नेपाल की Gen-Z लीडरशिप में आई दरार, सेना मुख्यालय के बाहर फिर से होने लगा बवाल, क्या है नई मांग?

    नेपाल इन दिनों राजनीतिक अस्थिरता के गहरे दौर से गुजर रहा है. हाल ही में हुए जनआंदोलन ने देश की सत्ता व्यवस्था को झकझोर कर रख दिया है.

    There was another uproar outside the army headquarters in Nepal
    Image Source: Social Media

    नेपाल इन दिनों राजनीतिक अस्थिरता के गहरे दौर से गुजर रहा है. हाल ही में हुए जनआंदोलन ने देश की सत्ता व्यवस्था को झकझोर कर रख दिया है. खासतौर पर युवा पीढ़ी, जिसे 'Gen Z' आंदोलनकारी कहा जा रहा है, उन्होंने तीन दिनों तक देशभर में भारी प्रदर्शन किए. इस जनदबाव के चलते सरकार को इस्तीफा देना पड़ा, लेकिन अब जब अंतरिम सरकार के गठन की बारी आई है, तो स्थिति और भी उलझती नजर आ रही है.

    सेना मुख्यालय के बाहर हंगामा

    सर्वाधिक चिंताजनक स्थिति तब बनी जब राजधानी काठमांडू स्थित सेना मुख्यालय के बाहर Gen-Z आंदोलनकारियों के बीच ही आपसी टकराव देखने को मिला. आंदोलन की शुरुआत में जो एकजुटता दिखाई दे रही थी, अब वो दरारों में बदलती जा रही है. सेना मुख्यालय के बाहर प्रदर्शनकारियों के दो गुटों में तीखी नोकझोंक और धक्का-मुक्की तक की नौबत आ गई.

    इस टकराव की जड़ में है अंतरिम सरकार की लीडरशिप. युवा प्रदर्शनकारियों का एक गुट कुलमन घीसिंग को प्रधानमंत्री बनाए जाने के पक्ष में है, जबकि दूसरा गुट इसे लेकर असहमति जता रहा है. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट की पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की का नाम सामने आया था, लेकिन उन्होंने खुद को इस दौड़ से बाहर कर लिया.

    अंतरिम सरकार पर सहमति नहीं

    देश की राजनीतिक अनिश्चितता को खत्म करने के लिए राष्ट्रपति ने पहल की है. उन्होंने आंदोलनकारी युवाओं को संबोधित करते हुए एक पत्र जारी किया है, जिसमें भरोसा दिलाया गया है कि सभी की मांगों को ध्यान में रखकर ही कोई फैसला लिया जाएगा. राष्ट्रपति ने साफ किया है कि अंतरिम सरकार बनाने की प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष होगी.

    हालांकि, जमीनी हकीकत ये है कि वार्ता की प्रक्रिया में सभी प्रतिनिधियों को शामिल नहीं किया गया है. आंदोलनकारी युवाओं में से कई लोगों का आरोप है कि निर्णय लेने की प्रक्रिया में केवल चुनिंदा चेहरों को ही मौका मिल रहा है. वे इस बात से नाराज हैं कि जिस आंदोलन ने सत्ता बदलने की ताकत दिखाई, उसी आंदोलन के अधिकांश लोगों की आवाज़ अब दरकिनार की जा रही है.

    आपसी मतभेद और नेतृत्व संकट

    शुरुआती दिनों में जिस ‘Gen Z आंदोलन’ ने सरकार को घुटनों पर ला दिया था, वही अब खुद नेतृत्व संकट से जूझ रहा है. आंदोलन के कई प्रमुख चेहरे आपसी असहमति का शिकार हो गए हैं. कुछ नेताओं का कहना है कि देश इस वक्त बेहद नाजुक दौर से गुजर रहा है, ऐसे में आपसी लड़ाई का समय नहीं है. मगर दूसरी ओर, कुछ युवा नेताओं का तर्क है कि यदि अब नेतृत्व चयन में पारदर्शिता नहीं बरती गई, तो भविष्य में आंदोलन की मूल भावना ही खो जाएगी.

    संभावित नामों पर भी मतभेद

    अंतरिम सरकार की कमान किसे सौंपी जाए, इस पर भी लगातार माथापच्ची चल रही है. शुरुआती दौर में बालेन शाह, रबी लामिछाने और सुशीला कार्की जैसे नाम चर्चा में थे. लेकिन अब सुशीला कार्की ने अपना नाम वापस ले लिया है. वर्तमान में कुलमन घीसिंग का नाम सबसे अधिक चर्चा में है, जो नेपाल विद्युत प्राधिकरण के पूर्व कार्यकारी निदेशक रह चुके हैं और अपनी साफ-सुथरी छवि के लिए पहचाने जाते हैं. बावजूद इसके, आंदोलन के भीतर से ही उनके नाम को लेकर विरोध के स्वर उठ रहे हैं.

    ये भी पढ़ें- बेलगाम हुआ इजरायल! 72 घंटों में मिडिल ईस्ट के 6 देशों पर किया हमला, 200 से ज्यादा की मौत, छिड़ेगी जंग?