जब भी हम देशों के बीच विवाद की बात करते हैं, तो अक्सर ज़मीन, पानी या सीमाओं को लेकर खींचतान सुनने को मिलती है. लेकिन क्या आपने कभी हवा को लेकर दो देशों में तनाव की खबर सुनी है? अगर नहीं, तो यह जानना दिलचस्प होगा कि यूरोप के दो पड़ोसी देश नीदरलैंड और बेल्जियम इस समय हवा को लेकर एक अजीबोगरीब टकराव का सामना कर रहे हैं. यह विवाद इतना अनोखा है कि अब इसे लेकर बहस तेज़ हो गई है.
क्या है मामला?
नीदरलैंड की एक वेदर फोरकास्टिंग कंपनी Whiffle के सीईओ रेमको वर्जिलबर्ग ने हाल ही में दावा किया है कि बेल्जियम के पवन ऊर्जा फार्म (Wind Farms) उनके देश की हवा चुरा रहे हैं. उनका कहना है कि उत्तर सागर में बेल्जियम द्वारा लगाए गए पवन टर्बाइन, नीदरलैंड के टर्बाइनों की तुलना में इस तरह से स्थित हैं कि वे अधिक हवा का उपयोग कर रहे हैं और पीछे की ओर हवा की गति धीमी कर रहे हैं.
कैसे हो रही है 'हवा चोरी'?
रेमको के मुताबिक, जब हवा पवन टर्बाइनों से गुजरती है तो वह ऊर्जा निकालने के कारण धीमी हो जाती है. इस प्रक्रिया को विंड शैडो या वेक इफेक्ट कहा जाता है. बेल्जियम के टर्बाइन आमतौर पर नीदरलैंड के पवन फार्मों के दक्षिण-पश्चिम में स्थित हैं, और क्योंकि ज्यादातर हवाएं उसी दिशा से आती हैं, बेल्जियम पहले ही हवा की रफ्तार कम कर देता है. इस वजह से नीदरलैंड के पवन फार्मों को धीमी गति की हवा मिल रही है, जिससे उनका ऊर्जा उत्पादन प्रभावित हो रहा है.
क्यों बढ़ रही है चिंता?
यह समस्या आज की नहीं, बल्कि आने वाले समय में और गंभीर हो सकती है. यूरोप 2050 तक 300 गीगावाट पवन ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य बना रहा है. नीदरलैंड, बेल्जियम, जर्मनी और डेनमार्क अकेले मिलकर 2030 तक 65 गीगावाट और 2050 तक 150 गीगावाट हासिल करना चाहते हैं. ऐसे में समुद्र में एक के बाद एक टर्बाइनों की कतारें खड़ी होती जा रही हैं और 'हवा की मारामारी' तेज हो रही है.
हल क्या है?
रेमको ने साफ कहा कि यह ‘चोरी’ जानबूझकर नहीं हो रही, लेकिन इससे बचने के लिए देशों को बेहतर समन्वय और योजना की जरूरत है. वरना वो दिन दूर नहीं जब हवा को लेकर भी अंतरराष्ट्रीय विवाद आम बात हो जाएगी.
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