एक ओर दुनिया उन ऊँचाइयों को छूने में लगी है, जहाँ इंसान चाँद और मंगल पर जीवन बसाने की योजनाएँ बना रहा है. वहीं दूसरी ओर, धरती पर ऐसी हकीकतें हैं जो आज भी आदिम बर्बरता की तस्वीर बनकर हमारे सामने खड़ी हैं. तकनीक ने इंसान को अंतरिक्ष तक पहुँचा दिया, लेकिन ज़मीन, धर्म और सत्ता की भूख ने अब भी उसे इंसान से दरिंदा बनाए रखा है.
ताज़ा मामला दक्षिण-पूर्व एशिया का है, जहाँ थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सदियों पुराने शिव मंदिर को लेकर फिर तनाव भड़क उठा है. सीमा पर झड़पें शुरू हो चुकी हैं, जानें जा रही हैं और एक और युद्ध अपने नए रूप में सामने है.
लेकिन क्या यह अकेला संघर्ष है? बिल्कुल नहीं.
इजराइल-गाजा: सात दशकों की रेत में लहू की धार 1948 में जो विवाद जमीन के एक टुकड़े से शुरू हुआ था, वह अब इतिहास की सबसे जटिल लड़ाइयों में से एक बन चुका है. 2023 में हमास के एक बड़े हमले के बाद इजराइल ने गाजा पर जवाबी कार्रवाई की, जिसकी मार में 60,000 से ज्यादा लोग अब तक मारे जा चुके हैं. हालाँकि कई बार युद्धविराम की कोशिश हुई, लेकिन हर पहल अंततः बारूद और राख में तब्दील हो गई.
यमन से इजराइल तक: आग सिर्फ पास नहीं, दूर तक फैली गाजा के संघर्ष की चिंगारी यमन तक पहुँच चुकी है. यमन के हूती विद्रोही इजराइल पर मिसाइल और ड्रोन हमले कर रहे हैं. ये लड़ाई दिखती भले दूर हो, लेकिन इसका मकसद एक ही है—इजराइल को चुनौती देना. मिडिल ईस्ट की राजनीति इस अदृश्य मोर्चे से और ज़्यादा उलझती जा रही है.
रूस-यूक्रेन: एक महाशक्ति की सनक, एक छोटे देश की तबाही 2022 में शुरू हुआ यह संघर्ष अब तीसरे साल में दाखिल हो गया है. रूस की सेना ने यूक्रेन को तोड़ने की कोशिश की, लेकिन यूक्रेन भी झुका नहीं. अमेरिका और यूरोपीय देश उसके पीछे खड़े हैं, लेकिन इसकी कीमत वैश्विक अर्थव्यवस्था और ऊर्जा संकट के रूप में पूरी दुनिया चुका रही है. यह युद्ध अब सिर्फ एक भू-राजनीतिक विवाद नहीं रहा, यह पूरे विश्व की स्थिरता पर सवाल खड़ा कर रहा है.
अफ्रीका: जहाँ शांति आज भी एक ख्वाब है
डीआर कांगो और रवांडा के बीच वर्षों पुराना जातीय तनाव आज भी सुलग रहा है. एम23 जैसे विद्रोही गुट सीमा को बारूद में बदल चुके हैं. जून 2025 में हुए शांति समझौते के बावजूद गोलीबारी थमी नहीं है. सूडान, बुर्किना फासो, और माली जैसे देशों में गृहयुद्ध अब जीवन का हिस्सा बन चुके हैं. सूडान में सेना और RSF के बीच सत्ता की लड़ाई है, तो माली में धार्मिक और जातीय विद्रोह लगातार हिंसा फैला रहे हैं. इन झगड़ों का सबसे बड़ा खामियाजा आम नागरिकों को भुगतना पड़ रहा है. बेघर होते हुए, भूखे मरते हुए, अपने ही मुल्क में शरणार्थी बनते हुए.
आखिर कब थमेगी यह होड़?
जब इंसान ग्रहों पर जीवन तलाशने में व्यस्त हो, तो धरती पर जान लेने वाली जंगों का क्या औचित्य है? यह सवाल जितना साधारण है, उसका उत्तर उतना ही जटिल क्योंकि लड़ाइयाँ अब हथियारों से नहीं, विचारों से लड़ी जा रही हैं. और जब विचार हथियार बन जाएँ, तो कोई सरहद उन्हें रोक नहीं सकती.
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