पश्चिम बंगालः 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुआ आतंकी हमला न केवल एक वीभत्स त्रासदी था, बल्कि इसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. टूरिज़्म और सुकून के लिए आए 26 पर्यटकों को बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया, और कई अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए. इस अमानवीय हमले के बाद देशभर में गुस्से की लहर दौड़ गई. लेकिन, इस घटना का असर सिर्फ भावनात्मक नहीं रहा—इसने कुछ ज़िंदगियों की दिशा ही बदल दी. पश्चिम बंगाल के एक शिक्षक साबिर हुसैन ने, इस हमले से मानसिक रूप से आहत होकर, इस्लाम धर्म त्यागने का फैसला लिया है.
धर्म के नाम पर हत्या—एक शिक्षक का टूटा विश्वास
दक्षिण 24 परगना जिले के बादुरिया में स्थित 'निर्माण आदर्श विद्यापीठ' में विज्ञान पढ़ाने वाले साबिर हुसैन ने इस्लाम छोड़ने का निर्णय खुद की अंतरात्मा की आवाज़ पर लिया है. उन्होंने बताया कि पहलगाम हमले के दौरान आतंकियों ने पहले यह सुनिश्चित किया कि वे किस धर्म के लोगों को निशाना बना रहे हैं—और फिर बेकसूर टूरिस्ट्स को मौत के घाट उतार दिया.
एक टीवी चैनल से बातचीत में साबिर ने कहा, “मैं किसी धर्म का अनादर नहीं कर रहा हूं. यह मेरा निजी और स्वतंत्र निर्णय है. मैंने देखा है कि बार-बार धर्म का इस्तेमाल हिंसा फैलाने के लिए हथियार की तरह किया जाता है. कश्मीर में ये घटनाएं कई बार दोहराई जा चुकी हैं, और मैं अब इसे बर्दाश्त नहीं कर सकता.”
“मैं सिर्फ एक इंसान की पहचान चाहता हूं”
साबिर हुसैन का कहना है कि वो अब खुद को किसी धार्मिक पहचान से नहीं, बल्कि एक इंसान के रूप में देखना चाहते हैं. उन्होंने कहा, “मैं ऐसी दुनिया में नहीं रहना चाहता जहां हर चीज़ मजहब के चश्मे से देखी जाती हो.” उन्होंने यह भी साफ किया कि उनका यह निर्णय पूरी तरह से व्यक्तिगत है और उनके परिवार पर इसका कोई दबाव नहीं है. उन्होंने कहा, “मेरी पत्नी और बच्चे अपने रास्ते खुद चुन सकते हैं.”
कोर्ट का रुख किया, कानूनी प्रक्रिया जारी
धर्म त्यागने के इस फैसले को औपचारिक रूप देने के लिए साबिर हुसैन ने कोर्ट में याचिका दायर की है. उनका कहना है कि वे अब किसी भी धर्म से जुड़ी पहचान नहीं रखना चाहते और एक तटस्थ, मानवीय दृष्टिकोण के साथ जीवन जीना चाहते हैं.
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