इस्लामाबाद/नई दिल्ली: भारत द्वारा सिंधु जल समझौते की समीक्षा और संभावित निलंबन की घोषणा के बाद, पाकिस्तान में तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं. प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इस फैसले को "अनुचित" करार देते हुए कहा है कि दोनों देशों को आपसी मुद्दों को बातचीत और कूटनीति के ज़रिए सुलझाना चाहिए.
पाकिस्तान में सिंधु नदी से जुड़ी परियोजनाओं पर भी असर पड़ा है. विशेष रूप से पंजाब प्रांत में निर्माणाधीन नहरों का काम अब रोक दिया गया है, जिसे लेकर सिंध प्रांत में पहले से असंतोष और विरोध दर्ज किया जा रहा था.
भारतीय दूतावास के बाहर प्रदर्शन
गुरुवार को इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग के बाहर भारी भीड़ जमा हो गई, जिसने भारत विरोधी नारे लगाए और परिसर के बाहर हंगामा किया. कुछ प्रदर्शनकारियों ने गेट पार करने की कोशिश भी की. यह आरोप भी लगाए जा रहे हैं कि घटनास्थल पर सुरक्षा व्यवस्था जानबूझकर ढीली की गई थी, हालांकि इस पर पाकिस्तान सरकार की ओर से कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है.
सुरक्षा परिषद की बैठक और तीव्र प्रतिक्रिया
पाकिस्तान की नेशनल सिक्योरिटी कमेटी (NCS) ने गुरुवार को आपात बैठक की. इस बैठक में भारत-पाकिस्तान के बीच सभी प्रमुख द्विपक्षीय समझौतों को स्थगित करने की घोषणा की गई, जिसमें 1972 का शिमला समझौता भी शामिल है.
बैठक में यह भी कहा गया कि अगर भारत सिंधु जल प्रवाह को रोकता है, तो इसे पाकिस्तान की संप्रभुता पर सीधा हमला माना जाएगा और इसे "युद्ध की कार्रवाई" (Act of War) के रूप में देखा जाएगा.
पाक मीडिया और राजनीतिक हलचल
स्थानीय मीडिया, विशेष रूप से अख़बार डॉन ने रिपोर्ट किया कि बैठक में भारत में हाल ही में पारित वक्फ अधिनियम पर भी चिंता जताई गई. पाकिस्तान का आरोप है कि यह कदम मुसलमानों को हाशिए पर डालने की नीति का हिस्सा है. भारत की ओर से इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी गई है.
शिमला समझौते की पृष्ठभूमि
1972 में भारत और पाकिस्तान के बीच हस्ताक्षरित शिमला समझौता, 1971 के युद्ध के बाद एक स्थायी शांति और द्विपक्षीय संवाद की रूपरेखा के तौर पर स्थापित हुआ था. इसके तहत दोनों देशों ने सभी विवादों को बातचीत से सुलझाने की बात कही थी और नियंत्रण रेखा (LoC) को मान्यता देने का संकल्प लिया था.
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