भारत एक बार फिर फ्रांस से राफेल लड़ाकू विमान खरीदने की तैयारी में है. इसका मकसद भारतीय वायुसेना की घटती ताकत को मजबूत करना है. डिफेंस से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, भारत फ्रांस से 40 से 60 राफेल फाइटर जेट्स खरीदने की योजना बना रहा है. ये सौदा सरकार-से-सरकार (G2G) स्तर पर किया जाएगा. ये डील भारतीय नौसेना की 26 राफेल-एम फाइटर्स की खरीद से अलग होगी, लेकिन दोनों एक साथ ही आगे बढ़ रही हैं.
क्यों जरूरी हो गई राफेल की दोबारा खरीद?
इस वक्त भारतीय वायुसेना के पास 31 फाइटर स्क्वाड्रन हैं, जबकि ज़रूरत 42.5 स्क्वाड्रन की है. पुराने फाइटर जेट जैसे MiG-21, MiG-29 और Jaguar रिटायर हो रहे हैं, जिसकी भरपाई के लिए नए फाइटर्स की सख्त जरूरत है. हालांकि तेजस Mk-1A भी बनाए जा रहे हैं, लेकिन उनकी डिलीवरी और निर्माण में वक्त लगेगा. ऐसे में वायुसेना को विदेशी लड़ाकू विमान की जरूरत है.
MRFA प्रोजेक्ट क्या है?
MRFA (Multi-Role Fighter Aircraft) एक बड़ा प्रोजेक्ट है जिसके तहत 114 विदेशी फाइटर जेट खरीदे जाने हैं. लेकिन ये योजना कई सालों से रुकी हुई है और अभी तक इसके लिए कोई आधिकारिक टेंडर जारी नहीं हुआ है. इसी वजह से भारत अब राफेल को सीधे G2G डील के तहत खरीदना चाहता है. क्योंकि वायुसेना पहले से ही 36 राफेल का इस्तेमाल कर रही है और यह विमान टेस्टेड और भरोसेमंद साबित हुआ है.
नौसेना के लिए अलग राफेल डील
भारतीय नौसेना भी 26 राफेल-एम फाइटर जेट खरीदने जा रही है. ये विमान INS विक्रांत जैसे एयरक्राफ्ट कैरियर से उड़ान भरने में सक्षम होंगे. इस डील की लागत करीब 63,000 करोड़ रुपये है और इसे 28 या 29 अप्रैल 2025 को फ्रांस के रक्षा मंत्री के भारत दौरे पर साइन किया जा सकता है. इनमें, 22 सिंगल-सीट फाइटर, 4 ट्विन-सीट ट्रेनर विमान शामिल होंगे.
राफेल क्यों है खास?
मेटेओर मिसाइल, जो लंबी दूरी तक दुश्मन के विमान को मार सकती है. SCALP मिसाइल, जो ज़मीन पर दूर के टारगेट पर हमला कर सकती है. AESA रडार, जो दुश्मन को पहले देख सकता है. ऊंचाई वाले इलाकों (जैसे लद्दाख) में बेहतरीन परफॉर्मेंस.
लॉजिस्टिक्स और ट्रेनिंग में फायदा
IAF और नौसेना के राफेल में लगभग 95% समानता होगी, जिससे पायलट ट्रेनिंग आसान होगी. मेंटेनेंस और स्पेयर पार्ट्स की दिक्कत नहीं होगी खर्च भी कम होगा. सरकार की "Make in India, for the World" नीति के तहत, राफेल डील में भारत में असेंबली लाइन मेंटेनेंस सुविधा (MRO) ऑफसेट निवेश जैसी बातें भी शामिल हो सकती हैं. नतीजा भारत की सुरक्षा जरूरतों को देखते हुए, राफेल की दूसरी खरीद वायुसेना और नौसेना दोनों की ताकत बढ़ाएगी. दो मोर्चों (चीन और पाकिस्तान) पर तैयार रहने में मदद करेगी और भविष्य के ज्वाइंट ऑपरेशंस को आसान बनाएगी.