Ghazipur News: उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के वरिष्ठ नेता, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और पूर्व सांसद-एमएलसी स्वर्गीय सरजू पांडे की मौत को पूरे तीन दशक से भी ज्यादा हो चुके हैं. लेकिन बिजली विभाग की नजर में वे आज भी जीवित हैं. वर्ष 1989 में मॉस्को में एक अंतरराष्ट्रीय कम्युनिस्ट सेमिनार के दौरान उनका निधन हो गया था. मगर हैरानी की बात यह है कि आज भी उनके नाम पर बिजली मीटर अपडेट हो रहा है, रसीदें कट रही हैं और विभाग उनका मृत्यु प्रमाण पत्र मांगकर परिवार को परेशान कर रहा है.
नाम ट्रांसफर की जद्दोजहद में परिवार
सरजू पांडे के पोते अजीत पांडे ने मीडिया को बताया कि परिवार ने कई बार बिजली विभाग से नाम बदलवाने की कोशिश की, ताकि कनेक्शन किसी जीवित सदस्य के नाम पर ट्रांसफर हो सके. लेकिन हर बार कोई न कोई तकनीकी या दस्तावेज़ी बहाना बना दिया गया. 2019 और 2024 में जब बिजली विभाग ने मीटर बदला, तब भी कागज़ों में सरजू पांडे जीवित ही दर्शाए गए, और नई रसीदें उन्हीं के नाम पर जारी हुईं.
बिल भरने में भी आ रही मुश्किलें
परिजनों का कहना है कि वे बाहर नौकरी करते हैं और घर पर केवल वृद्ध मां रहती हैं. ऐसे में न तो रीडिंग लेने कोई आता है, और न ही समय पर बिल की जानकारी मिल पाती है.
अजीत पांडे बताते हैं कि जब भी गाजीपुर आते हैं, बिजली विभाग के ऑफिस चक्कर लगाते हैं, लेकिन वहां से केवल यही जवाब मिलता है, "पहले मृत्यु प्रमाण पत्र लाइए, तभी नाम बदलेगा."
मॉस्को में हुई थी मौत, कहां से लाएं प्रमाण पत्र?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब सरजू पांडे की मौत मॉस्को (रूस) में हुई थी, तो उनके परिवार के पास कोई स्थानीय मृत्यु प्रमाण पत्र उपलब्ध नहीं है. उनका अंतिम संस्कार गाजीपुर में हुआ, उनकी स्मृति में सरजू पांडे पार्क भी बना, लेकिन विभागीय प्रक्रिया इतनी जटिल है कि उनके परिवार को मॉस्को से प्रमाण पत्र लाने की सलाह दी जा रही है, जो मुमकिन नहीं लगता.
सम्मानित स्वतंत्रता सेनानी के साथ ऐसा व्यवहार क्यों?
सरजू पांडे केवल एक जनप्रतिनिधि नहीं थे, वो देश के स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही थे. उनकी राजनीतिक और सामाजिक सेवाओं को देखते हुए उनकी स्मृति को संजोने के लिए गाजीपुर में पार्क तक बनाया गया. लेकिन हैरानी की बात यह है कि जिस सरकारी सिस्टम का वो हिस्सा रहे, उसी में अब उनका परिवार न्याय और संवेदनशीलता की उम्मीद में दर-दर भटक रहा है.
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