नई दिल्ली: ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत ने अपनी सैन्य रणनीति और तकनीकी प्रगति का जो प्रदर्शन किया, उसने यह स्पष्ट कर दिया कि अब भारत केवल रक्षात्मक नहीं, बल्कि प्रोएक्टिव और प्रिसिजन अटैक क्षमता से लैस है. इस अभियान में भारतीय टैक्टिकल ड्रोन की भूमिका बेहद निर्णायक रही, जिन्होंने न सिर्फ आतंकवादी ठिकानों की पहचान की, बल्कि उन्हें सटीकता से खत्म भी किया.
आज के बदलते युद्ध परिदृश्य में, टैक्टिकल ड्रोन किसी भी देश की फर्स्ट लाइन ऑफ रेस्पॉन्स बन चुके हैं और भारत इस क्षेत्र में अब तुर्की और इजरायल जैसे देशों की बराबरी करने की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ रहा है.
टैक्टिकल ड्रोन: आधुनिक युद्ध का नया चेहरा
टैक्टिकल ड्रोन वे मध्यम दूरी के यूएवी होते हैं, जिनका उपयोग मुख्यतः युद्धक्षेत्र की निगरानी, टारगेटिंग, हमले और डेटा इंटेलिजेंस के लिए किया जाता है. ये स्ट्रैटेजिक ड्रोन से हल्के होते हैं, तेज़ गति से तैनात किए जा सकते हैं और सीमित मिशनों के लिए आदर्श माने जाते हैं.
इनकी विशेषताएं:
इजरायल: ड्रोन टेक्नोलॉजी का लीडर
इजरायल दशकों से इस क्षेत्र में अग्रणी रहा है.
इजरायल की IDF की Drone Corps दुनिया की सबसे एडवांस्ड यूनिट्स में मानी जाती है. गाज़ा, ईरान और सीरिया में इसके उपयोग के परिणाम सामने हैं.
तुर्की: नए खिलाड़ी के तौर पर एंट्री
तुर्की ने बेहद कम समय में ड्रोन मैन्युफैक्चरिंग में लंबी छलांग लगाई है:
तुर्की के ड्रोन कम लागत में अत्यधिक प्रभावी माने जाते हैं, इसीलिए यूक्रेन से लेकर अफ्रीका तक उनकी डिमांड है.
भारत: आत्मनिर्भरता की ओर सशक्त कदम
भारत ने अपनी ड्रोन क्षमता का निर्माण पहले इजरायल के साथ साझेदारी से शुरू किया था, लेकिन अब ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ कार्यक्रमों ने इसे नया आयाम दिया है.
भारत के प्रमुख टैक्टिकल ड्रोन:
इनमें से कई को LAC और LoC जैसे संवेदनशील इलाकों में तैनात किया गया है, और इनकी सफलता ने पाकिस्तान और चीन को चिंता में डाल दिया है.
कहां पीछे है भारत, और क्या है अगला कदम?
भारत के टैक्टिकल ड्रोन अभी भी स्वायत्त हमला, उच्च डेटा इंटीग्रेशन और लॉन्ग रेंज इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर में तुलनात्मक रूप से थोड़ा पीछे हैं. मगर अब भारत:
जैसे एडवांस ड्रोन पर रणनीतिक सहयोग के तहत हाइब्रिड मॉडल विकसित कर रहा है.
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