मुंबई की गलियों में एक कहानी गूंज रही है—एक ऐसी कहानी जो उम्र के बंधनों को तोड़कर सपनों की उड़ान को दिखाती है. यह कहानी है 65 वर्षीय प्रभावती जाधव की, जिन्होंने अपने पोते के साथ मिलकर 10वीं बोर्ड परीक्षा दी और 52% अंकों के साथ सफलता हासिल की.
जहां एक तरफ समाज अक्सर उम्र को सीमाओं में बांध देता है, वहीं प्रभावती दादी ने ये साबित कर दिया कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती, और हौसले की उड़ान के लिए कोई समय तय नहीं होता.
दादी और पोते की जोड़ी बनी मिसाल
मुंबई की प्रभावती जाधव ने जब अपने पोते सोहम जाधव को पढ़ते देखा, तो उनके भीतर सालों से दबा सपना फिर से जाग उठा. खुद की पढ़ाई अधूरी छोड़ने का मलाल अब प्रेरणा में बदल चुका था. सोहम और उनकी दादी ने साथ मिलकर 10वीं की परीक्षा दी. जहां पोते ने 82% अंकों से बाज़ी मारी, वहीं दादी ने भी मराठी माध्यम से 52% अंक लाकर सभी को चौंका दिया.
कम उम्र में शादी, फिर घर-गृहस्थी... लेकिन सपना नहीं मरा
प्रभावती जाधव ने बताया कि उनकी शादी कम उम्र में हो गई थी और उसके बाद घर, बच्चे और ज़िम्मेदारियों की वजह से पढ़ाई का सपना पीछे छूट गया, पर जब पोते को मेहनत करते देखा, तो उसी जज़्बे ने फिर से उन्हें किताबों से जोड़ दिया.
उन्होंने कहा, “परीक्षा सेंटर में जब मैं पहुंची तो सभी लोग मुझे देखकर बहुत खुश हुए. मेरे अध्यापक और सहपाठी मेरा सम्मान करते थे. परिवार ने भी मुझे बहुत सपोर्ट किया.”
दिन का वक्त घर के काम, रात को किताबें
प्रभावती दादी दिन भर घर के कामों में व्यस्त रहती थीं, लेकिन जैसे ही वक्त मिलता, वो पढ़ाई में लग जातीं. उन्होंने साबित कर दिया कि अगर इरादा मजबूत हो, तो रसोई और किताबें दोनों साथ चल सकती हैं.
दादी बनीं लाखों के लिए प्रेरणा
आज जब देशभर में लोग पढ़ाई छोड़ने के बहाने ढूंढ़ते हैं, वहीं प्रभावती जाधव जैसी महिलाएं सच्ची मिसाल बनती हैं. उनकी कहानी हर उस व्यक्ति को प्रेरित करती है जो सोचता है कि अब बहुत देर हो चुकी है.
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