दिखावा है ईरान और इजराइल का सीजफायर! 4 टुकड़ों में छलनी करने की तैयारी में जुटे नेतन्याहू

    पश्चिम एशिया एक बार फिर अस्थिरता की आग में झुलसता दिख रहा है. पहले इजराइल और ईरान के बीच 12 दिन लंबा सैन्य संघर्ष और अब इजराइल की एक नई रणनीति ‘डेविड कॉरिडोर’ ने पूरे क्षेत्र की राजनीतिक भूगोल को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं.

    Israel and Syria ceasefire fight over david corridor plan
    दिखावा है ईरान और इजराइल का सीजफायर!

    पश्चिम एशिया एक बार फिर अस्थिरता की आग में झुलसता दिख रहा है. पहले इजराइल और ईरान के बीच 12 दिन लंबा सैन्य संघर्ष और अब इजराइल की एक नई रणनीति ‘डेविड कॉरिडोर’ ने पूरे क्षेत्र की राजनीतिक भूगोल को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं.

    सीरिया के अंदर यह योजना इतना गहरा असर डाल सकती है कि देश की अखंडता ही खतरे में पड़ जाए. तुर्की, ईरान और रूस जैसे देश पहले ही इस पर अपनी नाखुशी जता चुके हैं, जबकि अमेरिका सतर्कता और संतुलन की बात कर रहा है.

    ‘डेविड कॉरिडोर’ क्या है और विवाद मेंक्यों है?

    ब्रिटिश मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ‘डेविड कॉरिडोर’ एक रणनीतिक बेल्ट है, जिसे इजराइल दक्षिणी सीरिया के ड्रूज़-बहुल इलाकों से जोड़ते हुए उत्तरी सीरिया के कुर्द बहुल क्षेत्रों तक बढ़ाना चाहता है. यह कॉरिडोर इजराइल को न केवल इन इलाकों में स्थायी मौजूदगी देगा, बल्कि सीरिया की सत्ता-संरचना को भी प्रभावित करेगा.

    इसे 'ग्रेटर इजराइल' की उस पुरानी सोच से जोड़ा जा रहा है जिसमें इजराइल की सीमाएं नील नदी से लेकर यूफ्रेट्स तक फैली हुई मानी जाती हैं. हालांकि, इजराइल ने इस योजना की आधिकारिक पुष्टि नहीं की है, लेकिन सैन्य गतिविधियों के संकेत इस दिशा की ओर इशारा करते हैं. सीरिया की संभावित विभाजन-रेखा: चार हिस्सों में बंटने की आशंका तुर्की के एक प्रमुख पत्रकार अब्दुलकादिर सेलवी के अनुसार, अगर डेविड कॉरिडोर की योजना आगे बढ़ती है तो सीरिया चार टुकड़ों में बंट सकता है. 

    दक्षिण: ड्रूज़ समुदाय का अलग राज्य
    पश्चिम: अलावी बहुल क्षेत्र
    केंद्र: सुन्नी अरब राज्य
    उत्तर: कुर्दों का अर्ध-स्वायत्त इलाका, जहां SDF का नियंत्रण हो इस तरह की राजनीतिक भूगोल न सिर्फ सीरिया की वर्तमान सरकार को कमजोर करेगी, बल्कि पूरे क्षेत्र की स्थिरता को भी गहरे संकट में डाल सकती है.

    इजराइल की सफाई और रणनीतिक मकसद

    इजराइल की तरफ से दावा किया गया है कि वह सिर्फ अपनी उत्तरी सीमा की सुरक्षा को लेकर चिंतित है, खासकर ईरान समर्थित ताकतों के खतरे से. प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कई बार स्पष्ट किया है कि वो अपने देश की सीमाओं के पास किसी भी तरह की 'दुश्मन ताकत' को बर्दाश्त नहीं करेंगे. वहीं, ड्रूज़ समुदाय को समर्थन देने की बात भी की जा रही है, जिसे इजराइल अपने 'सामरिक साझेदार' के रूप में देखता है. लेकिन कई विश्लेषकों का मानना है कि असल मकसद सीरिया में सत्ता को कमजोर कर वहां छोटे-छोटे सहयोगी गुटों की सत्ता बनाना है.

    तुर्की और अन्य देशों की चिंता

    तुर्की को सबसे बड़ा डर इस बात का है कि अगर सीरिया में कुर्द या ड्रूज़ समुदाय को स्वायत्तता मिलती है, तो इसका सीधा असर उसकी घरेलू राजनीति पर पड़ेगा खासतौर पर वहां के कुर्द सवाल पर. राष्ट्रपति एर्दोआन ने साफ कहा है कि तुर्की किसी भी हालत में सीरिया के बंटवारे को मंजूरी नहीं देगा. वहीं, ईरान और रूस ने भी इजराइल की सैन्य कार्रवाइयों को क्षेत्रीय संप्रभुता पर हमला बताया है.

    अमेरिका की चुप्पी और सधी प्रतिक्रिया

    जहां एक तरफ मिडिल ईस्ट की बड़ी ताकतें इस संभावित बदलाव को लेकर मुखर हैं, वहीं अमेरिका अपने सबसे करीबी सहयोगी इजराइल को लेकर संयम बरत रहा है. वाशिंगटन फिलहाल सार्वजनिक रूप से कोई कठोर टिप्पणी नहीं कर रहा है, लेकिन कूटनीतिक स्तर पर ‘स्थिति पर नजर’ बनाए रखने की बात कह रहा है.

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