पश्चिम एशिया में लंबे समय से चल रहे यमनी संघर्ष में अब एक नया मोड़ आ सकता है. लगातार हवाई हमलों के बाद अब अमेरिका और यमन की सरकार मिलकर हूती विद्रोहियों के खिलाफ ज़मीन पर अभियान छेड़ने की योजना बना रहे हैं. सूत्रों की मानें तो इस संभावित जमीनी कार्रवाई को लेकर हूती समूह ने भी जवाबी तैयारी शुरू कर दी है.
दरअसल, हाल के दिनों में अमेरिका ने यमन में हवाई हमले तेज़ कर दिए हैं. ये हमले हूतियों के ठिकानों को निशाना बनाकर किए जा रहे हैं, जिन्होंने लाल सागर और अदन की खाड़ी में अमेरिकी और इज़रायली जहाजों पर हमले बढ़ा दिए हैं. हूती विद्रोही खुद को फिलिस्तीनी संघर्ष का समर्थक बताते हैं और गाज़ा युद्ध शुरू होने के बाद से उन्होंने अमेरिका और इज़रायल को सीधे तौर पर चुनौती देना शुरू कर दिया है.
हवाई हमलों के बाद जमीनी कार्रवाई की आशंका
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अमेरिकी व यमनी संयुक्त बलों द्वारा संभावित जमीनी हमले की खबरों ने हूतियों को अलर्ट कर दिया है. अंतरराष्ट्रीय अखबार अशरक अल-अवसत के हवाले से टाइम्स ऑफ इज़रायल ने रिपोर्ट किया है कि हूतियों ने होदेइदाह और अन्य घनी आबादी वाले क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में बारूदी सुरंगें बिछाना शुरू कर दिया है. यह उनके रणनीतिक बचाव का हिस्सा माना जा रहा है.
तेज होते अमेरिकी हमले और बढ़ती मानवीय क्षति
अमेरिकी सेना करीब एक महीने से यमन में लगातार बमबारी कर रही है. बीते शुक्रवार को हूती-नियंत्रित एक तेल टर्मिनल पर हुए हमले में 74 लोगों की मौत हो गई, जबकि 170 से अधिक घायल हुए. यह हमला अब तक का सबसे घातक माना जा रहा है. अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि जब तक हूती लाल सागर में जहाजों पर हमले बंद नहीं करते, हवाई हमले जारी रहेंगे.
हूती प्रभाव क्षेत्र और राजनीतिक समीकरण
इस समय यमन के लगभग एक-तिहाई भूभाग और 80 प्रतिशत जनसंख्या पर हूती विद्रोहियों का नियंत्रण है. राजधानी सना में उनकी 'सुप्रीम पॉलिटिकल काउंसिल' सक्रिय है, जबकि अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त यमनी सरकार दक्षिणी शहर अदन से शासन करती है. इस सरकार में कई धड़े शामिल हैं, जिनमें यूएई समर्थित दक्षिणी संक्रमणकालीन परिषद (STC) भी है. अमेरिका इस सरकार को अपना सहयोगी मानता है.
नए टकराव की संभावना, वैश्विक चिंता
अगर अमेरिकी और यमनी बल जमीनी मोर्चा खोलते हैं, तो यह संघर्ष एक नए और कहीं अधिक खतरनाक चरण में प्रवेश कर सकता है. पहले से ही मानवीय संकट से जूझ रहे यमन में स्थिति और भी भयावह हो सकती है. ऐसे में अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चिंता बढ़ना स्वाभाविक है.
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