सत्ता का ऑफर मिलते दौड़े उद्धव, बंद कमरे में फडणवीस से की 20 मिनट तक मुलाकात; क्या होने वाला है खेल?

    महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर नए मोड़ पर आ खड़ी हुई है. वर्षों पुराने सहयोगी और फिर कट्टर विरोधी बने देवेंद्र फडणवीस और उद्धव ठाकरे के बीच हालिया मुलाकातों ने अटकलों का बाजार गर्म कर दिया है.

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    Maharashtra Politics: महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर नए मोड़ पर आ खड़ी हुई है. वर्षों पुराने सहयोगी और फिर कट्टर विरोधी बने देवेंद्र फडणवीस और उद्धव ठाकरे के बीच हालिया मुलाकातों ने अटकलों का बाजार गर्म कर दिया है. कभी एक साथ सत्ता में रह चुके ये नेता अब दोबारा एक ही मंच पर नजर आ रहे हैं, और यही दृश्य राजनीतिक विश्लेषकों को सोचने पर मजबूर कर रहा है कि क्या महाराष्ट्र में फिर से भाजपा-शिवसेना (यूबीटी) का गठबंधन आकार ले सकता है?

    मुलाकातें जो दे रही हैं 'नए समीकरण' के संकेत

    बुधवार को महाराष्ट्र विधानसभा में मुख्यमंत्री फडणवीस ने पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को अप्रत्यक्ष रूप से सत्ताधारी गठबंधन में शामिल होने का संकेत दिया. इसके ठीक एक दिन बाद गुरुवार को दोनों नेताओं की विधान परिषद के सभापति राम शिंदे के कार्यालय में 20 मिनट की अहम मुलाकात ने चर्चाओं को और हवा दे दी. इस मुलाकात में आदित्य ठाकरे की मौजूदगी भी कम मायने नहीं रखती.

    बैठक का एजेंडा या बहाना?

    आदित्य ठाकरे ने इस मुलाकात को "शिक्षा नीति से जुड़ा संवाद" बताया. उनके अनुसार, उन्होंने मुख्यमंत्री को एक संकलन सौंपा जिसमें तीन-भाषा नीति की समीक्षा को लेकर सुझाव दिए गए हैं. लेकिन राजनीतिक गलियारों में यह माना जा रहा है कि इस बैठक के पीछे की मंशा सिर्फ शैक्षणिक संवाद नहीं थी, बल्कि इसके ज़रिए एक नए राजनीतिक समीकरण की जमीन तैयार हो रही है.

    पुराने गठबंधन की वापसी का संकेत?

    भाजपा और शिवसेना ने करीब 25 वर्षों तक महाराष्ट्र की राजनीति में साथ काम किया, लेकिन 2014 और फिर 2019 में संबंधों में बड़ी दरार आ गई. 2019 में उद्धव ठाकरे ने भाजपा से नाता तोड़कर कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाई, जो 2022 में एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद गिर गई. अब जबकि राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बीच भी संबंध सुधरते नजर आ रहे हैं और मराठी अस्मिता की राजनीति फिर जोर पकड़ रही है, भाजपा की रणनीति में फेरबदल के संकेत मिल रहे हैं.

    ठाकरे बंधुओं की एकता और भाजपा की नई रणनीति

    5 जुलाई को राज और उद्धव ने एक ही मंच साझा किया, जो 20 वर्षों में पहली बार हुआ. इस मंच पर दोनों ने हिंदी को तीसरी भाषा बनाने के फैसले को वापस लिए जाने का स्वागत किया. इससे पहले अप्रैल में राज ठाकरे ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि "पुरानी बातें तुच्छ थीं, मराठी मानूस के लिए एक होना जरूरी है." भाजपा के लिए यह एक चेतावनी है कि अगर ठाकरे बंधु एक हो जाते हैं, तो 2029 की रणनीति को बड़ा झटका लग सकता है. शायद यही वजह है कि फडणवीस अब पुराने रिश्तों को नया रूप देने की दिशा में सक्रिय नजर आ रहे हैं.

    क्या आने वाले हैं बड़े राजनीतिक बदलाव?

    फिलहाल, उद्धव ठाकरे लगातार फडणवीस सरकार की आलोचना कर रहे हैं, लेकिन साथ ही मंच साझा करना, बैठकें और परोक्ष संदेश यह भी दर्शाते हैं कि दरवाज़े पूरी तरह बंद नहीं हुए हैं. भाजपा की ओर से यह संकेत देना कि "हम 2029 तक विपक्ष में नहीं रहने वाले" और साथ ही "सत्ताधारी पक्ष में अलग रास्ते से आने" का ऑफर, यह सब आने वाले समय में किसी नए राजनीतिक गठबंधन की नींव भी बन सकता है.

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