कैसे संत बने प्रेमानंद महाराज, पिता के उस आशिर्वाद को आज भी करते हैं याद

    आध्यात्मिक जगत के प्रतिष्ठित संत प्रेमानंद महाराज का जीवन केवल भक्ति का मार्ग नहीं, बल्कि संघर्ष, त्याग और दृढ़ संकल्प की मिसाल है. बहुत कम उम्र में ही उन्होंने यह निर्णय ले लिया था कि उनका जीवन अब सांसारिक दुनिया के लिए नहीं.

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    आध्यात्मिक जगत के प्रतिष्ठित संत प्रेमानंद महाराज का जीवन केवल भक्ति का मार्ग नहीं, बल्कि संघर्ष, त्याग और दृढ़ संकल्प की मिसाल है. बहुत कम उम्र में ही उन्होंने यह निर्णय ले लिया था कि उनका जीवन अब सांसारिक दुनिया के लिए नहीं, बल्कि भगवान की सेवा और भक्ति के लिए समर्पित रहेगा. इस निर्णय ने न सिर्फ उनकी दिशा बदली, बल्कि उन्हें उस राह पर ले गया, जिसकी शुरुआत घर से विदाई और पिता के कठोर किन्तु प्रेमपूर्ण व्यवहार से हुई.


    महाराज जी बताते हैं कि जिस दिन वे घर से निकल पड़े थे, उसके तीन दिन बाद उनके पिता उन्हें ढूंढते हुए पहुंच गए. वह उस पल को याद करते हुए कहते हैं कि जैसे ही उन्होंने पिता को अपने सामने आते देखा, वे आंखें बंद कर शांत होकर बैठ गए. पिता ने उन्हें उठने को कहा—पहले, दूसरी और तीसरी बार. तीसरी बार सुनकर वे खड़े हो गए क्योंकि उन्हें लगा कि चौथी बार शायद डांट या डंडा पड़ेगा.

    “मेरी जिंदगी भगवान की है” – पिता को सुनाया पहला प्रण

    जब पिता ने उनसे पूछा कि आखिर वे घर क्यों छोड़कर आए हैं, तो महाराज जी ने बड़ी दृढ़ता से कहा—“मेरी जिंदगी भगवान को समर्पित है. अब मैं न घर लौटूंगा और न ही सांसारिक आदेश मानूंगा. आप चाहें तो मुझे यहीं खत्म कर दें, लेकिन मेरे निर्णय को बदलना संभव नहीं.” यह सुनकर उनके पिता का क्रोध धीरे-धीरे शांति में बदल गया, और जैसे किसी अनदेखी शक्ति ने उनके मन को परिवर्तित कर दिया हो.

    पिता का बदलता हृदय और अविस्मरणीय आशीर्वाद

    महाराज जी बताते हैं कि उनके इन शब्दों के बाद पिता ने अलग ही भाव में पूछा—“घर नहीं जाओगे?” उन्होंने साफ जवाब दिया—“नहीं.”फिर पूछा—“शादी नहीं करोगे?” उन्होंने कहा—“नहीं.” इसके बाद पिता ने उन्हें अपनी छाती से लगा लिया, तीन बार “राम… राम… राम” कहा और फिर वह अमूल्य आशीर्वाद दिया “जाओ, भगवान तुम्हारी रक्षा करेंगे. अगर सच्चे मन से बाबा बनोगे तो बांझ जमीन पर भी बैठोगे तो फूल खिलेंगे. लेकिन… एक बात ध्यान रखना—किसी की बहन या बेटी पर कभी गलत दृष्टि मत डालना.” महाराज जी ने तत्काल उत्तर दिया—“पिताजी, आप यह बात जीवन में कभी नहीं सुनेंगे.”

    माता-पिता का आशीष ही ईश्वर का आशीष

    प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि उस दिन के बाद पिता अपने रास्ते चले गए, लेकिन उनका आशीर्वाद आज भी उनके जीवन का सबसे बड़ा आधार है. वे मानते हैं कि माता-पिता का आशीर्वाद वास्तव में ईश्वर की कृपा का ही स्वरूप है, जो साधक को हर कठिनाई से बचाता है और उसे सही मार्ग पर बनाए रखता है.

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