जब जनता की आवाज़ सरकार के गलियारों तक गूंजने लगे, जब सड़कों पर आक्रोश लहरों की तरह उठने लगे और जब सत्ता की नींव हिलने लगे, तो समझिए बदलाव करीब है. आज नेपाल उसी मोड़ पर खड़ा है. प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने अचानक इस्तीफा देकर देश को सियासी संकट में डाल दिया है, और अब यह सवाल पूरे नेपाल को झकझोर रहा है कि अगला प्रधानमंत्री कौन होगा?
राजधानी काठमांडू और अन्य बड़े शहरों में जारी हिंसक प्रदर्शनों के बीच ओली का पद छोड़ना कोई साधारण घटना नहीं थी. यह एक ऐसा संकेत था, जिसने नेपाल की राजनीति को भीतर तक झकझोर कर रख दिया है. सोशल मीडिया पर बैन, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और सत्ता में भाई-भतीजावाद जैसी समस्याओं को लेकर जनता का आक्रोश अब चुप नहीं है.
इस समय नेपाल में राजनीतिक उथल-पुथल, जनता का असंतोष और नए नेतृत्व की तलाश तीनों एक साथ मौजूद हैं.
रबी लामिछाने: युवा चेहरा, बड़ा भरोसा
नेपाल की राजनीति में अगर कोई नाम सबसे ज़्यादा चर्चा में है, तो वह है रबी लामिछाने. पत्रकार से राजनेता बने लामिछाने ने 2022 में राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी (RSP) की स्थापना की थी और थोड़े ही समय में उन्होंने खुद को जनता का चेहरा साबित किया.
उनकी पार्टी ने प्रधानमंत्री ओली के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में खुलकर साथ दिया. इतना ही नहीं, RSP के 21 सांसदों ने सामूहिक इस्तीफा देकर ओली पर दबाव बनाने में निर्णायक भूमिका निभाई.
रबी लामिछाने का जनाधार खासकर युवाओं में मजबूत है. सोशल मीडिया पर उनकी जबरदस्त फैन फॉलोइंग है और वे भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के प्रतीक के रूप में उभरे हैं. वे पुराने नेताओं जैसे ओली, प्रचंड और देउबा के मुकाबले एक साफ-सुथरी छवि वाले नेता माने जाते हैं.
आलोचक हालांकि कहते हैं कि लामिछाने ने यह पूरा जन आंदोलन एक सोची-समझी राजनीतिक चाल के तहत खड़ा किया. कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, उन्होंने पर्दे के पीछे से इस आंदोलन को हवा दी, युवाओं को सोशल मीडिया के ज़रिए सड़कों पर उतारा और सरकार पर चौतरफा दबाव बनाया.
लेकिन चाहे जो हो, इतना तो तय है कि लामिछाने अब नेपाल की राजनीति के सबसे ताकतवर चेहरों में से एक बन चुके हैं.
बलेन शाह: बदलाव की नई आवाज़
जब राजनीति में कोई गैर-पारंपरिक चेहरा उभरता है, तो या तो उसे जनता हाथों-हाथ लेती है या फिर सिस्टम उसे कुचल देता है. बलेन शाह काठमांडू के मौजूदा मेयर एक ऐसा ही चेहरा हैं.
बलेन शाह की पृष्ठभूमि आम नेताओं जैसी नहीं है. वे एक इंजीनियर, रैपर, कवि और स्वतंत्र विचारक हैं, जिन्होंने 2022 में स्थानीय चुनाव में काठमांडू के मेयर के तौर पर स्वतंत्र उम्मीदवार बनकर जीत दर्ज की.
वे किसी पार्टी से नहीं जुड़ते, लेकिन जनता के मुद्दों से गहराई से जुड़े हैं. उन्होंने सोशल मीडिया प्रतिबंध, भ्रष्टाचार और राजनीतिक भाई-भतीजावाद के खिलाफ खुलकर आवाज़ उठाई है. हाल ही में उन्होंने जेनरेशन-Z द्वारा चलाए गए आंदोलन का खुला समर्थन देकर दिखा दिया कि वे सिर्फ पद पर नहीं, विचारों से भी प्रतिबद्ध हैं.
हालांकि, उनके खिलाफ सबसे बड़ी बात यही है कि वे अनुभवहीन हैं. राष्ट्रीय स्तर की राजनीति, गठबंधन बनाना, संसद को संभालना इन सभी मोर्चों पर उनका कोई अनुभव नहीं है.
लेकिन उनकी स्वच्छ छवि और जनता से सीधा जुड़ाव उन्हें एक प्रभावशाली विकल्प बनाता है.
नेपाल की सड़कों पर फुटा गुस्सा
ओली के इस्तीफे से पहले और बाद में नेपाल की सड़कों पर जो कुछ हुआ, वह किसी भी लोकतंत्र के लिए चेतावनी है.
प्रदर्शनकारियों ने काठमांडू में ओली के घर को आग के हवाले कर दिया. यही नहीं, देश के उपप्रधानमंत्री विष्णु पौडेल, नेपाल राष्ट्र बैंक के गवर्नर बिस्वो पौडेल और यहां तक कि पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा और उनकी पत्नी, विदेश मंत्री आरजू राणा देउबा तक को हिंसा का सामना करना पड़ा.
इससे यह साफ हो गया कि जनता अब सिर्फ नाराज़ नहीं, बदले की मुद्रा में है. युवाओं का कहना है कि वे अब "नेताओं के भाषण नहीं, उनके कार्यों का हिसाब" चाहते हैं.
ये हिंसक घटनाएं भले ही चिंता का विषय हैं, लेकिन ये इस बात की भी पुष्टि करती हैं कि नेपाल में सत्ता की ताकत अब सिर्फ संसद में नहीं, सड़कों पर भी है.
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