नई दिल्ली/इस्लामाबाद: पाकिस्तान को जुलाई 2025 के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है. यह भूमिका पाकिस्तान को सुरक्षा परिषद की प्रक्रियात्मक बैठकों का संचालन करने और एजेंडा तय करने की जिम्मेदारी देती है, लेकिन इसके साथ कोई विशेष निर्णयात्मक शक्ति नहीं जुड़ी होती. फिर भी यह सवाल उठ रहा है कि क्या इस पद पर पाकिस्तान की नियुक्ति भारत के लिए किसी रणनीतिक चिंता का विषय है.
क्या है पाकिस्तान की भूमिका?
यह एक प्रोटोकॉल आधारित रोटेशनल जिम्मेदारी है, जिसमें परिषद के 10 अस्थायी सदस्य एक-एक महीने के लिए अध्यक्ष बनते हैं.
इन समितियों में पाकिस्तान की भूमिका संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर तयशुदा रोटेशनल प्रक्रिया के अनुसार स्वाभाविक रूप से मिली है, न कि किसी विशेष कूटनीतिक जीत के कारण.
इन पदों का वास्तविक प्रभाव कितना है?
यद्यपि नाम बड़े हैं, परंतु इन भूमिकाओं की शक्तियां सीमित और प्रक्रियात्मक हैं:
भारत जैसे देश के खिलाफ कोई प्रस्ताव लाना, और उसे पारित कराना, लगभग असंभव है, जब तक कि P5 में से कोई सदस्य (जैसे फ्रांस, अमेरिका) उसका समर्थन न करे — जिसकी संभावना न के बराबर है.
पाकिस्तान की मंशा और भारत की रणनीति
पाकिस्तान का रिकॉर्ड बताता है कि वह वैश्विक मंचों पर कश्मीर और आतंकवाद जैसे मुद्दों को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश करता है. हालांकि, भारत की विदेश नीति और कूटनीतिक पहुँच पिछले दशक में मजबूत हुई है, और भारत संगठनों में अपने प्रभाव के जरिए संतुलन बनाना जानता है.
विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान की मौजूदा नियुक्तियाँ:
UNSC की सीमाएं और चुनौतियां
सर्वसम्मति मॉडल: प्रतिबंध समितियों में हर सदस्य की सहमति जरूरी होती है, जिससे कई बार प्रभावी कार्रवाई रुक जाती है.
राजनीतिक ध्रुवीकरण: प्रमुख शक्तियों के बीच मतभेदों के कारण परिषद कई बार निष्क्रिय बनी रहती है.
पारदर्शिता की कमी और अंदरूनी राजनीति भी इसकी कार्यक्षमता को प्रभावित करती है.
भारत को क्या करना चाहिए?
मौजूदा नियुक्तियों से उत्पन्न अवसरों का खुफिया और रणनीतिक दृष्टिकोण से विश्लेषण करते रहना ज़रूरी होगा.