तेल अवीव: मध्य पूर्व में जारी तनाव एक बार फिर गहराता दिख रहा है. यमन के हूती विद्रोहियों द्वारा इजरायल पर क्लस्टर मुनिशन से लैस मिसाइल दागे जाने की खबर ने न सिर्फ क्षेत्रीय सुरक्षा पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि इजरायल के अत्याधुनिक एयर डिफेंस सिस्टम की भी सीमाओं को उजागर किया है.
बीते शुक्रवार को इजरायल की वायु सीमा में हूतियों ने एक बैलिस्टिक मिसाइल दागी, जिसमें खतरनाक क्लस्टर उप-गोलाबारूद (submunitions) मौजूद थे. यह हमला इजरायली डिफेंस के लिए एक नई चुनौती बन गया, क्योंकि इस मिसाइल को रोकने में 'आयरन डोम' और 'एरो' जैसे हाई-टेक सिस्टम की शुरुआत में विफलता देखी गई.
क्लस्टर मिसाइल: तकनीकी रूप से नई चुनौती
हूती विद्रोहियों द्वारा दागी गई मिसाइल में क्लस्टर हथियार तकनीक का इस्तेमाल किया गया था. क्लस्टर मुनिशन, पारंपरिक मिसाइलों से अलग होते हैं, ये एक बड़े वारहेड के बजाय कई छोटे-छोटे विस्फोटकों को लक्ष्य क्षेत्र में छोड़ते हैं, जिससे व्यापक विनाश हो सकता है.
विश्लेषकों के अनुसार, इस प्रकार के हथियारों का उद्देश्य सीधे विनाश के बजाय बड़े क्षेत्र को क्षतिग्रस्त करना होता है. आमतौर पर इनका प्रयोग सैन्य ठिकानों, रनवे या हल्की संरचनाओं को खत्म करने के लिए किया जाता है.
हूती मिसाइल की जो विशेषता सामने आई है, वह यह कि यह मिसाइल एक अनियमित (irregular) मार्ग से इजरायली सीमा में दाखिल हुई. इसने क्लस्टर सबम्यूनिशन को 7 किलोमीटर की ऊंचाई पर रिलीज किया, जो 8 किलोमीटर तक फैल गए. हालाँकि ज़मीन पर केवल एक ही सबम्यूनिशन फटा, लेकिन इसने इजरायली सुरक्षा प्रतिष्ठान को चौंका दिया.
इजरायली एयर डिफेंस सिस्टम पर सवाल
इजरायल के पास 'आयरन डोम', 'एरो 2' और 'एरो 3' जैसे उन्नत वायु रक्षा प्रणाली हैं, जिन्हें विभिन्न प्रकार के मिसाइल खतरों से निपटने के लिए डिजाइन किया गया है. हालांकि, इस घटना में सामने आया कि क्लस्टर मिसाइल जैसे असामान्य हथियार इन प्रणालियों की कार्यक्षमता पर प्रश्नचिन्ह लगा सकते हैं.
बताया जा रहा है कि इस हमले के दौरान मिसाइल को रोकने के तीन प्रयास असफल रहे. शुरुआत में डिफेंस सिस्टम मिसाइल के पथ और उसके उप-गोलाबारूद को ट्रैक करने में अक्षम रहा. 'एरो 2' और 'एरो 3' जैसे लॉन्ग-रेंज इंटरसेप्टर्स को सक्रिय करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी, क्योंकि सिस्टम को खतरे की गंभीरता का सही पूर्वानुमान नहीं हुआ.
यह नाकामी तकनीकी पहलुओं के साथ-साथ रणनीतिक रूप से भी इजरायल के लिए चिंता का विषय बन गई है. रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि इस एक हमले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि डिफेंस सिस्टम को केवल नियमित मिसाइलों के हिसाब से नहीं, बल्कि अनियमित हथियार तकनीकों के हिसाब से भी अपग्रेड करने की आवश्यकता है.
हूती विद्रोहियों की रणनीति में बदलाव
हूती विद्रोहियों ने हाल के महीनों में अपनी रणनीति में उल्लेखनीय परिवर्तन किए हैं. पारंपरिक बैलिस्टिक मिसाइलों और ड्रोन के साथ-साथ अब वे ऐसे हथियारों का प्रयोग कर रहे हैं जो न केवल तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण हैं, बल्कि मनोवैज्ञानिक दबाव भी बनाते हैं.
हालिया हमला दर्शाता है कि हूती अब ऐसे हथियारों को प्राथमिकता दे रहे हैं जो सीमित संसाधनों में भी इजरायल जैसे तकनीकी रूप से सक्षम देश की नींद हराम कर सकें. यह हमला हूतियों की बढ़ती तकनीकी समझ और ईरान जैसे देशों से मिलने वाले समर्थन का भी संकेत देता है.
विश्लेषकों का मानना है कि इस मिसाइल के जरिए हूतियों ने यह साबित करने की कोशिश की है कि वे सिर्फ यमन तक सीमित नहीं, बल्कि क्षेत्रीय शक्ति बनने की महत्वाकांक्षा रखते हैं.
इजरायल की जवाबी कार्रवाई
इस हमले के तुरंत बाद, इजरायली वायुसेना ने यमन की राजधानी सना में कई महत्वपूर्ण ठिकानों को निशाना बनाया. इन हमलों में ईंधन डिपो, बिजलीघर और राष्ट्रपति भवन जैसे संवेदनशील स्थान शामिल थे. इजरायल का दावा है कि यह जवाबी हमला हूतियों की सैन्य क्षमताओं को कमजोर करने के लिए किया गया.
हालांकि, क्षेत्रीय विश्लेषकों का कहना है कि इन हमलों से हूती विद्रोहियों की मिसाइल या ड्रोन दागने की क्षमता पर खास असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि वे भूमिगत ठिकानों और मोबाइल लॉन्च सिस्टम का उपयोग करते हैं.
तनाव में नेतन्याहू सरकार
इजरायल में यह घटना राजनीतिक हलकों में भी हलचल का कारण बनी है. प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार पहले से ही गाजा और लेबनान सीमा पर टकराव को लेकर दबाव में है. अब यमन की ओर से हो रहे हमलों ने तीसरा मोर्चा खोल दिया है.
इजरायल के नागरिकों में इस बात को लेकर चिंता बढ़ रही है कि अत्याधुनिक एयर डिफेंस सिस्टम के बावजूद भी अगर मिसाइलें जमीन तक पहुँचने में सफल हो रही हैं, तो भविष्य में बड़े हमले कितनी गंभीर स्थिति पैदा कर सकते हैं.
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