बहुत पहले, जब रेजांग ला को बहादुरी की मिसाल माना गया, तब वो लद्दाख के पूर्वी इलाके में चुषूल गांव के पास एक सुदूर, बर्फीली और तेज़ हवा वाली पहाड़ी दर्रा हुआ करता था. करीब 18,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित ये इलाका भारतीय सैन्य इतिहास की सबसे बहादुर आखिरी लड़ाइयों में से एक का गवाह बना.
उस जंग के बीचोंबीच थी 13 कुमाऊं बटालियन की चार्ली कंपनी.
नवंबर 1962 में चार्ली कंपनी के 120 जवान इस ऊंचे मोर्चे पर तैनात थे, चुषूल सेक्टर की हिफाज़त के लिए — जो इलाके के लिहाज़ से बहुत ही अहम था. हाड़ गला देने वाली ठंड, मुश्किल पहाड़ और दुश्मन का बढ़ता दबाव... सब कुछ झेलते हुए इन जवानों ने मोर्चा नहीं छोड़ा, जान की बाज़ी लगाकर डटे रहे.
कंपनी की कमान मेजर शैतान सिंह के पास थी
चार्ली कंपनी की कमान मेजर शैतान सिंह भाटी PVC के पास थी, एक ऐसे अफसर जिनकी शांत ताक़त ने हर जवान को दिल से जोड़े रखा. 18 नवंबर 1962 की रात, चार्ली कंपनी के जवानों ने रेजांग ला पर दुश्मन के एक के बाद एक हमले नाकाम कर दिए और ज़बरदस्त बहादुरी दिखाई. अगर चीन रेजांग ला पर कब्जा कर लेता, तो उसे चुषूल एयरफील्ड तक पहुंचने का सीधा मौका मिल जाता, जो वहां से बस थोड़ा ही दूर था और फौज के लिए बेहद जरूरी जगह थी.
हालांकि ये लड़ाई भारी क़ीमत पर जीती गई, लेकिन इन जवानों की बहादुरी ने एक ऐसी कहानी छोड़ दी जो आज भी फौजी कैंपों से लेकर इतिहास की किताबों तक गूंजती है. चार्ली कंपनी बलिदान की पहचान बन गई और ये याद दिलाने के लिए कि कैसे मुट्ठीभर जांबाज़ों ने पूरे युद्ध की तस्वीर ही बदल दी.
फ़िल्म 120 बहादुर के ज़रिए ज़िंदा हो रही कहानी
अब इन जांबाज़ों की ये बेमिसाल कहानी फ़िल्म 120 बहादुर के ज़रिए पर्दे पर ज़िंदा हो रही है, जिसमें फरहान अख्तर मेजर शैतान सिंह भाटी PVC का किरदार निभा रहे हैं. इस फ़िल्म का निर्देशन किया है रज़नीश 'राज़ी' घई ने और इसे प्रोड्यूस किया है रितेश सिधवानी, फरहान अख्तर (एक्सेल एंटरटेनमेंट) और अमित चंद्रा (ट्रिगर हैप्पी स्टूडियोज़) ने. ये फ़िल्म एक्सेल एंटरटेनमेंट के बैनर तले बनी है.
120 बहादुर सिर्फ़ एक वॉर फ़िल्म नहीं है, ये उन वीरों को सलाम है जो उन पहाड़ों से भी ऊंचे खड़े रहे, जिन पर वो लड़े. फ़िल्म इसी साल सिनेमाघरों में रिलीज होने के लिए तैयार है.
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