Commitment Phobia in Relationships: राहुल और सिया की कहानी किसी फिल्म की तरह लगती है, तीन साल से साथ हैं, एक-दूसरे को समझते हैं, प्यार करते हैं, साथ वक्त बिताना पसंद करते हैं, लेकिन जब बात शादी की आती है, राहुल चुप हो जाता है. वो कहता है, "प्यार तो है, लेकिन मैं अभी शादी के लिए तैयार नहीं हूं." राहुल अकेला नहीं है. ऐसे रिश्ते आज आम होते जा रहे हैं. जहां लोग दिल से जुड़े होते हैं, लेकिन कानूनी या सामाजिक रिश्तों से कतराते हैं. सवाल है, आखिर क्यों?
क्यों लोग प्यार तो करते हैं, लेकिन बंधना नहीं चाहते?
आज की पीढ़ी रिश्तों को एक ‘इमोशनल स्पेस’ की तरह देखती है, न कि कोई सामाजिक जिम्मेदारी. प्यार को लेकर संदेह नहीं है, लेकिन शादी जैसे कमिटमेंट से पीछे हटने की वजहें गहरी हैं.
1. बचपन का अनसुलझा अनुभव
कई बार हम जो प्यार समझते हैं, उसका बीज बचपन में बोया गया होता है. अगर किसी ने अपने घर में हमेशा झगड़े, अनबन, तकरार देखे हों, तो उसके मन में रिश्तों की एक नकारात्मक छवि बन जाती है. ऐसे लोग किसी के करीब तो होना चाहते हैं, लेकिन भीतर ही भीतर डरते हैं, क्या ये रिश्ता भी वैसा ही होगा?
2. रिश्तों के टूटने का डर
टूटे हुए घर, तलाकशुदा माता-पिता या आसपास बिखरते रिश्ते, ये सब एक डर बना देते हैं कि शायद कोई भी रिश्ता टिकता नहीं. ऐसे में लोग प्यार को एंजॉय करना चाहते हैं, लेकिन शादी को रिस्क मानकर टाल देते हैं.
3. खुद पर भरोसे की कमी
कुछ लोग सोचते हैं, "मैं किसी की ज़िंदगी संभाल पाऊंगा?" उन्हें लगता है कि शायद वे अच्छे पार्टनर नहीं बन पाएंगे. वो खुद से ही पूरी तरह खुश नहीं होते, फिर किसी और को खुश कैसे रखेंगे? यह ‘सेल्फ डाउट’ उन्हें शादी जैसे कमिटमेंट से दूर रखता है.
4. आज़ादी की अहमियत
आज की पीढ़ी अपनी आज़ादी को बहुत अहमियत देती है. वे करियर, पर्सनल ग्रोथ और मानसिक शांति को रिश्तों से पहले रखते हैं. अगर उन्हें लगे कि कोई रिश्ता उनकी आज़ादी या ग्रोथ में रुकावट बनेगा, तो वे उससे दूर हो जाते हैं, even if it's love.
5. कमिटमेंट फोबिया के संकेत
इसका मतलब यह नहीं कि वो प्यार नहीं करते, लेकिन जैसे ही कोई रिश्ता ‘रूल्स’ और ‘टैग्स’ में बंधने लगता है, उनका मन घबराने लगता है. प्लान कैंसिल करना, दूरी बनाना या शादी की बात पर चुप हो जाना, ये सब कमिटमेंट से डरने के संकेत हो सकते हैं.
तो क्या करें?
अगर आप या आपका पार्टनर इस दौर से गुजर रहा है, तो सबसे पहले जरूरी है खुलकर बात करना. हर रिश्ता एक-दूसरे को समझने और एक्सेप्ट करने से ही चलता है. अगर डर, अनजाने अनुभव या अनसुलझे भाव इसे रोक रहे हैं, तो प्रोफेशनल मदद लेने में कोई बुराई नहीं. शादी कोई मंज़िल नहीं, बल्कि एक साझा यात्रा है, बस जरूरी है कि दोनों साथी उसकी दिशा और रफ्तार को लेकर एकमत हों. आपके रिश्ते का भविष्य प्यार पर नहीं, समझदारी और ईमानदारी पर टिका होता है. इसलिए अगर आप प्यार में हैं, तो खुद से भी उतना ही प्यार करें कि अपने डर, असमंजस और उम्मीदों को समझ सकें.
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