उम्मीदवारों की सीटों पर यह गिरावट जहां दोगुनी यानि 5.9 फीसदी है, वहीं नॉन एनडीए (कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दल) की सीटों पर यह गिरावट लगभग आधी, यानि 3.2 फीसदी है.
विशेषज्ञ जहां इसे भारतीय जनता पार्टी (BJP) या उसके गठबंधन नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (NDA) के प्रति वोटरों का उत्साह कम मान रहे हैं तो वहीं यह भी माना जा रहा है कि बीजेपी को इससे नुकसान पहुंचा भी तो वह ज्यादा नहीं होगा, वोट कम हो सकते हैं, लेकिन सत्ताधारी पार्टी फायदे में रहेगी.
पहले चरण में वोटों की गिरावट की बात करें तो यह बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन की सीटों पर गिरावट ज्यादा है, जबकि नॉन एनडीए यानि कांग्रेस और INDIA गठबंधन के उम्मीदवारों की सीटों पर यह गिरावट कम है. इनमें कई बड़े नेता शामलि हैं, जिनकी सीटों पर वोटों की गिरावट काफी ज्यादा हुई है. राजस्थान के सीएम भजनलाल शर्मा के इलाके में 8 फीसदी कम वोटिंग हुई है, और अन्य नेता भी शामिल हैं.
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