गजब हो गया! न खंभा, न तार, न मीटर.. फिर भी बिजली विभाग ने थमा दिया 82 हजार का बिल

    Saharanpur News: उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले से बिजली विभाग की एक ऐसी चौंकाने वाली कहानी सामने आई है, जिसे सुनकर किसी का भी माथा ठनक जाए. यहां बिजली विभाग ने एक ऐसे भवन के नाम पर 82,354 रुपये का बिल भेज दिया, जहां न तो बिजली का कनेक्शन है, न पोल और न ही मीटर.

    Saharanpur electricity department sent a bill of 82 thousand rupees without wire and meter
    प्रतीकात्मक तस्वीर | Photo: Freepik

    Saharanpur News: उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले से बिजली विभाग की एक ऐसी चौंकाने वाली कहानी सामने आई है, जिसे सुनकर किसी का भी माथा ठनक जाए. यहां बिजली विभाग ने एक ऐसे भवन के नाम पर 82,354 रुपये का बिल भेज दिया, जहां न तो बिजली का कनेक्शन है, न पोल और न ही मीटर. मामला सहारनपुर की नकुड़ विधानसभा क्षेत्र के गांव बहरामपुरा का है, जहां पंचायत सचिवालय का निर्माण कार्य अभी भी अधूरा है.

    न बिजली का खंभा, न तार, फिर भी बिल

    गांव के प्रधान विक्रम सिंह राठौड़ खुद इस लापरवाही के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं. उनका कहना है कि पंचायत भवन का निर्माण वर्ष 2023 में शुरू हुआ था, जबकि बिजली विभाग ने बिना किसी पूर्व सूचना या कनेक्शन के अप्रैल 2022 से ही बिल बनाना शुरू कर दिया. प्रधान ने बताया कि आज तक न वहां कोई खंभा लगा है और न ही उन्होंने बिजली कनेक्शन के लिए कोई आवेदन किया है. इसके बावजूद विभाग की रिपोर्ट में यह दिखा दिया गया कि "कनेक्शन चालू" है.

    पहली बार दिसंबर में आया 70 हजार से अधिक का बिल

    इस मामले ने तब तूल पकड़ा जब दिसंबर 2024 में प्रधान को पता चला कि पंचायत सचिवालय के नाम पर 70,694 रुपये का बिजली बिल बकाया है. जब उन्होंने बिजली विभाग का रुख किया और इस बिल पर आपत्ति दर्ज कराई, तब भी कोई सुनवाई नहीं हुई. न तो बिल में सुधार किया गया और न ही किसी अधिकारी ने इस लापरवाही की जिम्मेदारी ली. उल्टा, हाल ही में यह बकाया बढ़कर 82,354 रुपये तक पहुंच गया है.

    अफसरों से गुहार, पर नतीजा 'शून्य'

    प्रधान विक्रम सिंह ने 16 दिसंबर 2024 को अधिशासी अभियंता को एक लिखित शिकायत भेजी थी, जिसमें साफ तौर पर मांग की गई थी कि इस फर्जी कनेक्शन को तुरंत बंद किया जाए और झूठी रिपोर्ट के आधार पर भेजे गए बिल को रद्द किया जाए. लेकिन, हैरानी की बात है कि आज तक न कोई जांच हुई और न ही कोई कार्रवाई. जिम्मेदार अधिकारी बस एक-दूसरे पर टालते रहे. यहां तक कि एसडीएम को भी शिकायत दी गई, लेकिन जवाब में वही पुरानी झूठी रिपोर्ट दोहराई गई.

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