इस्लामाबाद: पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में हालात अब नियंत्रण से बाहर होते जा रहे हैं. अलगाववादी ताकतों ने इस क्षेत्र को जंग का मैदान बना दिया है और पाकिस्तानी सेना के लिए यह इलाका अब एक दु:स्वप्न बन चुका है. बलूच विद्रोहियों के हमले तेज हो गए हैं और वे लगातार पाकिस्तानी सेना की मौजूदगी को चुनौती दे रहे हैं.
परेशान पाकिस्तानी सेना अब बलूचों को धमकाने पर उतर आई है. सेना की मीडिया विंग आईएसपीआर के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शरीफ चौधरी ने सोमवार को बयान देते हुए कहा कि “बलूचिस्तान पाकिस्तान का हिस्सा है और हमेशा रहेगा. कोई ताकत इसे देश से अलग नहीं कर सकती.” यह बयान एक ऐसे समय में आया है जब बलूच विद्रोही दावा कर रहे हैं कि वे पाकिस्तानी सुरक्षा बलों के खिलाफ कई क्षेत्रों पर नियंत्रण पा चुके हैं.
सेना की ‘Hilal Talks’ में लगा भारत पर आरोपों का पुलिंदा
इस्लामाबाद में आयोजित ‘हिलाल टॉक्स 2025’ कार्यक्रम में लेफ्टिनेंट जनरल चौधरी शिक्षकों को संबोधित कर रहे थे, लेकिन मंच पर सेना का असली टारगेट भारत था. उन्होंने भारत पर बलूच विद्रोह को बढ़ावा देने, बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी को फंडिंग देने, और पाकिस्तान को अस्थिर करने की साजिश रचने जैसे गंभीर आरोप लगाए.
चौधरी ने कहा, “बलूचिस्तान में जो हिंसा हो रही है, वह किसी विचारधारा से प्रेरित नहीं बल्कि पूरी तरह भारत द्वारा प्रायोजित है. भारत इस क्षेत्र में शांति भंग करने की कोशिश कर रहा है.”
भारत पर आरोप लगाने की पुरानी आदत
पाकिस्तानी सेना ने एक बार फिर बिना किसी ठोस सबूत के भारत पर “छद्म युद्ध” का आरोप लगाया है. यह वही पुराना पैटर्न है— जब भी बलूचिस्तान में हालात हाथ से निकलते हैं, इस्लामाबाद और रावलपिंडी की ओर से दिल्ली पर उंगली उठाई जाती है.
रविवार को बलूचिस्तान के हालात पर प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और सेना प्रमुख सैयद आसिम मुनीर ने भी एक सुर में भारत को बलूच संकट का ज़िम्मेदार बताया था. क्वेटा में आयोजित एक जिरगा में शरीफ ने कहा कि भारत बलूच विद्रोह को आर्थिक मदद दे रहा है और इसके पीछे की ताकत है. वहीं सेना प्रमुख मुनीर ने दावा किया, “भारत का प्रायोजित छद्म युद्ध अब कोई रहस्य नहीं रहा.”
बलूचिस्तान की आग बुझाने में नाकाम
विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान की सेना और सरकार बलूचिस्तान में लगातार बढ़ते जनविरोध, मानवाधिकार उल्लंघन और स्थानीय असंतोष को संभालने में पूरी तरह विफल रही है. जनता की आवाज़ को दबाने के लिए सैन्य कार्रवाई की जाती रही, जिसका नतीजा अब खुला विद्रोह है.
बलूचिस्तान पाकिस्तान के लिए न केवल रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके प्राकृतिक संसाधन और समुद्री मार्ग इसे आर्थिक दृष्टि से भी केंद्रीय भूमिका में रखते हैं. यही कारण है कि अलगाववादी आंदोलन को दबाने के लिए पाकिस्तान किसी भी हद तक जाने को तैयार है—भले ही उसे दुनिया भर में अपनी छवि की कीमत चुकानी पड़े.
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