13000 करोड़ लागत, 2400 किलो वजन, 12 दिन में पृथ्वी का डेटा... ISRO-NASA लॉन्च कर रहे NISAR सैटेलाइट

    भारत की अंतरिक्ष एजेंसी ISRO और अमेरिका की NASA मिलकर एक ऐसा सैटेलाइट लॉन्च करने जा रहे हैं, जो धरती की सतह पर हो रहे हर छोटे-बड़े बदलाव को बेहद बारीकी से पकड़ सकेगा.

    ISRO-NASA is launching NISAR satellite
    Image Source: X- ISRO

    नई दिल्ली: भारत की अंतरिक्ष एजेंसी ISRO और अमेरिका की NASA मिलकर एक ऐसा सैटेलाइट लॉन्च करने जा रहे हैं, जो धरती की सतह पर हो रहे हर छोटे-बड़े बदलाव को बेहद बारीकी से पकड़ सकेगा. इस जॉइंट मिशन का नाम है NISAR (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar) — और इसे लेकर न केवल भारत-अमेरिका, बल्कि पूरी दुनिया की निगाहें टिकी हुई हैं.

    क्या है खास NISAR में?

    NISAR दुनिया का पहला सैटेलाइट होगा जो एक साथ दो अलग-अलग रडार फ्रीक्वेंसी पर काम करेगा:

    • NASA का L-बैंड रडार – जो लंबी तरंगों की मदद से ज़मीन, जंगल, बर्फ और मिट्टी के भीतर तक की जानकारी जुटाएगा.
    • ISRO का S-बैंड रडार – जो सतह की बारीक संरचनाओं जैसे फसलें, बर्फ की परतें, और सूक्ष्म दरारों को डिटेक्ट करेगा.

    दोनों मिलकर हर 12 दिन में पूरी पृथ्वी की स्कैनिंग करेंगे – वह भी दिन हो या रात, बारिश हो या बादल. इससे 5-10 मीटर रिज़ॉल्यूशन वाली इमेज तैयार होंगी, जो वैज्ञानिकों और नीति-निर्माताओं के लिए बेहद उपयोगी होंगी.

    कितना बड़ा और महंगा है यह मिशन?

    • वज़न: करीब 2,400 किलोग्राम
    • लॉन्च रॉकेट: GSLV-F16
    • ऑर्बिट: 743 किलोमीटर ऊंची सन-सिंक्रोनस कक्षा
    • कुल लागत: करीब ₹13,000 करोड़ ($1.5 बिलियन) – यह अब तक का सबसे महंगा अर्थ ऑब्ज़र्वेशन सैटेलाइट मिशन है.

    इस सैटेलाइट में 12 मीटर लंबा मेष एंटीना लगाया गया है, जो दुनिया के सबसे बड़े स्पेसबोर्न रडार एंटेना में से एक है. इसकी सेंसिंग क्षमता इतनी बारीक है कि यह सेंटीमीटर स्तर की हलचल को भी पकड़ सकती है — चाहे वह भूकंप से जमीन की दरार हो, या बर्फ के नीचे हो रहा धीरे-धीरे पिघलाव.

    ISRO की भूमिका और भारत को क्या फायदा?

    ISRO इस मिशन में ₹788 करोड़ का योगदान दे रहा है. लेकिन यह निवेश सिर्फ एक सैटेलाइट के लिए नहीं, बल्कि उन रणनीतिक क्षमताओं और टेक्नोलॉजी के लिए है, जो भारत को आने वाले दशकों में आगे ले जाएंगी.

    NISAR के जरिए भारत को मिल सकते हैं ये फायदे:

    आपदा प्रबंधन: भूकंप, बाढ़, भूस्खलन जैसी आपदाओं की शुरुआती पहचान

    कृषि निगरानी: खेतों की नमी और फसलों की स्थिति पर डेटा, जो सूखा राहत और खाद्य सुरक्षा में मदद करेगा

    जलवायु नीति: ग्लेशियर, वन, वेटलैंड्स और झीलों पर वास्तविक समय की निगरानी

    वैज्ञानिक प्रतिष्ठा: इस मिशन से जुड़ा डेटा पूरी दुनिया को फ्री में उपलब्ध होगा, जिससे भारत की वैज्ञानिक साख और वैश्विक नेतृत्व को मजबूती मिलेगी.

    सिर्फ विज्ञान नहीं, नीति और रणनीति के लिए भी अहम

    NISAR को सिर्फ एक साइंटिफिक मिशन कहना इसकी भूमिका को सीमित करना होगा. 

    यह सैटेलाइट:

    • ग्लेशियरों की रफ्तार और पिघलाव पर नज़र रखेगा
    • जंगलों की कटाई, फसल वृद्धि और वनस्पति में हो रहे बदलाव को मापेगा
    • मिट्टी की नमी और झीलों के आकार में हो रहे परिवर्तन को ट्रैक करेगा
    • चक्रवात, सुनामी और जंगल की आग के बाद राहत कार्यों को तेज़ और सटीक बनाएगा

    ग्लोबल मिशन, लोकल इम्पैक्ट

    यह मिशन न केवल भारत और अमेरिका, बल्कि पूरे विश्व के लिए एक साझा संसाधन बनने जा रहा है. जलवायु परिवर्तन से लड़ने, शहरी विकास की योजना बनाने, खाद्यान्न सुरक्षा बढ़ाने, और आपदा प्रबंधन को बेहतर करने के लिए यह डेटा आधारित फैसलों का मजबूत आधार बनेगा.

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