दशकों तक सहयोग और साझेदारी की मिसाल रहे रूस और अजरबैजान के बीच इन दिनों संबंधों में अप्रत्याशित तनाव देखा जा रहा है. एक समय सोवियत संघ का हिस्सा रहे ये दोनों देश अब एक गंभीर राजनयिक टकराव की स्थिति में हैं. हाल की कुछ घटनाओं ने इस तनाव को नया मोड़ दे दिया है, जिससे दोनों देशों के बीच अविश्वास और टकराव की खाई और गहरी हो गई है.
भारत के दृष्टिकोण से भी यह घटनाक्रम महत्वपूर्ण है, क्योंकि अजरबैजान भारत विरोधी रुख और पाकिस्तान से करीबी को लेकर पहले ही भारत के साथ तनावपूर्ण संबंधों में है. आइए, समझते हैं कि आखिर रूस और अजरबैजान के बीच यह विवाद किस मोड़ पर पहुंच चुका है और इसके पीछे की प्रमुख वजहें क्या हैं.
हालिया टकराव की मुख्य वजहें
रूस में अजरबैजानी नागरिकों की हिरासत में मौत
तनाव की शुरुआत 27 जून 2025 को रूस के येकातेरिनबर्ग शहर से हुई, जहां रूसी पुलिस ने अजरबैजानी मूल के दो भाइयों हुसेन और जियाद्दिन सफारोव को एक पुराने आपराधिक मामले की जांच के तहत हिरासत में लिया. अजरबैजान का आरोप है कि पुलिस ने दोनों को बेरहमी से पीटा, जिससे उनकी मौत हो गई. रूस का दावा है कि एक की मौत हार्ट अटैक से हुई, जबकि दूसरी मौत की जांच जारी है. अजरबैजान इसे "यातना और जानबूझकर हत्या" बता रहा है.
रूसी पत्रकारों की गिरफ्तारी का जवाबी वार
इस घटना के बाद अजरबैजान ने जवाबी कार्रवाई करते हुए स्पूतनिक अजरबैजान के दफ्तर पर छापा मारा और कई रूसी पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया. इन पर धोखाधड़ी, मनी लॉन्ड्रिंग और साइबर अपराध के आरोप लगाए गए हैं. रूस ने इसे "राजनीतिक प्रतिशोध" करार दिया और अपने राजदूत को बाकू से तलब कर विरोध जताया.
प्लेन हादसे को लेकर पुराने घाव हरे
दिसंबर 2024 में अजरबैजान एयरलाइंस का एक विमान रूस के ग्रोज़्नी के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, जिसमें 38 लोग मारे गए. अजरबैजान का दावा है कि विमान को रूसी हवाई रक्षा प्रणाली ने निशाना बनाया. हाल ही में जारी ऑडियो रिकॉर्डिंग में कथित तौर पर रूसी सैन्य अधिकारियों को फायरिंग का आदेश देते हुए सुना गया. रूस ने इन आरोपों को खारिज किया और माफी मांगने से इनकार कर दिया.
रूसी भाषा और सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर रोक
अजरबैजान ने हाल ही में रूसी भाषा के स्कूलों को धीरे-धीरे बंद करने की घोषणा की है. साथ ही सभी रूसी सांस्कृतिक आयोजनों और संसदीय संवादों को स्थगित कर दिया गया है. यह सांस्कृतिक अलगाव रूस की उस नीति के लिए झटका है, जिसके तहत वह पूर्व सोवियत राज्यों में सांस्कृतिक प्रभाव बनाए रखना चाहता है.
तुर्की-अजरबैजान की बढ़ती नजदीकी
तुर्की और अजरबैजान के बीच सैन्य और रणनीतिक साझेदारी रूस को असहज कर रही है. खासतौर पर नागोर्नो-कराबाख संघर्ष में तुर्की के समर्थन से अजरबैजान ने आर्मेनिया पर बढ़त बना ली. इससे रूस का इस क्षेत्र में पारंपरिक प्रभाव कमजोर पड़ा है.
रूस की यूक्रेन पर व्यस्तता
यूक्रेन युद्ध में उलझा रूस अब दक्षिण काकेशस पर उतना ध्यान नहीं दे पा रहा, जितना पहले देता था. इस रणनीतिक कमजोरी का फायदा अजरबैजान उठा रहा है. हाल में अजरबैजान ने यूक्रेन का खुला समर्थन भी जताया, जो रूस के लिए बड़ा संकेत है.
पहले के अच्छे रिश्तों में गिरावट
1990 के दशक में रूस और अजरबैजान के बीच व्यापार, शिक्षा, निर्माण और प्रवास जैसे क्षेत्रों में गहरे रिश्ते थे. रूस आज भी अजरबैजान की फल और सब्जी बाजार का बड़ा केंद्र है. लेकिन 2020 के बाद हालात बदलने लगे, जब अजरबैजान ने तुर्की के सहयोग से कराबाख पर नियंत्रण पा लिया और रूस ने कोई हस्तक्षेप नहीं किया. 2023 में रूसी शांति सैनिकों की वापसी के साथ ही रूस का प्रभाव लगभग खत्म हो गया.
भारत के लिए क्या मायने?
भारत को इस घटनाक्रम को नज़दीकी से देखना चाहिए क्योंकि अजरबैजान लगातार पाकिस्तान का समर्थक बना हुआ है. दूसरी ओर, रूस भारत का पुराना रणनीतिक सहयोगी रहा है. यदि रूस और अजरबैजान का तनाव और गहराता है, तो इससे दक्षिण काकेशस में नई रणनीतिक ध्रुवीकरण की संभावना बनती है, जो भारत की विदेश नीति और रक्षा सहयोग के लिहाज से भी महत्वपूर्ण हो सकता है.
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