यरुशलम/तेल अवीव: पश्चिम एशिया में पहले से ही मौजूद गहराते तनावों के बीच एक नई घटना ने राजनीतिक और धार्मिक हलकों में खलबली मचा दी है. इजराइल के राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री इतामार बेन-ग्विर ने हाल ही में यरुशलम के संवेदनशील अल-अक्सा मस्जिद परिसर का दौरा किया और वहां जाकर प्रार्थना की. इस घटना का वीडियो सामने आने के बाद दुनिया भर में तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं.
यह दौरा केवल धार्मिक आस्था का प्रदर्शन नहीं था, बल्कि इसके राजनीतिक और कूटनीतिक अर्थ भी निकाले जा रहे हैं. खासकर तब, जब यहूदियों का विशेष उपवास दिवस ‘तिशा बाव’ भी इसी दिन पड़ रहा था एक ऐसा दिन जब यहूदी समुदाय अपने प्राचीन मंदिरों के विनाश को याद करते हैं.
Israel’s Ben Gvir leading public prayers at Islam’s 3rd holiest site Al-Aqsa Mosque https://t.co/H5kceTFpJB pic.twitter.com/Jl3kfmUPx4
— RT (@RT_com) August 3, 2025
क्या है अल-अक्सा मस्जिद परिसर की संवेदनशीलता?
अल-अक्सा मस्जिद सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह इस क्षेत्र की राजनीतिक पहचान और धार्मिक अधिकार का भी प्रतीक बन चुका है. यह इस्लाम धर्म में मक्का और मदीना के बाद तीसरा सबसे पवित्र स्थल है, जबकि यहूदियों के लिए यह टेम्पल माउंट कहलाता है, और इसे उनकी धार्मिक विरासत का सबसे पवित्र स्थान माना जाता है.
1967 में हुए अरब-इजराइल युद्ध के बाद यह क्षेत्र इजराइल के नियंत्रण में आ गया था. इसके बाद जॉर्डन और इजराइल के बीच हुए एक ऐतिहासिक समझौते में यह तय किया गया था कि मस्जिद की धार्मिक देखरेख जॉर्डन के इस्लामिक वक्फ ट्रस्ट द्वारा की जाएगी, जबकि सुरक्षा नियंत्रण इजराइल के पास रहेगा. इसी समझौते के तहत गैर-मुस्लिमों को मस्जिद परिसर में प्रवेश की अनुमति तो है, लेकिन उन्हें वहां प्रार्थना करने की अनुमति नहीं दी गई है.
मंत्री का दौरा: धार्मिक आस्था या राजनीतिक संकेत?
इतामार बेन-ग्विर का यह दौरा इस समझौते की भावना के खिलाफ समझा जा रहा है. वीडियो फुटेज में वे कुछ समर्थकों के साथ मस्जिद परिसर में घूमते और प्रार्थना करते दिखाई दिए. उन्होंने बाद में बयान दिया कि वे गाजा में हमास के खिलाफ इजराइल की जीत और बंधकों की सुरक्षित वापसी के लिए प्रार्थना करने गए थे.
बेन-ग्विर ने इस मौके पर यह भी दोहराया कि गाजा पर पूरी तरह कब्जा करने की जरूरत है, जो कि पहले से ही उनके राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा रहा है.
नेतन्याहू ने सफाई दी, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना
इस घटना के बाद सोशल मीडिया और राजनीतिक हलकों में विवाद तेज हो गया. हालात को संभालते हुए इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने स्पष्टीकरण दिया कि, "अल-अक्सा परिसर को लेकर जो नियम पहले से लागू हैं, वे न बदले हैं और न ही बदले जाएंगे."
उनका यह बयान, खासकर अंतरराष्ट्रीय दबाव को ध्यान में रखते हुए, मस्जिद परिसर की यथास्थिति बनाए रखने का प्रयास माना जा रहा है.
वहीं, फलस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास के प्रवक्ता नबील अबू रुदैन ने इस दौरे को "सारी हदें पार करने वाला कृत्य" बताया और अमेरिका सहित अंतरराष्ट्रीय समुदाय से हस्तक्षेप की मांग की. उन्होंने गाजा में जारी संघर्ष को तत्काल रोकने का भी आग्रह किया.
परिसर में 1,250 से अधिक लोगों की मौजूदगी
जो इस्लामिक वक्फ के अनुसार, बेन-ग्विर के दौरे के दौरान लगभग 1,250 यहूदी नागरिकों ने परिसर का दौरा किया. इनमें से कुछ लोगों ने वहां नारेबाजी, डांस और धार्मिक अनुष्ठान भी किए, जो कि वर्तमान समझौतों के विरुद्ध है और अक्सर टकराव को जन्म देता है.
बेन-ग्विर: कट्टर विचारधारा वाले विवादित नेता
इतामार बेन-ग्विर का नाम इजराइली राजनीति में विवादों से घिरा रहा है. वे धुर दक्षिणपंथी पार्टी 'रिलिजियस जिओनिस्ट' से ताल्लुक रखते हैं और काहानिस्ट विचारधारा के समर्थक हैं, यह वह विचारधारा है जो कट्टर यहूदी राष्ट्रवाद को सर्वोपरि मानती है और इजराइल में गैर-यहूदियों के नागरिक अधिकारों का विरोध करती रही है.
बेन-ग्विर के राजनीतिक सफर में कई विवादित पहलू रहे हैं:
2021 में पहली बार वे इजराइली संसद नीसेट के सदस्य बने और नवंबर 2022 में उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री नियुक्त किया गया. हालांकि, जनवरी 2025 में उन्होंने गाजा युद्धविराम समझौते के विरोध में इस्तीफा दे दिया था, लेकिन मार्च 2025 में फिर से मंत्री बनाए गए.
अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य: अस्थिरता और सामूहिक चिंता
बेन-ग्विर का अल-अक्सा दौरा केवल एक स्थानीय घटना नहीं है; यह एक ऐसी चिंगारी है, जो मध्य-पूर्व में पहले से सुलग रही अस्थिरता को और भड़का सकती है. अमेरिका और यूरोपीय देशों में भी इस घटना को धार्मिक भावनाओं और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा बताया जा रहा है.
विश्लेषकों का मानना है कि इस तरह की घटनाएं न केवल इजराइल और फिलिस्तीन के बीच तनाव को बढ़ाती हैं, बल्कि यह चरमपंथी संगठनों को भी उकसाने का काम कर सकती हैं, जिससे स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय शांति प्रयासों को गंभीर नुकसान हो सकता है.
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