क्या आपने कभी सोचा है कि जिस ज़मीन पर आप खड़े हैं, वो हर साल थोड़ा-थोड़ा नीचे जा रही है? ऐसा लगता है जैसे सब कुछ सामान्य है. मगर असलियत यह है कि भारत के कई बड़े शहर धीरे-धीरे धरती में धंसते जा रहे हैं, और यह सब हो रहा है हमारी ही लापरवाही के कारण. नासा की ताज़ा चेतावनी ने इस खतरे को और अधिक गंभीर बना दिया है.
गिरती ज़मीन, बढ़ता संकट
नासा और अन्य वैश्विक रिपोर्ट्स के अनुसार, दुनिया भर के 48 बड़े शहरों में ज़मीन के धंसने की गति चिंताजनक है. इन शहरों में भारत के भी पांच बड़े शहर कोलकाता, चेन्नई, अहमदाबाद, मुंबई और सूरत शामिल हैं. इन शहरों में करोड़ों लोग रहते हैं, और अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो इसका अंजाम भयावह हो सकता है.
नदी किनारे बसा शहर जा रहा है नीचे
2014 से 2020 के बीच कोलकाता की ज़मीन हर साल 0.01 से लेकर 2.8 सेंटीमीटर तक नीचे जा रही है. भाटपारा इलाका सबसे ज़्यादा प्रभावित है, जहां 2.6 सेंटीमीटर सालाना धंसाव रिकॉर्ड किया गया. कोलकाता के करीब 90 लाख लोग अब बाढ़ और भूकंप के बढ़ते खतरे की जद में हैं.
भूजल दोहन बना बड़ा खतरा
चेन्नई में हर साल 0.01 से लेकर 3.7 सेंटीमीटर तक की गिरावट दर्ज की गई है. थरमनी इलाका इस संकट का सबसे बड़ा शिकार है. यहां 14 लाख लोग निवास करते हैं. भूजल का अत्यधिक दोहन चेन्नई की ज़मीन को खोखला कर रहा है.
विकास की रफ्तार के नीचे दबती ज़मीन
अहमदाबाद में जमीन का स्तर सालाना 5.1 सेंटीमीटर तक नीचे जा रहा है. पिपलाज इलाका सबसे ज्यादा प्रभावित है, जहां यह आंकड़ा 4.2 सेंटीमीटर सालाना है. करीब 51 लाख लोगों पर इसका सीधा असर पड़ सकता है.
तटीय शहर डूबने की कगार पर
नासा का आकलन है कि अगर यही हाल रहा तो मुंबई 2100 तक लगभग 1.9 फीट तक डूब सकता है. पहले से ही बाढ़ की समस्या से जूझ रही मुंबई के लिए यह एक और खतरे की घंटी है. वहीं, सूरत में इंडस्ट्रियल विकास और भूजल दोहन मिलकर शहर को जमीन में धँसने की दिशा में ले जा रहे हैं.
यह है दुनिया का सबसे तेजी से डूबता शहर
इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता का आधा हिस्सा पहले ही समुद्र तल से नीचे चला गया है. 1970 से अब तक कुछ इलाकों में जमीन 4 मीटर तक नीचे जा चुकी है. लोग बार-बार आने वाली बाढ़ से परेशान हैं. जकार्ता इसका जीता-जागता उदाहरण है, जहां कुछ इलाकों में ज़मीन 4 मीटर तक नीचे जा चुकी है. बार-बार आने वाली बाढ़ ने जीवन को असहनीय बना दिया है.
क्या है इसका समाधान?
हालांकि कुछ शहरों ने बाढ़ से बचने के लिए बांध और दीवारें खड़ी की हैं, पर विशेषज्ञों का मानना है कि यह “बाउल इफेक्ट” पैदा कर सकता है, जहां पानी निकलने की बजाय भीतर ही फंस जाता है. इस संकट से बचने का एकमात्र रास्ता है जिम्मेदार जल प्रबंधन, सख्त भूजल कानून, और स्थायी शहरी विकास. अगर अब भी नहीं चेते, तो आने वाला कल सिर्फ धंसी ज़मीन नहीं, धंसे हुए भविष्य की तस्वीर बन जाएगा.
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