भारत का लक्ष्य हासिल हो गया था या पाकिस्तान को आसानी से छोड़ दिया... समझिए युद्धविराम का हर एंगल

    पहलगाम में हुए भीषण आतंकवादी हमले के जवाब में भारत ने न केवल कूटनीतिक मोर्चे पर सख्ती दिखाई, बल्कि सैन्य कार्रवाई से भी स्पष्ट संकेत दे दिया कि अब पुराने ढर्रे पर वापसी संभव नहीं है.

    Understand every angle of the India-Pakistan ceasefire
    प्रतीकात्मक तस्वीर/Photo- ANI

    नई दिल्ली: भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया सैन्य टकराव एक निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका था. पहलगाम में हुए भीषण आतंकवादी हमले के जवाब में भारत ने न केवल कूटनीतिक मोर्चे पर सख्ती दिखाई, बल्कि सैन्य कार्रवाई से भी स्पष्ट संकेत दे दिया कि अब पुराने ढर्रे पर वापसी संभव नहीं है. लेकिन चार दिनों की घातक कार्रवाई के बाद अचानक जब युद्धविराम की घोषणा हुई, तो यह कई लोगों के लिए एक अप्रत्याशित मोड़ साबित हुआ.

    अब यह सवाल उठ रहा है — क्या भारत ने एक सुनहरा मौका गंवा दिया? या फिर यह एक रणनीतिक, दूरदर्शी और अंतरराष्ट्रीय दबावों को ध्यान में रखकर लिया गया विवेकपूर्ण निर्णय था?

    युद्धविराम: पहला कदम किसने उठाया?

    10 मई की सुबह एक महत्वपूर्ण मोड़ लेकर आई. भारत के डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशन्स (DGMO) लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई को पाकिस्तान के DGMO मेजर जनरल काशिफ अब्दुल्ला का हॉटलाइन कॉल आया. बातचीत में अब्दुल्ला ने युद्धविराम की पेशकश की. यह प्रस्ताव तब आया जब पाकिस्तान की सैन्य मशीनरी पहले ही भारी क्षति झेल चुकी थी — विशेषकर भारत द्वारा पाकिस्तानी एयरबेसों पर किए गए हमलों के बाद.

    सूत्रों के अनुसार, यह पहल पाकिस्तान ने अमेरिकी मध्यस्थता के तहत की थी. अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने पहले पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर से, और फिर भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर से बात की. हालांकि भारत ने शुरुआत में इस वार्ता को सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं किया.

    भारत की सैन्य और कूटनीतिक स्थिति

    भारतीय सेना पूरी तैयारी के साथ आगे बढ़ने को तत्पर थी. वायुसेना के ऑपरेशन ने पाकिस्तान को आंशिक रूप से अंधा कर दिया था, जबकि नौसेना अरब सागर में रणनीतिक प्रभुत्व बना चुकी थी. भारतीय सेना का मनोबल उच्चतम स्तर पर था, आर्थिक संसाधन स्थिर थे, और अंतरराष्ट्रीय समुदाय—खासकर पश्चिमी लोकतंत्र—भारत के रुख को 'जवाबी कार्रवाई' के रूप में देख रहे थे, न कि 'आक्रामकता' के रूप में.

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में हुई एक उच्चस्तरीय बैठक में रक्षा मंत्री, NSA अजीत डोभाल, CDS अनिल चौहान, तीनों सेनाओं के प्रमुखों और खुफिया एजेंसियों के शीर्ष अधिकारियों ने भाग लिया. बैठक में सामूहिक रूप से इस बात पर सहमति बनी कि भारत मजबूत स्थिति में है और आगे बढ़ने का सामरिक औचित्य भी मौजूद है.

    लेकिन फिर क्यों आया युद्धविराम?

    इस अचानक लिए गए युद्धविराम निर्णय के पीछे कई संभावित कारण हो सकते हैं:

    1. परमाणु युद्ध का डर- मिथ या हकीकत?

    अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे. डी. वेंस ने प्रधानमंत्री मोदी को फोन कर पाकिस्तान की एक 'खतरनाक योजना' की जानकारी दी थी. अनुमान यह लगाया जा रहा है कि यह योजना पाकिस्तान के परमाणु हथियारों से जुड़ी हो सकती है. हालांकि यह पहली बार नहीं है कि पाकिस्तान ने परमाणु हमले की धमकी दी हो, लेकिन अमेरिका की सीधी चेतावनी को भारत ने गंभीरता से लिया.

    2. अंतरराष्ट्रीय दबाव और वैश्विक छवि

    भारत, जो एक उभरती हुई वैश्विक शक्ति के रूप में देखा जा रहा है, अपनी छवि को एक ज़िम्मेदार और संतुलित देश के रूप में बनाए रखना चाहता है. युद्ध को लंबे समय तक खींचना वैश्विक आर्थिक और कूटनीतिक हितों को भी प्रभावित कर सकता था.

    3. सीमित सैन्य उद्देश्य- लक्ष्य हासिल हो गया था?

    एक अन्य दृष्टिकोण यह भी है कि भारत ने जो लक्ष्य तय किए थे—जैसे आतंकी लॉंचपैड्स और पाकिस्तानी मिलिट्री इनफ्रास्ट्रक्चर को नष्ट करना—उन्हें काफी हद तक हासिल कर लिया गया था. ऐसे में युद्ध को आगे बढ़ाना अधिक जोखिमपूर्ण हो सकता था.

    क्या भारत ने एक अवसर खो दिया?

    विशेषज्ञों का एक वर्ग, जैसे रणनीतिकार ब्रह्मा चेल्लान्नी, मानते हैं कि यह युद्धविराम एक अधूरी जीत है. उनका तर्क है कि: "भारत के पास पाकिस्तान की आतंक समर्थक नीति को स्थायी रूप से कुचलने का मौका था. ऐसे मौके बार-बार नहीं आते. 1948, 1971, 1999—हर बार हमने मोर्चे पर जीत हासिल की लेकिन कूटनीति में पीछे हट गए."

    चेल्लान्नी यह भी याद दिलाते हैं कि 1972 के शिमला समझौते में भारत ने जीती गई ज़मीन पाकिस्तान को लौटा दी थी, बिना कोई ठोस वादा लिए. उनका यह कहना भी महत्वपूर्ण है कि भारत को ऐसे मौकों का रणनीतिक लाभ उठाना चाहिए, बजाय भावनात्मक और अंतरराष्ट्रीय दबावों में आने के.

    युद्धविराम, लेकिन नीतिगत कठोरता जारी

    सरकार के उच्च सूत्रों के अनुसार, यह स्पष्ट कर दिया गया है कि युद्धविराम का मतलब यह नहीं है कि भारत ने अपनी रणनीतिक कठोरता में कोई ढील दी है. पाकिस्तान के खिलाफ लिए गए कदम—जैसे सिंधु जल समझौते की समीक्षा, पाकिस्तान के लिए हवाई क्षेत्र प्रतिबंध, और व्यापारिक अवरोध—जारी रहेंगे.

    इसके अलावा, भारत ने फिर दोहराया है कि जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद को रोकने की ठोस गारंटी नहीं देता, तब तक कोई द्विपक्षीय वार्ता नहीं होगी और न ही कोई तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार की जाएगी.

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