Janmashtami 2025: कृष्ण जन्माष्टमी 2025 के पावन अवसर पर देशभर में भक्तिभाव और श्रद्धा का वातावरण देखा जा रहा है. इस दिन लोग भगवान श्रीकृष्ण के जीवन, उनकी लीलाओं और उनके अनुपम श्रृंगार को याद करते हैं. उनके मुकुट में सजे मोरपंख को उनके स्वरूप का अभिन्न हिस्सा माना जाता है, लेकिन यह केवल सजावट नहीं है. इसके पीछे गहरी पौराणिक कथाएं और आध्यात्मिक महत्व छिपा हुआ है.
माना जाता है कि मोरपंख भगवान कृष्ण के जीवन की दिव्यता और उनकी मोहक छवि का प्रतीक है. यह न केवल सौंदर्य बढ़ाता है, बल्कि सौभाग्य, प्रेम और शांति का संदेश भी देता है. पौराणिक ग्रंथों में इसके पीछे कई कारण बताए गए हैं. आइए जानें तीन प्रमुख कथाएं और उनका आध्यात्मिक महत्व:
1. राहु दोष और मां यशोदा का उपाय
कथाओं के अनुसार, जन्म के कुछ समय बाद माता यशोदा ने बालक कृष्ण की कुंडली किसी ज्योतिषी को दिखाई. ज्योतिषी ने बताया कि कृष्ण पर राहु दोष है. उपाय के रूप में सलाह दी गई कि मोरपंख हमेशा उनके पास रहेगा तो यह दोष शांत होगा. मां यशोदा ने मुकुट में मोरपंख सजाया और उसकी सुंदरता देखकर यह श्रृंगार स्थायी रूप से उनके मुकुट का हिस्सा बन गया.
2. श्रृंगार में मोरपंख की अद्भुत छवि
एक अन्य कथा में वर्णित है कि माता यशोदा प्रतिदिन कृष्ण को नए-नए श्रृंगार से सजाती थीं. एक दिन उन्होंने मोरपंख का श्रृंगार किया, जिसे देखकर सभी मंत्रमुग्ध हो गए. तभी से मोरपंख उनके मुकुट का स्थायी हिस्सा बन गया.
3. मोरों का प्रेम भरा उपहार
एक प्रसंग के अनुसार, बाल कृष्ण वन में बांसुरी बजा रहे थे. उनकी मधुर धुन सुनकर मोरों का झुंड नाचने लगा. नृत्य समाप्त होने के बाद मोरों के सेनापति ने सबसे सुंदर पंख कृष्ण को भेंट किया. प्रेमपूर्वक इसे स्वीकार कर उन्होंने अपने मुकुट में सजा लिया.
मोरपंख का आध्यात्मिक महत्व
हिंदू धर्म में मोरपंख को सौभाग्य, प्रेम, शांति और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना गया है. गरुड़ पुराण और विष्णु पुराण में बताया गया है कि मोर के पंख में ब्रह्मांड के नीला, हरा और सुनहरे रंग संतुलन का प्रतिनिधित्व करते हैं. भागवत पुराण में इसे भगवान की लीलाओं और प्रकृति से उनके अटूट संबंध का प्रतीक माना गया है. मोरपंख नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करने में भी सहायक माना जाता है.
इन पौराणिक कथाओं और आध्यात्मिक महत्व के कारण कृष्ण भक्ति में मोरपंख की उपस्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है. यह केवल श्रृंगार नहीं, बल्कि प्रेम, भक्ति और सुरक्षा का प्रतीक है, जो जन्माष्टमी और दैनिक पूजा में भगवान की पहचान का हिस्सा है.
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