Ukraine India relations: यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की, जो अब तक भारत के प्रति अपेक्षाकृत संतुलित रुख अपनाते रहे थे, अब खुले तौर पर अमेरिकी लाइन पर चलते दिखाई दे रहे हैं. हाल ही में एक अमेरिकी मीडिया इंटरव्यू में उन्होंने अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए टैरिफ को "सही" करार दिया, और अप्रत्यक्ष रूप से भारत की रूस के साथ व्यापारिक नीति पर सवाल उठाए.
यह बयान ऐसे समय पर आया है जब हाल ही में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शिखर सम्मेलन में भारत, रूस और चीन के नेताओं की मौजूदगी ने वैश्विक कूटनीतिक मंच पर एक तीराहे की तस्वीर पेश की, जिसे पश्चिमी देशों ने संदेह की दृष्टि से देखा.
भारत को कहा 'रूस के सहयोगी'
एक अमेरिकी पत्रकार द्वारा पूछे गए सवाल पर कि "क्या ट्रंप द्वारा भारत पर लगाए गए टैरिफ का उल्टा असर हुआ है?" इस पर जेलेंस्की ने बेझिझक जवाब दिया कि "रूस से व्यापार करने वाले देशों पर टैरिफ लगाना बिल्कुल सही फैसला है."
यह पहली बार है जब जेलेंस्की ने इतने स्पष्ट शब्दों में भारत को लेकर नकारात्मक रुख दिखाया है. इससे पहले, उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से रूस-यूक्रेन वार्ता को लेकर फोन पर चर्चा भी की थी, जिसमें उन्होंने भारत से संतुलनकारी भूमिका की उम्मीद जताई थी.
SCO सम्मेलन बना टकराव का केंद्र
पिछले दिनों तियानजिन में आयोजित SCO समिट में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन एक साथ मंच साझा करते नजर आए. इस त्रिकोणीय दृश्य ने अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के बीच हलचल पैदा कर दी थी. इसी संदर्भ में जेलेंस्की का बयान भी कूटनीतिक संकेतों से भरा माना जा रहा है.
क्या बदल रहा है यूक्रेन-भारत समीकरण?
भारत ने रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान एक तटस्थ और रणनीतिक संतुलन बनाए रखा है. भारत ने मानवीय सहायता तो दी, लेकिन न तो रूस के खिलाफ प्रतिबंधों का समर्थन किया, और न ही खुले रूप से यूक्रेन की सैन्य सहायता की. जेलेंस्की का यह बयान अब संकेत दे रहा है कि यूक्रेन भारत से अधिक स्पष्ट रुख की अपेक्षा कर रहा है, और भारत की रणनीतिक स्वायत्तता से असहज है.
भारत पर अमेरिकी टैरिफ और तनाव का कारण
अमेरिका की पूर्ववर्ती ट्रंप सरकार ने कुछ खास भारतीय उत्पादों पर टैरिफ लगाए थे, जिसका असर भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों पर पड़ा. यही नीति अब जेलेंस्की जैसे नेताओं को उचित प्रतीत हो रही है, क्योंकि अमेरिका के विरोधी गुटों के साथ व्यापार को ये देश युद्ध के समर्थन के रूप में देख रहे हैं.
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