Lucknow News: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में कृष्णानगर पुलिस ने मानव तस्करी के एक बड़े रैकेट का पर्दाफाश किया है. यह गिरोह पिछले 12 सालों से लड़कियों को शादी और अनैतिक कार्यों के लिए बेचने का गोरखधंधा चला रहा था. पुलिस ने इस गिरोह के दो मुख्य आरोपियों को गिरफ्तार किया है, जो मध्य प्रदेश और राजस्थान के निवासी हैं. इनके कब्जे से दो किशोरियों को भी बरामद किया गया है. इस मामले ने एक और हैरान करने वाली जानकारी सामने लाई, जब सीएम के पीएसओ की बेटी भी इस गिरोह के शिकार होने से बची, और पुलिस की मुस्तैदी से उसका पता चला.
गिरोह की विधि और पकड़ने की प्रक्रिया
गिरोह के सरगना संतोष साहू और उसके साथी मनीष भंडारी ने 12 सालों में 15 से ज्यादा लड़कियों को अलग-अलग जगहों पर बेचा था. ये तस्कर उन किशोरियों को निशाना बनाते थे जो अकेली और भटकी हुई होती थीं. गिरोह चारबाग रेलवे स्टेशन और आलमबाग बस स्टेशन जैसे भीड़भाड़ वाले इलाकों में लड़कियों पर नजर रखते थे. इनकी रणनीति थी कि वह लड़कियों को झांसा देकर अपनी जाल में फंसा लें और फिर उन्हें शादी या अनैतिक काम के लिए बेच दें. एक लड़की की कीमत 50,000 रुपये से लेकर 2.75 लाख रुपये तक होती थी.
सीएम के PSO की बेटी का मामला
गिरोह का पर्दाफाश तब हुआ, जब सीएम के पीएसओ की 16 वर्षीय बेटी 28 जून को घर से गायब हो गई. उसने एक वॉयस मैसेज भेजकर कहा था, "पापा, मुझे मत खोजना, मैं भगवान के पास जा रही हूं," और साथ में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्तियां भी ले गई. पुलिस की जांच में यह बात सामने आई कि किशोरी मथुरा में प्रेमानंद जी महाराज से मिलने का इच्छुक थी, और गिरोह के सरगना संतोष ने उसकी धार्मिक भावनाओं का फायदा उठाकर उसे चारबाग रेलवे स्टेशन पर बुलाया. फिर उसे मथुरा ले जाने के बहाने, कानपुर और प्रयागराज होते हुए मनीष भंडारी को 50,000 रुपये में बेच दिया.
किशोरी की सकुशल बरामदगी
किशोरी के गुमशुदा होने की रिपोर्ट के बाद पुलिस ने छह टीमें गठित की और 8 जुलाई को किशोरी को सकुशल बरामद कर लिया. पूछताछ में किशोरी ने अपनी पूरी कहानी बताई, जिसके आधार पर पुलिस ने संतोष साहू और मनीष भंडारी को गिरफ्तार किया. इसके अलावा, संतोष के कब्जे से रायबरेली की एक अन्य किशोरी भी मिली, जिसे परिवार वालों के पास पहुंचा दिया गया है.
गिरोह का नेटवर्क और आरोपियों की गिरफ्तारी
पूछताछ में यह भी पता चला कि इस गिरोह का नेटवर्क केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं था, बल्कि यह मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और राजस्थान जैसे राज्यों में भी फैला हुआ था. संतोष साहू और मनीष भंडारी के खिलाफ लखनऊ, प्रयागराज, वाराणसी, छत्तीसगढ़ और प्रतापगढ़ में विभिन्न मामलों में एफआईआर दर्ज हैं. संतोष की पहचान एक आधिकारिक शिक्षा के बिना अपराधी के तौर पर हुई, जबकि मनीष आठवीं तक पढ़ा था और ट्रेवेल्स में काम करता था. संतोष पर 25,000 रुपये का इनाम भी घोषित किया गया था. इस मामले ने मानव तस्करी के गोरखधंधे की गंभीरता को उजागर किया और पुलिस की मुस्तैदी की वजह से दो किशोरियों को सुरक्षित बचाया जा सका.
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